‘सेनिटेशन ईकोसिस्टम’ बदलने की दिशा में मार्गदर्शक बने ‘वॉटर प्लस शहर’

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नई दिल्ली, 12 मई।शहरी जल परिदृश्य निरंतर बदल रहा है और जल संरक्षण समेत उसका रीयूज़ करना शहरों का लक्ष्य बन चुका है। स्वच्छ भारत मिशन शहरी के अंतर्गत अब शहरों से निकलने वाले इस्तेमाल किए जा चुके पानी को महत्व दिया जा रहा है। एक बार उपयोग में लाए जा चुके पानी को विभिन्न कामों के लिए एकत्रित, संसाधित, रीसाइकल और रीयूज़ करने पर बल दिया जा रहा है।

सस्टेनेबिलिटी शहरी स्वच्छता का अभिन्न अंग है। वॉटर प्लस प्रमाणिकता के अनुसार घरों और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले वेस्ट के रूप में पानी को संतोषजनक पैमाने तक ट्रीट किया जाए और उसके बाद ही जलाशयों में छोड़ा जाए। शहरों में अब सभी के लिए पानी की उपलब्धता और सस्टेनेबल मैनेजमेंट सुनिश्चित किए जा रहे हैं, जो कि स्थायी विकास के लक्ष्यों की ओर एक और मजबूत कदम है। शहरी स्थानीय निकायों के पास शहरों के लिए ‘लॉन्ग-टर्म वेस्ट वॉटर रीयूज़ प्लान’ बनाने की क्षमता है, जिसमें सभी के लिए भूमिकाएं और उत्तरदायित्व साफ तौर पर निर्धारित किए गए हैं।

यूज़्ड वॉटर मैनेजमेंट अप्रोच
शहरी जल संसाधनों के तहत इस्तेमाल हो चुके पानी को केवल एकत्रित, संसाधित और उसका वहन ही नहीं कर रहे बल्कि सस्टेनेबल सेनिटेशन और यूज्ड वॉटर मैनेजमेंट के लिए उच्चतम स्तर के प्रयास कर रहे हैं। सस्टेनेबल सिटीज़ बनने की राह में ये शहर सर्कुलर इकॉनमी के लक्ष्य तक पहुंचने की अपनी प्रतिबद्धता भी जता रहे हैं। ODF++ प्रोटोकॉल के ज़रिए, शहरों का मूल्यांकन इस बात पर किया जा रहा है कि वे फीकल स्लज और सेपटेज समेत सारे सीवेज का सुरक्षित निपटान कर रहे हैं या नहीं। वहीं वॉटर प्लस प्रोटोकॉल शहरों को इस दृष्टिकोण से आंक रहा है कि वे इस्तेमाल हो चुके पानी को कलेक्ट, ट्रांसपोर्ट और ट्रीट ही नहीं कर रहे बल्कि फीकल स्लज और इस्तेमाल हो चुके पानी को रीयूज़ करे रहे हैं, ताकि पर्यावरण दूषित न हो।

आज बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति अपने चरम पर है और कई लोग इस्तेमाल किए गए पानी को रीयूज़ कर घरों और शहरों के निर्माण में जुट गए हैं। एसबीएम 2.0 के तहत छोटे शहरों के लिए 4900 एमएलडी की क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के लिए 11,785 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

वॉटर प्लस शहर
इंदौर, सूरत, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी), तिरुपति, चंडीगढ़, नवी मुंबई, विजयवाड़ा, हैदराबाद, ग्रेटर विशाखापत्तनम, कराड, पंचगनी, भोपाल, बारामती और मैसूर सभी वॉटर+ प्रमाणित शहर हैं। ये शहर अन्य शहरों के लिए पथप्रदर्शक रहे हैं। यह शहर न केवल उपयोग किए गए पानी को इकट्ठा करने और सुरक्षित रूप से ट्रीट करने में सक्षम हैं बल्कि द्वितियक/तृतीयक उपचार के बाद पानी को रीयूज़ करने में भी सक्षम हैं। भारत तेज़ी से ट्रीटेड अपशिष्ट जल के रीयूज़ के लिए बढ़ते बाज़ारों में से एक के रूप में उभर रहा है, विशेष रूप से औद्योगिक रीयूज के लिए।

