भारत ब्रिटेन विज्ञान और नवाचार नीति डायलॉग ने भविष्य के भारत-ब्रिटेन सहभागिता की प्राथमिकताओं पर चर्चा की

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भारत ब्रिटेन विज्ञान और नवाचार नीति डायलॉग (वार्ता) ने स्टार्टअप इकोसिस्टम, नेट-जीरो इकनॉमी, जलवायु परिवर्तन को कम करने व अनुकूलन, टिकाऊ प्रौद्योगिकियों, स्वास्थ्य नवाचारों, स्वच्छ ऊर्जा, अनुसंधान व विकास रूपांतरण और नई व उभरती हुई तकनीकों को मजबूत करने पर ध्यान देने के साथ भविष्य की भारत-ब्रिटेन सहभागिता की प्राथमिकताओं पर चर्चा की।

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. एस चंद्रशेखर ने रोड शो जैसी गतिविधियों के जरिए निवेशकों और युवा नवोन्मेषकों को एक साथ लाने का सुझाव दिया, जिससे अकादमिक पृष्ठभूमि वाले स्टार्टअप को विचार के स्तर से उत्पाद के व्यावसायीकरण तक सहायता दी जा सके।

डॉ. एस चंद्रशेखर ने कहा, “हमारा विश्वास है कि आज हम जिन वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वे भू-राजनीतिक सीमाओं को नहीं मानती हैं और इसलिए वैज्ञानिक सहभागिता के जरिए इसे प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा सकता है, न कि प्रतिस्पर्धा के माध्यम से। वैश्विक स्तर पर भारतीय वैज्ञानिकों को बुनियादी और मौलिक शोध के लिए मान्यता प्राप्त है। हालांकि, संपत्ति सृजन और प्रयोगशाला से बाजार रूपांतरण के लिए अनुसंधान को वाणिज्यिक तकनीकों में बदलना एक चुनौती है, जिसका हमें डटकर मुकाबला करने की जरूरत है।”

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डॉ. चंद्रशेखर ने इसका उल्लेख किया कि व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य उत्पादों, प्रक्रियाओं या सेवाओं के विकास के लिए संयुक्त अनुसंधान और दोनों देश की सरकारों की ओर से अनुसंधान व विकास पर खर्च की गई धनराशि से आम आदमी को आर्थिक व सामाजिक लाभ मिलेगा।

उन्होंने कहा, “आज जब भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ का उत्सव मना रहा है, भारत के लिए अगले 25 वर्षों का रोडमैप जीवन के सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक और तकनीकी नवाचारों के माध्यम से निर्धारित किया जाएगा।”

ब्रिटेन सरकार के वाणिज्य, ऊर्जा और औद्योगिक रणनीति विभाग में मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार व ब्रिटेन के सह-अध्यक्ष प्रोफेसर पॉल मॉन्क्स ने इस बात को रेखांकित किया कि दोनों देशों के पास कुछ बेहतरीन वैज्ञानिक मस्तिष्क हैं, उन्हें अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने के लिए जलवायु अनुकूलन व निपटान समाधानों के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने पर मिलकर काम करने की जरूरत है और देशों को एक नेट-जीरो अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना है, जो भविष्य की एक प्रमुख चुनौती है।

भारत में ब्रिटेन के उच्चायुक्त अलेक्जेंडर एलिस ने एक प्रतिस्पर्धी विश्व में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने आगे कहा कि दोनों देशों के पास सहयोग की मजबूत विरासत है, इन्हें वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को सक्षम करने, अनुसंधान व विकास के रूपांतरण आदि जैसी चुनौतियों पर काम करना चाहिए।

भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पश्चिम यूरोप) श्री संदीप चक्रबर्ती ने इस बात को रेखांकित किया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी दोनों देशों के बीच सहयोग के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है और इस पर बहुत विस्तार से चर्चा करने की जरूरत है। भारत ब्रिटेन एसटीआई सहभागिता मुख्य रूप से मानव क्षमता निर्माण, संयुक्त अनुसंधान और शोध को अनुप्रयुक्त तकनीकों में रूपांतरित करने पर केंद्रित है।

वहीं, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतरराष्ट्रीय प्रभाग के प्रमुख श्री एस के वार्ष्णेय ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी दी। इसके अलावा उन्होंने पांच प्रमुख प्रौद्योगिकी मिशन- साइबर-भौतिक प्रणालियों, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन, क्वांटम साइंस व टेक्नोलॉजी, स्वच्छ ईंधन: मेथनॉल मिशन और मैप इंडिया के बारे में बात की।

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इसके अलावा प्रतिनिधियों ने कई क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं पर भी चर्चा की। इनमें पर्यावरणीय सेंसर पर भारत ब्रिटेन परीक्षण (स्कोपिंग) गतिविधियां, सीसीयूएस प्रौद्योगिकियां, विद्युत गतिशीलता, नेट-जीरो प्रौद्योगिकियां, उन्नत विनिर्माण, उद्योग अनुसंधान व विकास कार्यक्रम का पुनरुद्धार और विज्ञान का विस्तार, नई व उभरती हुई तकनीकें, विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी, स्टार्ट-अप्स व नवाचार, न्यूटन-भाभा पीएचडी प्लेसमेंट व अन्य फैलोशिप कार्यक्रमों संरक्षण व सुदृढ़ीकरण, हरित हाइड्रोजन में भारत ब्रिटेन उत्कृष्टता केंद्र, ब्रिटेन की शीर्ष प्रयोगशालाओं (पावर) में महिला शोधकर्ताओं को शामिल करना, प्रारंभिक कैरियर शोधकर्ताओं के लिए संस्थागत जुड़ाव, वज्र की आउटरीच (पहुंच) और ब्रिटेन के अकादमिक समुदाय में एसआईआरई कार्यक्रम (अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम) शामिल हैं।

इस नीति वार्ता में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी) के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। भारत और ब्रिटेन भविष्य में इस चर्चा को और आगे बढ़ाने के लिए बातचीत करेंगे।

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