क्षमता निर्माण भारत को वैश्विक रूप से अच्छी प्रयोगशाला प्रथाओं में अग्रणी बना सकता है : सचिव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग

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विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव डॉ. एस चंद्रशेखर ने इस बात का उल्लेख किया है कि देश में अच्छी प्रयोगशाला प्रथाओं (जीएलपी) पर भविष्य में क्षमता निर्माण पर सरकार की प्रतिबद्धता और बल के साथ इस क्षेत्र में भारत का एक वैश्विक नेता बनना निश्चित है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की मूल्यांकन टीम की उद्घाटन बैठक में डॉ चंद्रशेखर ने कहा कि “3 मार्च,2011 को भारत को डेटा की पारस्परिक स्वीकृति (एमएडी) के पूर्ण पालनकर्ता का दर्जा प्राप्त हुआ, जिससे भारत के गैर-नैदानिक ​​सुरक्षा डेटा को दुनिया भर में इसकी विश्वसनीयता और स्वीकार्यता में जबरदस्त वृद्धि करके वैश्विक मान्यता मिली है”। यह मूल्यांकन टीम राष्ट्रीय जीएलपी कार्यक्रम की प्रक्रियाओं और प्रथाओं के ऑन-साइट मूल्यांकन (ओएसई) के लिए देश का दौरा कर रही है।

डेटा की पारस्परिक स्वीकृति (एमएडी) उन निर्णयों का एक समूह है जो आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा विकसित प्रयोगशाला प्रथाओं के विनियमन के लिए हमारे राष्ट्रीय दृष्टिकोण के अनुरूप है। ओईसीडी एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो बेहतर नीतियों के निर्माण के लिए काम करता है। डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि एमएडी की इस स्थिति ने न केवल अच्छी प्रयोगशाला प्रथाओं की परीक्षण सुविधाओं (टीएफ) के विश्वास को बढ़ाया है, बल्कि व्यिपार के लिए तकनीकी बाधाओं को भी दूर किया है।

भारत के राष्ट्रीय जीएलपी अनुपालन निगरानी कार्यक्रम को राष्ट्रीय जीएलपी अनुपालन निगरानी प्राधिकरण (एनजीसीएमए) के माध्यम से लागू किया जाता है, जो इसके अध्यक्ष के रूप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव के प्रशासनिक नियंत्रण में होता है। ओईसीडी सदस्य और पूरी तरह से अनुयायी गैर-सदस्य देशों के अनुपालन निगरानी प्राधिकरणों (सीएमएएस) का मूल्यांकन ओईसीडी के मार्गदर्शन दस्तावेज के अनुसार ‘ राष्ट्रीय जीएलपी अनुपालन निगरानी कार्यक्रमों के ऑन-साइट मूल्यांकन के लिए निर्धारित प्रक्रियाओं और प्रथाओं ‘ के अनुसार किया जाता है। मार्गदर्शन दस्तावेज हर 10 साल में ओईसीडी देशों और पूर्ण अनुयाई गैर-सदस्य देशों के जीएलपी अनुपालन निगरानी कार्यक्रमों के ओएसई को पारस्परिक संयुक्त यात्राओं (एमजेवी) के माध्यम से करना अनिवार्य बनाता है।

डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि वर्तमान में देश में 52 परीक्षण सुविधाओं को एनजीसीएमए द्वारा जीएलपी अनुपालन के रूप में प्रमाणित किया गया है, जिसमें 3 सरकारी प्रयोगशालाएं-राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान [ एनआईपीईआर–मोहाली], भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) लखनऊ और केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई), लखनऊ शामिल हैं। उन्होंने कहा कि “भारतीय जीएलपी परीक्षण सुविधाओं (टीएफ) की गतिविधियों का दायरा व्यापक है, जिसमें दस प्रकार के रसायन/परीक्षण मदें और विशेषज्ञता के नौ क्षेत्र शामिल हैं“। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय जीएलपी कार्यक्रम ने न केवल देश में जीएलपी टीएफ का एक नेटवर्क बनाने में मदद की है, बल्कि अत्यधिक सक्षम मानव संसाधनों की एक बड़ी संख्या को भी विकसित किया है।

डीएसटी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ अखिलेश गुप्ता ने कहा कि भारतीय एनजीसीएमए का आखिरी ऑन-साइट मूल्यांकन 2010 में कराया गया था। मूल्यांकन दल की टिप्पणियों के आधार पर ही एनजीसीएमए ने अपने निरीक्षकों के कठोर प्रशिक्षण और जीएलपी निरीक्षणों की मजबूती और पारदर्शिता को और अधिक बढ़ाने के लिए कार्य किया था। उन्होंने कहा कि “हम अपनी अनुपालन निगरानी प्रक्रियाओं को और मजबूत करने के लिए इस मूल्यांकन और टीम से इनपुट के लिए आशान्वित एवं तत्पर हैं।”

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में अच्छी प्रयोगशाला प्रथाओं की प्रमुख डॉएकता कपूर ने कार्यक्रम और इसकी उपलब्धियों तथा भविष्य की योजनाओं के बारे में जानकारी देते हुए

 

उद्घाटन बैठक में मलेशिया सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में वरिष्ठ प्रधान सहायक निदेशक डॉ. फदीलाह हसबुल्लाह, (प्रमुख मूल्यांकनकर्ता),जापान सरकार में पर्यावरण मंत्रालय के पर्यावरण स्वास्थ्य विभाग में उप निदेशक, रसायन मूल्यांकन कार्यालय, सुश्री नाओको मोरितानी, ओईसीडी के पर्यावरण, स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रभाग, पर्यावरण निदेशालय में नीति विश्लेषक, डॉ. युसुके ओकु और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एनवायरनमेंटल स्टडीज, जापान (पर्यवेक्षक) अतिथि शोधकर्ता डॉ. योशियो सुगया, अतिथि शोधकर्ता, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एनवायरनमेंटल स्टडीज, जापान (पर्यवेक्षक) के अतिरिक्त एनजीसीएमए निरीक्षकों और डीएसटी के अधिकारियों ने भाग लिया ।

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