डिजिटल शिक्षण से डिजिटल विभाजन को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए: उपराष्ट्रपति

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शिक्षा का मंत्र – ग्रहण करना, शामिल करना, प्रबुद्ध बनाना, सशक्त बनाना होना चाहिए: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने शिक्षण पद्धति में बदलाव का आह्वाहन किया

उपराष्ट्रपति ने महामारी की वजह से बच्चों की शिक्षा प्रभावित होने पर चिंता व्यक्त की

उपराष्ट्रपति ने भारत की शिक्षा प्रणाली

को उपनिवेशीकरण से मुक्त करने की जरूरत पर जोर दिया

शिक्षकों को स्वस्थ रहना चाहिए और अपने छात्रों को इसके लिए प्रेरित करना चाहिए- उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च (एनआईटीटीटीआर) में खेल केंद्र और मुक्त शैक्षणिक संसाधन (ओबीआर) का उद्घाटन किया

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज इस बात पर जोर दिया कि केंद्र और राज्य सरकारें डिजिटल शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि कोई डिजिटल विभाजन न हो। उन्होंने इसे सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों व सुदूर इलाकों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ाने और ‘शैक्षणिक अनुभव के केंद्र में समावेशिता को रखने’ का आह्वाहन किया। श्री नायडू ने कहा, ‘इसके लिए मंत्र- ग्रहण करना, जोड़ना, प्रबुद्ध करना और सशक्त बनाना होना चाहिए।’

उपराष्ट्रपति ने आज चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च (एनआईटीटीटीआर) में खेल केंद्र और मुक्त शैक्षणिक संसाधन (ओबीआर) का उद्घाटन किया। इस अवसर पर श्री नायडु ने महामारी के चलते शिक्षा के प्रभावित होने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि विद्यालय बंद होने से लड़कियां, वंचित पृष्ठभूमि के बच्चे, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले, दिव्यांग बच्चे और जनजातीय अल्पसंख्यकों के बच्चे अपने साथियों की तुलना में अधिक प्रभावित होते हैं।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने एनआईटीटीटीआर खुला शिक्षण संसाधन (ओईआर) का भी उद्घाटन किया। उन्होंने इसे दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से समावेशिता में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। श्री नायडु ने कहा कि इससे शिक्षकों को अपने ज्ञान के आधार और शिक्षण पद्धति में सुधार करने में सहायता मिलेगी।

सरकारों से सुधारात्मक कार्रवाई का आह्वाहन करते हुए श्री नायडु ने सुझाव दिया कि ई-शिक्षण में शिक्षकों के कौशल को उन्नत करना महत्वपूर्ण उपायों में से एक है।

भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षक प्रशिक्षण के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षक एक राष्ट्र की बौद्धिक जीवन रेखा का निर्माण करते हैं और इसके विकास को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

श्री नायडु ने आने वाले दिनों ऐसे शिक्षकों के निर्माण की जरूरत पर जोर दिया जो ‘शिक्षार्थी और ज्ञान के निर्माता हों – ऐसे शिक्षक जो जीवन को समझते हों और मानवीय स्थिति को ऊपर उठाना चाहते हों। उन्होंने आगे कहा, ‘’हमें अपनी कक्षाओं, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रेरित करने, परिवर्तन लाने वाले शिक्षकों की आवश्यकता है।’

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की विशाल युवा आबादी को जिम्मेदार नागरिक बनाने में शिक्षकों की बड़ी जवाबदेही है। श्री नायडु ने कहा, “शिक्षा का मतलब केवल डिग्री नहीं है।” उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य ज्ञान, सशक्तिकरण और बौद्धिकता है। उपराष्ट्रपति ने संस्थानों से छात्रों में एक सुदृढ़ और सकारात्मक सोच विकसित करने पर अपना ध्यान केंद्रित करने का भी आह्वाहन किया।

