केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कोलकाता में जेजेएम और एसबीएम (जी) पर 6 राज्यों के दिनभर चले क्षेत्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की

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6 प्रतिभागी राज्यों को केंद्रीय अनुदान के रूप में 2022-23 के लिए जेजेएम के तहत 13,105 करोड़ रुपये और एसबीएम-जी के तहत 1,344 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ 15वें वित्त आयोग के तहत बंधित अनुदान के रूप में अतिरिक्त 6,856 करोड़ रुपये आवंटित किए गए

‘हर घर जल’ एक समाज संचालित कार्यक्रम होना चाहिए न कि इंजीनियर संचालित कार्यक्रम: श्री गजेंद्र सिंह शेखावत

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने आज कोलकाता में छह (6) राज्यों के एक क्षेत्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की, जिसमें भाग लेने वाले राज्यों द्वारा जल जीवन मिशन और स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के तहत की गई प्रगति की समीक्षा की गई। सम्मेलन में जल शक्ति और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल और पश्चिम बंगाल सरकार के प्रभारी जन स्वास्थ्य इंजीनियरिंग (पीएचई) तथा पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री पुलक रॉय ने भाग लिया। बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मिजोरम, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ अधिकारियों ने ‘हर घर जल’ और ‘स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)’ कार्यक्रम को लागू करने में अपनी समस्याओं को साझा किया।

 

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केंद्रीय मंत्री ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, “जब 15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री द्वारा जल जीवन मिशन शुरू किया गया था, तो केवल 17 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास नल के पानी का कनेक्शन था। पिछले ढाई वर्षों में व्यवधानों और लॉकडाउन के बावजूद, हम 5.91 करोड़ से अधिक नल के पानी के कनेक्शन प्रदान करने में कामयाब रहे हैं और गांवों में 47.39 प्रतिशत घरों को स्वच्छ पेयजल से लाभ मिल रहा है। श्री शेखावत ने जोर देकर कहा, “सरकार के दो प्रमुख कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए धन की कोई कमी नहीं है, वर्ष 2022-23 के लिए, 100 प्रतिशत नल जल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने और गांवों में ओडीएफ और ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन को बनाए रखने के लिए 6 प्रतिभागी राज्यों को केंद्रीय अनुदान के रूप में 14,449 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।” उन्होंने आह्वान किया कि ‘हर घर जल’ एक समाज संचालित कार्यक्रम होना चाहिए न कि इंजीनियर संचालित कार्यक्रम। राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को एकल-ग्राम गुरुत्वाकर्षण-आधारित योजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि ये लंबे समय में संचालन और रखरखाव में सस्ती, टिकाऊ और किफायती हैं। जल जीवन मिशन के तहत योजनाओं के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करते समय लागत घटक की पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए।

 

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केंद्रीय मंत्री ने कहा, “देश को यह बताते हुए गर्व होता है कि भारत के सभी जिलों ने 2 अक्टूबर, 2019 को खुद को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया, जो सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 6 के तहत निर्धारित समय सीमा से बहुत पहले है।” उन्होंने गंगा नदी के किनारे बसे राज्यों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि अनुपचारित पानी की एक भी बूंद गंगा नदी में प्रवाहित न हो। यदि आवश्यक हो तो इन गांवों में एसएलडब्ल्यूएम गतिविधियों को चलाने के लिए विभिन्न योजनाओं से धन की व्यवस्था की जा सकती है।

जल जीवन मिशन प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित दर्शन ‘कोई भी छूट न जाए’ सुनिश्चित करने के लिए इसका अनुसरण करता है। जल शक्ति राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा कि ग्राम सभा की बैठक में ग्राम कार्य योजना का मसौदा तैयार किया जाता है, जिसमें सभी क्षेत्रों के लोग भाग लेते हैं और अगले 5 वर्षों के लिए एक रोडमैप तैयार करते हैं।

 

जल शक्ति और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा, “प्रधानमंत्री ने 2019 में हर ग्रामीण घर में नल के पानी का कनेक्शन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जल जीवन मिशन की शुरुआत की। योजना और निगरानी में सामुदायिक भागीदारी पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ग्राम जल और स्वच्छता समिति (वीडब्ल्यूएससी) और निगरानी समिति के सदस्यों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और स्थानीय लोगों को लंबे समय में जलापूर्ति बुनियादी ढांचे की मामूली मरम्मत और रखरखाव करने के लिए कुशल होना चाहिए। जिला स्तर पर जल परीक्षण प्रयोगशालाओं को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि हर घर और सार्वजनिक संस्थान में आपूर्ति किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। यह बहुत आवश्यक है कि हम पानी की गुणवत्ता और जिस पाइप से पानी बहता है, उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करें।”