इंदौर का जल संरक्षण मॉडल
वॉटर प्लस सर्टिफिकेशन पाने वाला पहला शहर बनने के बाद इंदौर ने एक और उपलब्धि अपने नाम कर ली है। इंदौर ने स्थायी स्वच्छता में एक मुकाम हासिल किया और ऐसे जल प्रबंधन प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जो न केवल अनुकरणीय थे, बल्कि कई छोटे शहरों को प्रेरित करने वाले भी थे। वर्तमान में, इंदौर में नदियों और प्राकृतिक और मानव निर्मित बरसाती नालों से कोई अनट्रीटेड अपशिष्ट जल नहीं बह रहा है। 2020 तक, इंदौर में मौजूदा 3 केंद्रीकृत एसटीपी के अलावा 7 विकेंद्रीकृत एसटीपी थे और ट्रीटेड अपशिष्ट जल ले जाने के लिए 200 किलोमीटर से अधिक पाइप नेटवर्क बिछाया जा चुका था। मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर ने जल संरक्षण (भूजल और सतही जल) के लिए प्रयास शुरू किए और 2022 में 4 महीने के अंदर शहर भर के अलग-अलग आवासीय और गैर-आवासीय क्षेत्रों में 1.25 लाख से अधिक बारिश का पानी संचयन की इकाइयां स्थापित कीं।

नवी मुंबई का वॉटर प्लस का सफर
नवी मुंबई 5 स्टार और वॉटर प्लस प्रमाणन हासिल करने वाला महाराष्ट्र का एकमात्र एवं पहला शहर है। नवी मुंबई ने सीवेज उपचार प्रौद्योगिकी में सुधार किया और 30 लाख की आबादी के सीवेज उपचार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एसटीपी डिज़ाइन किया।

इस शहर में 100% मशीनीकृत सीवर लाइन और सेप्टिक टैंक की सफाई की जाती है। 30 से अधिक शहर के उद्यानों में 30% से अधिक ट्रीटेड पानी का दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है। सभी ठोस-अपशिष्ट वाहनों, कॉम्पैक्टर, सिटी ट्रांसपोर्ट बसों, स्प्रिंकलर और सड़क डिवाइडरों की सफाई ट्रीटेड वॉटर से की जाती है।

ज्वेल ऑफ द ईस्ट कोस्ट
आंध्र प्रदेश पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां के तीन शहर- तिरुपति, विजयवाड़ा और विशाखापत्तनम वॉटर प्लस श्रेणी में आ गए हैं। वाईज़ैग में 172 एमएलडी की कुल क्षमता वाले 17 अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र हैं। सीवेज वॉटर को बेहतर स्तर तक ट्रीट करने के लिए शहर ने सभी घरों को अंडर ग्राउंड नेटवर्क (यूजीडी) को एकीकृत क्लस्टर में लाने के उपाय किए हैं। जीवीएमसी ने मैन्युअल सफाई से बचने के लिए मैनहोल की सफाई के लिए रोबोटिक मशीन (बैंडिकूट) पेश की है।

225 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का सबसे तेज निर्माण और कमीशनिंग
इस परियोजना का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि बुद्धा दरिया में केवल घरेलू उपयोग किए गए पानी या ताजा/ तूफानी पानी का ही प्रवाह हो जिससे भूजल की गुणवत्ता में सुधार हो। 17 मार्च, 2021 को शुरू हुई यह परियोजना 2 दिसंबर, 2022 यानी 625 दिनों तक कोविड-19 महामारी के सामने आने वाली चुनौतियों के बावजूद पूरी हो गई। इसकी तेजी से कार्य करने के कारण परियोजना पूरी हुई और इसे इंटरनेशनल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया।

स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0 का लक्ष्य 2026 तक सभी शहरों में सीवेज सुविधाएं स्थापित करना है, जिसमें कम से कम 50% शहर वॉटर+ हों।

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