‘गुरुजन’ 15वीं-16वीं सदी के असमिया महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव को एक संगीतमय श्रद्धांजलि है
मुझे ऐसा लगा कि मुझे शंकरदेव के संदेश का प्रचार-प्रसार न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में करने की जरूरत है: निर्देशक सुदीप्तो सेन
आईएफएफआई 53 में भारतीय पैनोरमा खंड के तहत गैर-फीचर फिल्म ‘गुरुजन’ दिखाई गई
‘गुरुजन 15वीं-16वीं शताब्दी के असमिया महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव को एक संगीतमय श्रद्धांजलि है।’
निर्देशक सुदीप्तो सेन ने कहा, ‘असम के साथ-साथ पूर्वोत्तर भारत के अन्य हिस्सों के लोग भी शंकरदेव को गुरुजन (बड़े भाई) कहते हैं।’ वह आज गोवा में आईएफएफआई 53 में पीआईबी द्वारा मीडिया और महोत्सव प्रतिनिधियों के साथ आयोजित संवाद में बोल रहे थे।
सुदीप्तो सेन ने कहा कि शंकरदेव न केवल एक भक्ति संत के रूप में, बल्कि एक अभूतपूर्व लेखक और संगीतकार के रूप में भी उभर कर सामने आए। उन्होंने ‘ब्रजवली’ नामक एक नई साहित्यिक भाषा को विकसित करने में भी मदद की।
53वें आईएफएफआई, गोवा में ‘इफ्फी टेबल टॉक’ में निर्देशक सुदीप्तो सेन
प्रसिद्ध फिल्म निर्माता ने कहा कि उन्होंने महसूस किया कि इस बारे में जागरूकता की भारी कमी है कि यहां तक कि यूरोपीय पुनर्जागरण से कुछ सदी पहले ही हमारे देश में ‘भक्ति’ आंदोलन के रूप में सुधारवादी पुनरुत्थान देखने को मिल गया था।
‘इफ्फी टेबल टॉक’ में निर्देशक सुदीप्तो सेन
‘गुरुजन’ बनाने के पीछे की प्रेरणा को साझा करते हुए सुदीप्तो सेन ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगा कि मुझे शंकरदेव के संदेश का प्रचार–प्रसार न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में करने की जरूरत है। मैंने इस गैर-फीचर फिल्म के जरिए उन्हें एक संगीतमय श्रद्धांजलि दी है।’
गैर-फीचर फिल्म ‘गुरुजन‘ का पोस्टर
गोवा में फिलहाल जारी 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के भारतीय पैनोरमा खंड के तहत ‘गुरुजन’ दिखाई गई।
सारांश:
15वीं-16वीं सदी के वैष्णव संत, श्रीमंत शंकरदेव एक धार्मिक नेता और सुयोग्य समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज को जाति व्यवस्था और कठोर धार्मिक प्रथाओं के चंगुल से मुक्त करने के लिए अथक संघर्ष किया। अपने स्वभाव से बेहद प्रगतिशील एवं दूरदर्शी, श्रीमंत शंकरदेव भारतवर्ष में एक समतावादी समाज का निर्माण करना चाहते थे। फिल्म गुरुजन, जैसाकि उनके अनुयायी उन्हें मानते हैं, में उनकी जीवनी को संगीतमय रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस फिल्म के माध्यम से अक्सर भगवान विष्णु के अवतार के रूप में माने जाने वाले इस महान व्यक्तित्व को समझना एक अनूठा अनुभव है।
कलाकार एवं निर्माण:
निर्देशक: सुदीप्तो सेन
निर्माता: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र
पटकथा: सुदीप्तो सेन, रिया मुखर्जी
छायांकन: आशीष कुमार, शोभिक मल्लिक
संपादन: हिमाद्री शेखर भट्टाचार्य
2022 | अंग्रेजी | रंगीन | 50 मिनट
निर्देशक के बारे में:
सुदीप्तो सेन एक भारतीय फिल्मकार हैं, जो द अदर वेल्थ (1996), द लास्ट मोंक (2007), अखनूर (2007), लखनऊ टाइम्स (2015) और आसमा (2018) जैसी फिल्मों के सफल अंतरराष्ट्रीय सह-निर्माण और विभिन्न फिल्म महोत्सवों में उनको प्रदर्शित करने में संलग्न रहे हैं।
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