उपराष्ट्रपति ने ‘कोविड वॉरियर्स’ की भूमिका निभाने और महामारी के दौरान अपने छात्रों की शैक्षणिक निरंतरता सुनिश्चित करने को लेकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने के लिए शिक्षकों की सराहना की। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि शिक्षण समुदाय ने तकनीक की खोज की और छात्रों को पढ़ाई में सहायता करने के लिए अपनी रणनीतियों व कार्यप्रणाली को फिर से बनाने में उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)- 2020 को दूरदर्शी दस्तावेज बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह हमारे देश में शिक्षा के वातावरण को रूपांतरित करना चाहता है और युवा शिक्षकों को ऊर्जाशील व प्रेरित करने के महत्व को रेखांकित करता है। उन्होंने आगे शिक्षकों से बौद्धिक रूप से जीवंत व सहयोगी वातावरण में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और वैश्विक चुनौतियों व अवसरों का समाधान करने के लिए अभिनव रणनीतियों को अपनाने का अनुरोध किया।

भारत की शिक्षा प्रणाली को उपनिवेशीकरण से मुक्त करने की जरूरत पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने भारत की प्राचीन ज्ञान प्रणालियों और उन महान संतों से प्रेरणा लेने का आह्वाहन किया, जिन्होंने हमारे देश को विश्व गुरु- एक ज्ञान दाता बनाया था। उन्होंने उस स्थिति को फिर से प्राप्त करने का आह्वाहन करते हुए जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के आधार पर समाज को विभाजन से मुक्त बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

उपराष्ट्रपति ने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और उन्हें संरक्षित करने की जरूरत पर जोर दिया। वहीं, श्री नायडु ने भारतीय भाषाओं में तकनीकी पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए एआईसीटीई (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्) की सराहना की। श्री नायडु ने इस बात को दोहराया कि किसी भी भाषा को थोपने या विरोध करने का काम नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि जितना संभव हो उतनी भाषाएं सीखनी चाहिए, लेकिन मातृभाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने शिक्षकों से छात्रों को ‘अनुभव संबंधी शिक्षा’ प्रदान करने की सलाह दी। श्री नायडु ने कहा कि इस तरह की शिक्षण पद्धति रचनात्मकता और नवीन परिणामों को बढ़ावा देने में सहायता करती है। उन्होंने आगे शिक्षण को संचार के एक तरफा माध्यम से दो तरफा माध्यम में ले जाने का आह्वाहन किया, जहां गतिविधियों को सामग्री के संदर्भ से जोड़ने की जरूरत होती है।

उपराष्ट्रपति ने एनआईटीटीटीआर से बेहतर ढांचागत और वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से उत्कृष्ट शिक्षकों के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने का आह्वाहन किया। उन्होंने आगे पिछले दो वर्षों में 60,000 से अधिक शिक्षार्थियों को प्रशिक्षण देने में इसके प्रयासों की सराहना की। श्री नायडु ने विदेश मंत्रालय के भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के तहत राष्ट्रीय के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों को प्रशिक्षण देने के लिए संस्थान की सराहना की।

उपराष्ट्रपति ने एनआईटीटीटीआर में खेल केंद्र के उद्घाटन पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। श्री नायडु, जो खुद एक खेल प्रेमी हैं, ने शिक्षकों को स्वस्थ रहने व अपने छात्रों को नियमित रूप से खेल या योग का अभ्यास करने के लिए प्रेरित करने का आह्वाहन किया। उन्होंने कहा कि इस महामारी ने रोगों के खिलाफ अच्छी प्रतिरक्षा के लिए शारीरिक स्वास्थ्य और स्वस्थ भोजन के महत्व को रेखांकित किया है।

अपने संबोधन के बाद एनआईटीटीटीआर के छात्रों और शिक्षकों के साथ बातचीत की। इस दौरान श्री नायडु ने विशेष रूप से तकनीकी संस्थानों में शिक्षण विधियों को रूपांतरित करने की जरूरत पर जोर दिया। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे अस्पतालों, विद्यालयों, सड़कों व कनेक्टिविटी जैसी बेहतर सुविधाओं का निर्माण करने का आह्वाहन किया, जिससे ग्रामीण-शहरी विभाजन को समाप्त किया जा सके और शहरों की ओर पलायन को रोका जा सके। इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकारों से स्मार्ट सिटी कार्यक्रम पर अपना ध्यान केंद्रित करने और अन्य शहरी केंद्रों को अपनी सुविधाओं में सुधार को लेकर प्रेरित करने के लिए मॉडल शहर बनाने का भी अनुरोध किया।