 

15वें वित्त आयोग के तहत वर्ष 2022-23 के लिए ग्रामीण स्थानीय निकायों/पंचायती राज संस्थानों (आरएलबी/पीआरआई) के लिए कुल 27,908 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। अगले पांच वर्षों यानी 2025-26 तक 1,42,084 करोड़ रुपये का आवंटन सुनिश्चित है। भागीदार राज्यों के लिए, वर्ष 2022-23 के लिए पानी और स्वच्छता संबंधी गतिविधियों को पूरा करने के लिए बंधित अनुदान के रूप में 6,856 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

 

सार्वजनिक स्वास्थ्य और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की भलाई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए, केंद्रीय बजट 2022 में, जेजेएम के लिए निधि आवंटन 2021-22 के 45,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2022-23 में 60,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। एसबीएम (जी) के लिए वर्ष 2022-23 के बजट में 7,192 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

 

जेजेएम के तहत वर्ष 2022-23 के लिए, केंद्र द्वारा इन 6 राज्यों के लिए 13,105 करोड़ रुपये (बिहार – 2,699 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ – 1,308 करोड़ रुपये, झारखंड – 1,643 करोड़ रुपये, मिजोरम – 201 करोड़ रुपये, ओडिशा – 2,036 करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल – 5,218 करोड़ रुपये) संभावित रूप से आवंटित किए गए हैं। एसबीएम (जी) के तहत, उक्त राज्यों के लिए 1,344.71 करोड़ रुपये (बिहार – 499.50 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ – 149.88 करोड़ रुपये, झारखंड – 109.19 करोड़ रुपये, मिजोरम – 10.74 करोड़ रुपये, ओडिशा – 213.71 करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल – 361.69 करोड़ रुपये) संभावित रूप से आवंटित किए गए हैं।

 

ओडीएफ स्थिति तथा ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) को कायम रखने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एसबीएम (जी) चरण- II को फरवरी 2020 में 1,40,881 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया था। केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के तहत एसबीएम (जी) चरण II  वित्तपोषण के विभिन्न कार्यक्षेत्रों के बीच कन्वर्जेंस का एक नया मॉडल है। पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) और संबंधित राज्य के हिस्से द्वारा बजटीय आवंटन के अलावा, शेष राशि को ग्रामीण स्थानीय निकायों, मनरेगा, सीएसआर फंड और राजस्व सृजन मॉडल आदि के लिए 15वें वित्त आयोग से जुड़े अनुदान से जोड़ा जा रहा है, विशेष रूप से ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम)। एसबीएम (जी) के दूसरे चरण की अच्छी शुरुआत हुई है, जिसमें लगभग 65 लाख परिवार व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों (आईएचएचएल) से लाभान्वित हुए हैं। देश में 1.18 लाख से अधिक सामुदायिक शौचालय बनाए गए और 43,000 से अधिक गांवों ने खुद को ओडीएफ प्लस घोषित किया। 50,000 से अधिक गांवों को पहले ही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) व्यवस्थाओं से आच्छादित किया जा चुका है और 25,000 से अधिक गांवों ने तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एलडब्ल्यूएम) व्यवस्था पूरी की है।

 

भागीदार राज्यों में, एसबीएम-जी चरण II के दौरान निर्मित आईएचएचएल और सामुदायिक स्वच्छता परिसरों (सीएससी) की संख्या क्रमशः 19 लाख से अधिक और 15,000 से अधिक है और 4,000 से अधिक गांवों को ओडीएफ प्लस घोषित किया गया है।

 

