शिव के बाद मोहन राज . . . बीजेपी ने कैसे बुनी बूथ से व्यूह रचना . . .

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ब्रजेश राजपूत ⁠
लाल परेड ग्राउंड के मोतीलाल स्टेडियम पर नये मुख्यमंत्री डा मोहन यादव का शपथ ग्रहण समारोह तकरीबन समाप्त हो गया था। दूर जिलों से आये लोग बैरिकेड फांदकर अपने अपने नेताओं के करीब आकर सेल्फी ले रहे थे। टीवी रिपोर्टर शपथ के बाद लौटने को बेताब नेताओं की बाइट और इंटरव्यू लेने की मारामारी में लगे थे और इसी सब के बीच एक लंबा उंचा बुजुर्ग नेता खडा था जो उस मैदान पर फैले उल्लास को बहुत गंभीरता से महसूस कर रहा था हैरानी ये थी कि इस नेता को बहुत कम लोग ही पहचान पा रहे थे मगर उस नेता का इस लाल परेड ग्राउंड से गहरा संबंध था। ये थे प्रोफेसर कप्तान सिंह सोलंकी। 2003 में इस मैदान पर ऐसा ही मजमा जुडा था। वो शपथ ग्रहण समारोह था तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती का जिसे बीच लाल परेड ग्राउंड में किया गया था। तब भी मंच पर ऐसे ही एक तरफ साधु संतों को बैठाया गया था और उन सबने देश की पहली महिला सन्यासी मुख्यमंत्री को फूल बरसा कर आशीर्वाद दिया था। हजारों लोगों की भीड के सामने तब भी उस समय बीजेपी के संगठन मंत्री कप्तान सिंह सोलंकी ऐसे ही उल्लास को महसूस कर रहे थे। 2003 की बीजेपी की अब तक की सबसे बडी 173 सीटों वाली जीत के प्रमुख रणनीतिकार कप्तान सिंह ही थे। जिन्होंने पर्दे के पीछे से छोटे कद की उमा भारती को ऐसी जबरदस्त ताकत दी कि दस साल की कांग्रेस सरकार बुरी तरह धराशायी हुयी और आज तक उठ नहीं पायी। बीजेपी की 2023 की जीत के मुकाबले दस सीटें कम जरूर हैं मगर बीस साल बाद फिर से 163 सीटों के साथ पांचवी बार सरकार बना लेना किसी बडे राजनीतिक चमत्कार से कम नहीं रहा।
2003 से 2023 तक की इस जीत को कैसे देखते हैं आप जब मैंने सवाल किया तो अपनी उंची आवाज में कप्तान सिंह बोल उठे देखो भाई जो पार्टी समाजों के बीच घुसकर काम करती है वही इस तरह लगातार जीतती है। इसके अलावा लगातार जीतने की कोई वजह नहीं देखता। और ये सच है कि बीजेपी ने इन सालों में लगातार समाज की बीच पैठकर काम किया है। फिर चाहे वो आदिवासी समाज हो या दलित या पिछड़ा वर्ग की जातियां। बीजेपी और आरएसएस के सारे संगठन चुनाव से पहले से ही समाजों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को दूर कर अपनी पैठ बनाते हैं उन समाजों का आत्म गौरव बढ़ाते हैं फिर उनको बीजेपी के वोटरों में बदलते हैं। तभी तो मध्यप्रदेश में बनिया ब्राह्मणों की पार्टी आज ओबीसी से लेकर दलित और आदिवासियों की पसंदीदा पार्टी बन गयी है। इस चुनाव मे बीजेपी ने साढे अडतालीस फीसदी से ज्यादा वोट लाकर साबित कर दिया कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को वोटरों से वोट डलवाना आता है। बीजेपी के चुनाव अभियान को शुरू से देखें तो पार्टी सरकार के मोर्चे पर भले ही थकी हारी और एंटी इंकम्बेंसी की जबरदस्त लहर का सामना कर रही थी मगर संगठन ने बिना उन पहलुओं को देखें अपना काम लगातार जारी रखा। प्रदेश के 64523 मतदान बूथों पर एक साल में बीस से ज्यादा छोटे बडे कार्यक्रम कर बूथ पर मौजूद कार्यकर्ता को ना केवल चार्ज रखा बल्कि उसे अहसास कराया कि वो व्यक्ति पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाने जा रहा है। बूथ समितियां, पन्ना प्रमुख, अर्ध पन्ना प्रमुख और उनके बयालीस हजार से ज्यादा वाट्सएप ग्रुप बनवाना और उनके सम्मेलन कराने पर ही बीजेपी के एक बडे वर्ग ने फोकस रखा। मेरा बूथ सबसे मजबूत का नारा देने तो 26 जून को प्रधानमंत्री मोदी स्वयं भोपाल आये और देश भर से आये कार्यकर्ताओं को बूथ पर काम करने को भेजा। मतदाता सूचियों में नाम जोडने से लेकर मतदान के दिन जागरण अभियान यानिकी सभी छोटे बडे कार्यकर्ता को ग्यारह वोटरों को मतदान केंद्र तक ले जाने की जिम्मेदारी दी गयी। बूथ पर इसी सक्रियता के कारण पार्टी ने पचास प्रतिशत वोट शेयर का जो अविश्वसनीय लक्ष्य रखा था उसके करीब 48 दशमलव छह दो तक पहुंचा और बीजेपी सरकार के बुरे हाल और अनाकर्षक प्रचार अभियान के बाद भी पार्टी की झोली में 163 सीटें डाल कर बीजेपी को पांचवी बार सरकार बनवा दी। इसके ठीक उलट कांग्रेस मानती रही कि सरकार विरोधी लहर का फायदा उसे मिलेगा वोट उसकी झोली में अपने आप आकर गिरेंगे। मगर हुआ उल्टा कांग्रेस 2018 के अपने पुराने चालीस प्रतिशत वोट पर खडी रह गयी। बाकी सारे बिखरे वोट बीजेपी ने बटोरे और मुश्किल दिख रहे मुकाबले को एकतरफा तरीके से जीत लिया।
बुजुर्ग कप्तान सिंह सोलंकी यही इशारा कर कह रहे थे यानिकी जो पार्टी जमीन पर लोगां के बीच जाकर लगातार पांच साल काम करेगी उसे बीस साल बाद हराना भी कठिन होगा। उम्मीद है कांग्रेसी इस सबक को समझ गये होंगे।

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