इस कार्यक्रम में तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री थिरु मा सुब्रमण्यम, एनआईटीटीटीआर- चेन्नई की बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष डॉ. वी.एस.एस. कुमार, एनआईटीटीटीआर- चेन्नई की निदेशक डॉ. उषा नतेसन, एनआईटीटीटीआर के प्रोफेसर डॉ. जी. कुलंथीवेल और अन्य उपस्थित थे।

उपराष्ट्रपति का पूरा भाषण निम्नलिखित है –

“भाइयो और बहनो,

मुझे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च (एनआईटीटीटीआर), चेन्नई का दौरा करने और आप सभी के साथ बातचीत करने में प्रसन्नता हो रही है। हमारे अकादमिक परिदृश्य में एनआईटीटीटीआर का एक अद्वितीय स्थान है। यह शिक्षकों, विशेषकर तकनीकी शिक्षकों को सशक्त बनाने के लिए स्थापित किया गया एक संस्थान है। जैसा कि आप सभी जानते हैं, हमारी संस्कृति में गुरु का एक विशेष स्थान होता है और एक शिक्षक को जो सम्मान प्राप्त होता है, उसे इन पंक्तियों में उपयुक्त रूप से दिखाया गया है:

गुरुर ब्रह्मा

गुरुर विष्णु

गुरुर देवो महेश्वरा

गुरुः साक्षात परब्रह्म

तस्मै श्री गुरुवे नमः

इस संस्थान में शिक्षक गुरुओं के गुरु होते हैं, इसलिए शिक्षार्थी “दो बार सौभाग्यशाली” होते हैं। वे खुद गुरु हैं और अन्य योग्य गुरुओं से शिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। एनआईटीटीटीआर, चेन्नई एक राष्ट्रीय समन्वय संस्थान के रूप में शिक्षा मंत्रालय की एक प्रमुख परियोजना तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण की राष्ट्रीय पहल का समन्वय कर रहा है। मुझे बताया गया है कि पिछले दो वर्षों में 60,000 से अधिक शिक्षार्थियों ने सीखने के आठ मॉड्यूल में अपना नामांकन लिया है।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि शिक्षक किसी राष्ट्र की बौद्धिक जीवन रेखा का निर्माण करते हैं और इसके विकास को निर्धारित करने में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये शिक्षक ही हैं जो ज्ञान आधारित समाजों को आकार देते हैं। हमें ऐसे शिक्षकों की जरूरत है जो शिक्षार्थी हों और ज्ञान के निर्माता हों – ऐसे शिक्षक जो जीवन को समझते हों और मानवीय स्थिति को ऊपर उठाने के प्रयास करते हों। हमें अपनी कक्षाओं में विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रेरित करने वाले और बदलवा लाने वाले शिक्षकों की जरूरत है। महान शिक्षक शैक्षणिक वातावरण को फिर से परिभाषित करते हैं और राष्ट्र की प्रगति की नींव का निर्माण करते हैं। एक तकनीकी शिक्षक के रूप में आपको त्वरित विकास करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना चाहिए।

इस संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 एक दूरदर्शी दस्तावेज है जो भविष्य के लिए रोडमैप तैयार करती है। यह हमारे देश में शैक्षणिक वातावरण में बदलाव लाना चाहती है और युवा शिक्षकों को उर्जाशील व प्रेरित करने के महत्व को रेखांकित करती है। यह स्वीकार किए गए ढांचे के भीतर अपने खुद के पाठ्यक्रम व शिक्षण रणनीतियों को डिजाइन करने के लिए शिक्षकों को आवश्यक कौशल से युक्त होने की जरूरत को रेखांकित करने के अलावा नवाचार पर जोर देती है। शिक्षकों को अभिनव रणनीतियों को अपनाना चाहिए और उनकी सोच बौद्धिक रूप से जीवंत, सहयोगी वातावरण में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व वैश्विक चुनौतियों और अवसरों का समाधान करने वाली होनी चाहिए। नवाचार को अनुप्रयोगों के लिए अपना योगदान देना चाहिए और जमीन पर इसका एक परिवर्तनकारी प्रभाव होना चाहिए।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि यह संस्थान राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के अनुरूप विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। प्रतिबद्ध शिक्षक उत्कृष्टता और नवाचार को बढ़ावा देने में अपनी एक बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं।