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15 अगस्त, 2019 को जल जीवन मिशन की घोषणा के बाद से, देश भर में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। आज 9.15 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों में नल के पानी के कनेक्शन दिए गए हैं। कार्यक्रम के तहत अब तक 4.71 लाख ग्राम जल एवं स्वच्छता समितियां (वीडब्ल्यूएससी) गठित की जा चुकी हैं और 3.87 ग्राम कार्य योजनाएं (वीएपी) विकसित की जा चुकी हैं। देश में 9.26 लाख से अधिक महिलाओं ने उपलब्ध कराए गए पानी की गुणवत्ता की जांच करने के लिए फील्ड टेस्ट किट (एफटीके) का इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। ये महिलाएं हर गांव में गठित 5 सदस्यीय  निगरानी समिति का हिस्सा हैं। सम्मेलन में भाग लेने वाले 6 राज्यों में कुल 1.78 लाख गाँव हैं, इनमें से 42,385 गाँवों को 100 प्रतिशत नल का पानी उपलब्ध कराया गया है।

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास” के दृष्टिकोण  का अनुसरण करते हुए, देश में 101 जिले, 1,160 ब्लॉक, 67,729 ग्राम पंचायत और 1,40,111 गांव ‘हर घर जल’ बन गए हैं। तीन राज्यों – गोवा, तेलंगाना और हरियाणा और तीन केंद्रशासित प्रदेशों – अंडमान और निकोबार द्वीप समूह,  दादरा एवं नगर हवेली और दमन तथा दीव एवं पुडुचेरी ने 100 प्रतिशत नल जल कवरेज प्रदान किया है।

 

(लाख में)

राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश  कुल ग्रामीण परिवार मिशन की शुरुआत के समय स्थिति (15 अगस्त 2019 के अनुसार) मिशन की शुरुआत से लेकर उपलब्ध कराए गए   एफएचटीसी अब तक  एफएचटीसी का कवरेज
बिहार 172.21

 

 

3.16 (2%)

 

 

152.74 (89%)

 

155.91 (91%)

 

छत्तीसगढ

 

48.59

 

 

3.20 (7%)

 

 

6.16 (13%)

 

9.36 (20%)
झारखंड

 

59.23

 

3.45 (6%)

 

 

7.91 (13%)

 

11.36 (19%)

 

मिजोरम

 

 

 

1.33

 

 

0.09 (7%)

 

 

0.54 (41%)

 

0.64 (48%)

 

 ओडिशा

 

88.33

 

3.11 (4%)

 

35.51 (40%)

 

38.62 (44%)

 

पश्चिम बंगाल

 

177.23

 

2.15 (1%)

 

33.87 (19%)

 

36.02 (20%)

 

भारत

 

1,931.99

 

323.63 (17%)

 

591.86 (31%)

 

915.49 (47%)

 

 

भागीदार राज्यों में राज्यवार घरेलू नल के पानी का कनेक्शन उपरोक्त चार्ट में दिया गया है

 

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पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की सचिव श्रीमती विनी महाजन ने एजेंडा निर्धारित करते  हुए अपने उद्घाटन भाषण में कहा, “ये सरकार के दो बहुत ही महत्वाकांक्षी कार्यक्रम हैं जो ग्रामीण भारत में रहने वाले सभी लोगों के लिए नल के पानी की कनेक्टिविटी और शौचालय तक पहुंच प्रदान करने में सार्वभौमिक कवरेज को पूरा कर रहे हैं। अब हम आधे रास्ते में हैं, और अब समय आ गया है कि कार्यक्रम के कार्यान्वयन में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सामने आने आने वाली समस्याओं का जायजा लिया जाए। विश्व ने जल और स्वच्छता को मूलभूत आवश्यकता के रूप में मान्यता दी है। हम 2024 तक स्वच्छ पानी और ओडीएफ प्लस गांवों को सुनिश्चित करने के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और ग्राम पंचायतों के साथ घनिष्ठ साझेदारी में काम करते हैं। हमें उम्मीद है कि विचार-विमर्श के दौरान उठाए गए मुद्दों का समाधान किया जाएगा। केंद्र से धन और तकनीकी सहायता का आश्वासन दिया गया है।”

 

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सचिव ने कहा, “जेजेएम और एसबीएम (जी) के तहत हुई प्रगति पर विचार-विमर्श करने के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को मिलाकर क्षेत्रीय सम्मेलनों का आयोजन अखिल भारतीय स्तर पर किया जाता है। यह कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष है, क्योंकि हम बीच में पहुंच गए हैं, अगले वित्तीय वर्ष में प्रवेश करते ही निरंतर निगरानी की आवश्यकता है। यह आवश्यक है कि वार्षिक कार्य योजनाएं सावधानीपूर्वक तैयार की जाएं ताकि हमारी उपलब्धियां हमारे वार्षिक लक्ष्यों तक पहुंच पाएं। यह सम्मेलन कार्यान्वयन चुनौतियों पर चर्चा के अलावा 2022-23 के लिए हमारी वार्षिक योजनाओं को मजबूत करने का एक अवसर है। एसबीएम (जी) और जेजेएम दो परिवर्तनकारी मिशन हैं, जो विशेष रूप से महिलाओं और युवा लड़कियों को ‘जीवन की सुगमता’ प्रदान करते हैं। राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि 2022-23 के लिए राज्यों के बजट में जेजेएम के तहत राज्यों की पर्याप्त हिस्सेदारी का प्रावधान किया गया हो।”

