“सीएसआईआर भारत के कार्बन पदचिह्न को कम करने और रीसाइक्लिंग की दिशा में विभिन्न प्रौद्योगिकियों का विकास कर रहा है”: डॉ. जितेंद्र सिंह

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नई दिल्ली, 7 दिसंबर। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने ‘भारत में प्लास्टिक कचरे में कमी के लिए राष्ट्रीय सर्कुलर इकोनॉमी रोडमैप’ पर एक प्रमुख दस्तावेज़ जारी किया, जो भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख अनुसंधान संस्थानों के बीच एक सहयोगात्मक अभ्यास है।

दस्तावेज़ का उद्देश्य दोनों देशों के बीच अनुसंधान और उद्योग साझेदारी को बढ़ावा देना और प्लास्टिक क्षेत्र में भारत की एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए एक रोडमैप का सह-विकास करना है।

भारत और ऑस्ट्रेलिया अगले वर्ष के दौरान अंतिम रूप दी जाने वाली वैश्विक प्लास्टिक संधि के निर्माण के लिए बातचीत में सक्रिय भागीदार हैं। दोनों देशों का लक्ष्य अपशिष्ट प्रबंधन, रीसाइक्लिंग नीतियों और पर्यावरण पहल में अपनी-अपनी ताकत का लाभ उठाना है ताकि एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सके जो संसाधन दक्षता और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देती है।

वर्तमान अनुसंधान जून 2020 में भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्रियों द्वारा घोषित भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी के हिस्से के रूप में जुलाई 2020 में शुरू हुआ था।

नई दिल्ली में एक समारोह के दौरान दस्तावेज़ के लॉन्च के अवसर पर बोलते हुए, केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, अंतरिक्ष एवं परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री ने कहा कि भारत ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिबद्धता के अनुसार 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में एक चक्रीय अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने में अग्रणी भूमिका निभाई है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, भारत की वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) भारत के कार्बन पदचिह्न को कम करने और रीसाइक्लिंग की दिशा में विभिन्न प्रौद्योगिकियों का विकास कर रही है।

उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी से प्रेरित स्वच्छता अभियान ने ‘अपशिष्ट से धन’ की अवधारणा के बारे में जागरूकता पैदा की है। उत्पादक साधनों के लिए अपशिष्ट पदार्थों के पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के लिए नवाचार और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के बारे में अब बेहतर व्यापक समझ है। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने पिछले तीन वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक स्क्रैप के निपटान से कुल 11,000 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड और सीएसआईआर ने हाल ही में ‘रीसाइक्लिंग ऑन व्हील्स’ बस लॉन्च की है, जो अपनी गतिशीलता के कारण विभिन्न स्थानों पर अपशिष्ट से धन उत्पन्न कर सकती है।

उन्होंने कहा, “देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (सीएसआईआर-आईआईपी) ने संयुक्त रूप से एक रिपर्पज्ड यूज्ड कुकिंग ऑयल (आरयूसीओ) वैन विकसित की है जो इस्तेमाल किए गए खाना पकाने के तेल को इकट्ठा करती है और इसे जैव ईंधन में परिवर्तित करती है।”

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा, सीएसआईआर- केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई), नई दिल्ली ने एक क्रांतिकारी स्टील स्लैग रोड तकनीक के विकास का बीड़ा उठाया है जो सड़क निर्माण में इस्पात संयंत्रों के अपशिष्ट स्टील स्लैग के बड़े पैमाने पर उपयोग की सुविधा प्रदान करता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, भारत जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को संबोधित करने में अग्रणी बनकर उभरा है, जैसा कि जी20 नई दिल्ली शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कल्पना की थी। उन्होंने कहा कि भारत की पहल पर, जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (इंटरनेशनल बायोफ्यूल्स अलायन्स) की स्थापना की गई थी।

उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा बिरादरी के साहसिक कदमों के माध्यम से ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ (लाइफ) को एक वैश्विक मिशन बनाने के विचार का अनावरण किया है।”

इस अवसर पर बोलते हुए, भारत में ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त, फिलिप ग्रीन ने कहा, सर्कुलर इकोनॉमी पर भारत के साथ सहयोग “ऑस्ट्रेलिया के लिए महत्वपूर्ण” है। उन्होंने कहा, “प्लास्टिक कचरे को शून्य पर लाना और एक चक्रीय अर्थव्यवस्था हासिल करना एक कठिन प्रस्ताव है, लेकिन यह संभव है।”

अपने संबोधन में, महानिदेशक, सीएसआईआर और सचिव, डीएसआईआर, डॉ. एन. कलाईसेल्वी ने कहा कि दुनिया “प्लास्टिक को ना” कहने से “बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक” की ओर बढ़ गई है। उन्होंने कहा, “हमें प्लास्टिक के साथ रहने के लिए सर्वोत्तम विकल्प ढूंढना होगा।”

भारत सरकार देश को चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने के लिए सक्रिय रूप से नीतियां बना रही है और परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही है। इस संबंध में इसने पहले ही विभिन्न नियमों, जैसे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, धातु रीसाइक्लिंग नीति आदि को अधिसूचित कर दिया है।

भारत प्लास्टिक अपशिष्ट चुनौतियों और परिणामी मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिक प्रभाव संबंधी चिंताओं का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने से भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट अर्थव्यवस्था को एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में बदलने में मदद मिलेगी। भारत के लिए 2016 में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों की शुरुआत से नगरपालिका, उद्योग, आवासीय और वाणिज्यिक हितधारकों के लिए कई उपाय किए गए हैं।

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