मुझे बताया गया है कि एनआईटीटीटीआर- चेन्नई, विदेश मंत्रालय के भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के तहत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। मैं 107 देशों के प्रतिभागियों को प्रशिक्षित करने के लिए संस्थान की सराहना करता हूं। यह वास्तव में इस क्षेत्र में एक विश्व गुरु की प्रतिष्ठा के अनुरूप है।

प्रिय बहनो और भाइयो,

छात्रों को अनुभव संबंधी शिक्षा प्रदान करना महत्वपूर्ण है। अनुभव संबंधी शिक्षण रचनात्मकता और अभिनव परिणामों को बढ़ावा देने में सहायता करता है। एनईपी शिक्षण गहन विश्वविद्यालय और अनुसंधान-गहन संस्थानों को विकसित करने की जरूरत पर भी जोर देता है। मुझे लगता है कि एनआईटीटीटीआर- चेन्नई को बेहतर ढांचागत और वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रम के जरिए उत्कृष्ट शिक्षकों के निर्माण में अग्रणी होना चाहिए। सैद्धांतिक रूप से यह माना जाता है कि शिक्षण संचार का एक तरफा माध्यम है, लेकिन वास्तव में यह एक जटिल दो-तरफा माध्यम पर बना हुआ है जहां गतिविधियों के जरिए सामग्री को संदर्भ से जोड़ने की जरूरत होती है।

साथियों,

जैसा कि आप सभी जानते हैं, महामारी ने पूरे विश्व में शिक्षा को बुरी तरह प्रभावित किया है। विश्व बैंक, यूनेस्को और यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के चलते विद्यालय बंद होने के परिणामस्वरूप छात्रों की इस पीढ़ी को वर्तमान मूल्य में पूरे जीवन की कमाई में 17 ट्रिलियन डॉलर या आज के वैश्विक जीडीपी का लगभग 14 फीसदी खोने का जोखिम है। इन रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि विद्यालय बंद होने से लड़कियां, वंचित पृष्ठभूमि के बच्चे, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले, दिव्यांग बच्चे और जनजातीय अल्पसंख्यकों के बच्चे अपने साथियों की तुलना में अधिक प्रभावित होते हैं।

वहीं, केंद्र और राज्य सरकारों ने डिजिटल शिक्षण को बढ़ावा देने के कई उपाय किए हैं, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि कोई डिजिटल विभाजन न हो। इसे प्राप्त करने के लिए हमें विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और सुदूर इलाकों में इंटरनेट तक पहुंच बढ़ाने की जरूरत है। हमारे जैसे देश में शैक्षणिक अनुभव के केंद्र में अद्वीतीय विविधता और स्तरीय असमानता के साथ समावेशिता है। इसके लिए मंत्र- ग्रहण करना, शामिल करना, प्रबुद्ध करना और सशक्त बनाना होना चाहिए।

जरूरी सुविधाएं सृजित करने के अतिरिक्त ई-शिक्षण में शिक्षकों के कौशल को उन्नत करना भी महत्वपूर्ण है। इसमें आपके जैसे संस्थान स्थानीय व वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए शिक्षकों में तकनीक की समझ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इस संदर्भ में मुझे एनआईटीटीटीआर खुला शिक्षण संसाधन (ओईआर) का उद्घाटन करते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है। मुझे विश्वास है कि ओईआर शिक्षकों को उनके ज्ञान के आधार और शिक्षण पद्धति में सुधार करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण संबंधी संसाधन प्रदान करेगा। दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से समावेशिता में सुधार लाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। मैं इसके पीछे की संबंधित टीम को बधाई देता हूं और एनआईटीटीटीआर को पाठ्यक्रम सामग्री को लगातार अद्यतन (अपडेट) करने व शिक्षार्थियों को इससे जोड़े रखने के लिए प्रोत्साहित करता हूं।