जेजेएम और एसबीएम (जी) के  अपर सचिव और मिशन निदेशक श्री अरुण बरोका ने सम्मेलन में जेजेएम और एसबीएम (जी) दोनों की स्थिति पर विस्तृत प्रस्तुति देते हुए जोर दिया कि “राज्यों को स्रोत के रूप में ‘हर घर जल’ से आगे बढ़कर सोचना चाहिए। लंबे समय तक पानी की आपूर्ति में मजबूती और स्थिरता का प्रमुख महत्व है। शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है जहां लोगों की चिंताओं को सुनकर समय पर  समाधान किया जाता है। जलापूर्ति योजनाओं के संचालन और रखरखाव को पंचायत और समुदाय को सौंपना होगा जो गांव में पानी की आपूर्ति के बुनियादी ढांचे के अंतिम संरक्षक होंगे। सभी वीएपी में ग्रे-वाटर प्रबंधन शामिल होना चाहिए, ताकि भूजल रिचार्ज हो और उपचारित पानी का पुन: उपयोग किया जा सके।”

 

एसबीएम (जी)  के बारे में अपर सचिव एवं प्रबंध निदेशक ने कहा, “राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को किसी भी बाधा से बचने के लिए स्वच्छता स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ओडीएफ सत्यापन के दूसरे दौर को अंजाम देने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के तहत व्यवहार परिवर्तन गतिविधियों को जारी रखना चाहिए क्योंकि शौचालयों का निर्माण हो जाने से काम समाप्त नहीं हो जाता है। यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि शौचालय का उपयोग सभी लोगों द्वारा हर समय किया जाए।”

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देश में कुल 117 आकांक्षी जिले हैं, जबकि इनमें से 58 जिले भागीदार राज्यों से हैं। कार्यक्रम के तहत अब तक भागीदार राज्यों के सभी आकांक्षी जिलों में, कवरेज 18 प्रतिशत से 89 प्रतिशत के बीच है। इसमें तेजी लाने की जरूरत है ताकि क्षेत्र में रहने वाले लोगों को जल्द ही पीने का साफ पानी मिल सके।

 

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‘हर घर जल’ में ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं की योजना बनाने और उन्हें लागू करने के लिए नीचे से ऊपर की ओर दृष्टिकोण की परिकल्पना की गई है। कार्यक्रम के तहत अब तक इन भाग लेने वाले राज्यों में 95,087 ग्राम जल और स्वच्छता समितियों (वीडब्ल्यूएससी) का गठन किया गया है और 73,591 ग्राम कार्य योजनाएं (वीएपी) तैयार की गई हैं। गांवों में 1.33 लाख से अधिक महिलाओं को जल गुणवत्ता निगरानी और निगरानी (डब्ल्यूक्यूएम एंड एस) गतिविधियों को करने के लिए फील्ड टेस्ट किट (एफटीके) का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। ये महिलाएं हर गांव में गठित 5-महिला निगरानी समिति का हिस्सा हैं जो स्रोतों और वितरण बिंदुओं पर पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करती हैं और यदि कोई संदूषण पाया जाता है तो रिपोर्ट करती हैं ताकि तत्काल उपचारात्मक कार्रवाई शुरू की जा सके।

 

विषय विशेषज्ञों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने 15वें वित्त आयोग की निधि के साथ जल और स्वच्छता गतिविधियों को सुनिश्चित करने में ग्रामीण स्थानीय निकायों की भूमिका पर तकनीकी सत्र आयोजित किए। सम्मेलन में ग्रे-वाटर प्रबंधन पर एक विशेष सत्र समर्पित किया गया। जल जीवन मिशन के क्रियान्वयन में गुणवत्ता संबंधी पहलुओं पर विशेष सत्र का आयोजन किया गया।

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