आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जानें पर निर्वाचित प्रतिनिधि को चुनाव लड़ने के लिए आजीवन अयोग्य ठहराये जाने की मांग

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नई दिल्ली, 9नवंबर। आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि होने पर सांसदों और विधायकों पर चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी हाईकोर्ट को सांसदों/विधायकों से जुड़े मामलों की प्रभावी निगरानी और निपटान के लिए स्वत: संज्ञान मामला दर्ज करना चाहिए. एक समान दिशानिर्देश बनाना मुश्किल है.
सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए निर्देश जारी किए.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एमपी/एमएलए के खिलाफ मामलों के त्वरित निपटारे से संबंधित ट्रायल कोर्ट के लिए एक समान दिशानिर्देश बनाना उसके लिए मुश्किल होगा.

याचिका में क्या मांग की गई थी?

बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका में आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद निर्वाचित प्रतिनिधि को चुनाव लड़ने के लिए आजीवन अयोग्य ठहराये जाने की मांग की गई है.

याचिका में कहा गया है कि सरकारी सेवाओं में कार्यरत लोगों अन्य नागरिकों के आपराधिक मामलों में दोषी ठहराये जाने की तुलना में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत ऐसे मामलों के बाद सांसदों को अयोग्य ठहराए जाने से संबंधित कानून में ‘स्पष्ट असमानता’ है.

याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि अगर एक कांस्टेबल पर आपराधिक मामले सिद्ध होता है तो उसे सजा मिलती है. अपनी नौकरी खो देता है. वहीं दूसरी ओर एक सांसद गंभीर अपराध के लिए दोषी पाया जाता है तो वो केवल छह साल के लिए जेल जाता है. और बाहर आकर विधायक बन जाता है.

याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(1) की वैधता को भी चुनौती दी गई है, जिसमें यह प्रावधान है कि कोई सांसद एक आपराधिक मामले में सजा काटने के छह साल बाद विधायिका में वापस आ सकता है

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