मैं अपने शिक्षकों को भी कोविड वॉरियर्स (योद्धा) के रूप में कार्य करने और अपने छात्रों की शैक्षणिक निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए बधाई देता हूं। आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। महामारी ने एक तरह से शिक्षकों के लिए शिक्षण में तकनीक के उपयोग को लेकर नई संभावनाएं तलाशने के लिए एक अनिवार्य जरूरत उत्पन्न की। इसके परिणामस्वरूप एक हाइब्रिड प्रणाली को अपनाने वाले संस्थानों के साथ अध्यापन-शिक्षण वातावरण में क्रांतिकारी बदलाव आया है। शिक्षकों ने छात्रों की पढ़ाई में सहायता करने के लिए अपनी रणनीतियों और कार्यप्रणाली को फिर से नया रूप देने में उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि एनआईटीटीटीआर- चेन्नई ने आईआईआईटी, आईआईआईटीडीएम (23 संस्थान), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान- तिरुचिरापल्ली, एनआईटी- पटना और अन्य कई संस्थानों के शिक्षकों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किए हैं। मुझे बताया गया है कि तकनीकी शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के अलावा वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज (सफदरजंग अस्पताल)- नई दिल्ली के डॉक्टरों को भी प्रशिक्षित किया गया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आईटीईसी के तहत एक सद्भावना के तहत संस्थान ने विशेष रूप से डिजाइन किए गए दो हफ्ते के प्रशिक्षण कार्यक्रम की पेशकश की थी और मालदीव के कई शिक्षकों को प्रशिक्षित किया था।

कृपया स्मरण रखें कि साझा करने और देखभाल करने का दर्शन भारतीय संस्कृति के मूल में है। अगर हम जो हमारे पास है, उसे दूसरों के साथ साझा करने करते हैं, तो हमें जो प्रसन्नता मिलती है, वह व्याख्या से परे है और निरंतर बढ़ती रहेगी। पहुंच, समानता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए देश में ऑनलाइन शिक्षा पर भी अधिक ध्यान दिया गया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि एनआईटीटीटीआर- चेन्नई को स्वयं – शिक्षक प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में नामित किया गया है। यह निश्चित रूप से इसकी एक और उपलब्धि है और इसकी भरपूर सराहना की जानी चाहिए।

प्रिय बहनो और भाइयो,

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि एनआईटीटीटीआर- चेन्नई तकनीकी विषयों के लिए त्रिभाषी (अंग्रेजी – तमिल – हिंदी) शब्दकोश को विकसित करने में शामिल है। यह एक शिक्षण मंच है जिसका शानदार प्रभाव पड़ना निश्चित है। मैं हमेशा प्राथमिक या उच्च विद्यालय स्तर तक मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने के महत्व के महत्व को रेखांकित करता रहा हूं। यह मेरी धारणा है और अध्ययनों से यह भी पता चला है कि मातृभाषा में पढ़ाई करने से समझ बेहतर होगी।

जिस वातावरण में हम पढ़ाते हैं, उसका सामग्री को समझने में बहुत प्रभाव पड़ता है। शिक्षण स्थलों को समग्र शिक्षा और व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छता, हरियाली और स्थायित्व के महत्व पर भी अपना ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

इस सम्बन्ध में आज खेल परिसर का उद्घाटन करते हुए मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है। यह मेरा दृढ़ विश्वास रहा है कि अकादमिक कार्य और शारीरिक स्वास्थ्य साथ-साथ होना चाहिए। अगर आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं तो मानसिक रूप से भी आप सतर्क रहेंगे। इस महामारी ने एक बार फिर बेहतर प्रतिरक्षा और सेहत के लिए शारीरिक स्वास्थ्य के महत्व को रेखांकित किया है। आपको अपने छात्रों को नियमित रूप से कुछ खेल खेलने या योग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

बहनो और भाइयो,

शिक्षक भारतीय समाज की धुरी हैं। शिक्षक उच्चतम मानवीय परंपराओं में देवत्व के अवतार हैं। इन आदर्शों से मेल खाने के लिए शिक्षकों को अपनी भूमिका की प्रधानता का अनुभव होना चाहिए और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की भावना के साथ इसे निभाना चाहिए।

अपने संबोधन को समाप्त करने से पहले मैं संत-कवि तिरुवल्लुवर को उद्धृत करना चाहूंगा, जिन्होंने अपने थिरुक्कुरल के दोहे में शिक्षा के उद्देश्य को शानदार ढंग से संक्षेप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा : “मनुष्य जो कुछ सीखे वह अच्छी तरह सीखे और उसका आचरण उसकी शिक्षा के अनुरूप हो।”

अंत में, मैं एनआईटीटीटीआर- चेन्नई के सभी शिक्षकों और कर्मचारियों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं, जो इस प्रतिष्ठित संस्थान को वैश्विक मानकों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

जय हिंद!”

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