कुछ भ्रमित लोग हमारे पारंपरिक ज्ञान का बिना अध्ययन किए ही उन्हें अवैज्ञानिक, पुरातन बता कर अस्वीकार कर देते हैं- उपराष्ट्रपति

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नई दिल्ली, 09 मार्च। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हमारी पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के प्रति पूर्वाग्रहों का मुकाबला करके उनका पता लगाने और उनकी फिर से तलाश करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जो भ्रमित हैं और अराजकता फैलाने वाले हैं तथा सवाल करते हैं, वे हमारे पारंपरिक ज्ञान का बिना अध्ययन किए ही उन्हें अवैज्ञानिक, पुरातन बता कर अस्वीकार कर देते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा ‘‘शैक्षणिक चर्चाओं के कुछ विशेष वर्गों में भारतीय ज्ञान और भारतीय ज्ञान प्रणाली के विरुद्ध इस प्रकार का पूर्वाग्रह आधुनिक वैज्ञानिक मनोभाव की धारणा के विपरीत है।’’

केरल के तिरुवनंतपुरम में राजनक पुरस्कार समारोह के दौरान उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि कोई राष्ट्र केवल अपनी सरहदों से नहीं बल्कि अपनी संस्कृति की गहराई से जाना जाता है। यह विचार व्यक्त करते हुए कि संस्कृति आत्मा की शांति, संतुष्टि और आंतरिक विकास लाती है, उन्होंने हमारी संस्कृति के लिए अधिक समय समर्पित करने की अपील की।

उपराष्ट्रपति ने संस्कृति को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए जोर देकर कहा, ‘‘मैं युवाओं, उद्योग जगत और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों से अपील करता हूं कि उन्हें जहां तात्कालिक मामलों पर अवश्य फोकस करना चाहिए, उन्हें कभी भी हमारी सांस्कृतिक संपदा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।’’

उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब हमने अयोध्या में राम मंदिर का अभिषेक किया तो समस्त विश्व प्रसन्नता में डूब गई। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम ने दो चीजों को प्रदर्शित किया – हम अपनी सांस्कृतिक पहचान में विश्वास करते हैं और इसी के साथ साथ हम कानूनी व्यवस्था में भी विश्वास करते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इससे पांच शताब्दियों की कष्टदायी पीड़ा का अंत हो गया।

यह दोहराते हुए कि हमारे सदियों पुराने सभ्यतागत लोकाचार हमेशा विविधताओं से परे, आध्यात्मिक एकता से ओत-प्रोत रहे हैं, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि केरल में अभी भी कश्मीर शैव धर्म का पालन करने वाले 13 काली मंदिर, कश्मीर से केरल तक भारत की भावना के गहरे एकीकरण का उदाहरण देते हैं।

कानूनी क्षेत्र में अपने विशाल अनुभव के आधार पर उन्होंने कहा, “यह चिरस्थायी एकता हमारे संविधान के अक्सर छूटे हुए पहलुओं में से एक – हमारे इतिहास और महाकाव्यों के रेखाचित्र, जो प्रसिद्ध कलाकार नंद लाल बोस द्वारा हमारे संविधान की मूल पांडुलिपि में तैयार किए गए हैं, में प्रतिबिंबित होती है।”

इन रेखाचित्रों को हमारे संविधान का अभिन्न अंग बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ये भारत के गौरवशाली इतिहास और उसके आध्यात्मिक-नैतिक सिद्धांतों की हमारी सामूहिक स्मृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अपने संबोधन में, वीपी ने प्रसन्नता व्यक्त की कि महिला दिवस पर, सामाजिक प्रगति के लिए समर्पित और समाज के कमजोर वर्गों के विकास के लिए प्रतिबद्ध एक प्रतिष्ठित महिला डॉ. सुधा मूर्ति को भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया है – जो खुद एक जनजातीय महिला हैं।

नारी शक्ति वंदन अधिनियम के पारित होने का उल्लेख करते हुए, उन्होंने भारत को “महिला नेतृत्व वाले सशक्तिकरण का केंद्र” बताया।

पुरस्कार समारोह के दौरान दो प्रतिष्ठित विद्वानों – डॉ. मार्क डाइक्ज़कोव्स्की और डॉ. नवजीवन रस्तोगी को कश्मीर शैववाद के प्रति उनके समर्पण के लिए राजनक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह ध्यान दिया जा सकता है कि ‘राजनक’ पुरस्कार शक्ति और ज्ञान के मिलन का प्रतीक एक प्राचीन उपाधि है।

इस कार्यक्रम में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, प्रज्ञाप्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार, अभिनवगुप्ता इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के निदेशक डॉ. आर रामनाडा और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।

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