यदि भविष्य में केरला स्टोरी नही चाहिए तो …..

द केरला स्टोरी के संदर्भ में हिंदू बेटियों को अपने धर्म के प्रति जागरूक और अच्छी तरह तर्कवान बनने की प्रेरणा देता हुआ डॉक्टर विश्वास चौहान जी का एक अच्छा लेख।

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डॉ. विश्वास कुमार चौहान
एक होती है पांथिक कट्टरता जिसे अज्ञानी लोग धार्मिक कट्टरता भी कह देते हैं ,चूंकि हिंदू विचार कभी धर्म के परीप्रेक्ष्य को कट्टरता से नही जोड़ता , सहिष्णुता और मानवीयता जेसे उच्च मूल्यों को धारण करना ही हिंदू धर्म है ,इसलिए हिंदू “धर्म” ईसाई “रिलीजन” और मुस्लिम “मजहब” जो कि एकोस्याउपासक अर्थात एकेश्वरवादी के समानार्थी नही हो सकता…परंतु हिंदू पहचान को तर्क दुष्टता से कलुषित कर मार्ग से भटकाने या हिंदू पहचान को विस्मृत करने के प्रयास कुछ लोगों द्वारा निरंतर किए जाते हैं ।
अब ‘द केरला स्टोरी’ के ट्रेलर में एक हिंदू लड़की से पूछा जाता है कि कैसा है तुम्हारा गॉड शिवा जो पत्नी के मर जाने पर आम इंसानों की तरह रोता है?

अब वहां उस फिल्म में जो भी प्रत्युत्तर दिया जाता हो लेकिन वास्तविकता प्रश्न यह है कि हम हिंदू क्यों हैं या हमको हिंदू ही क्यों रहना चाहिए? क्या हमारा हिंदुत्व ऐसी बातों पर अवलंबित है जिसको कुछ तार्किक आधार पर कमजोर किया जा सकता है या फिर हमारा हिंदुत्व उन मूल्यों पर अवलंबितहै जो नैसर्गिक और शाश्वत हैं?

अब केरला स्टोरी फिल्म में पूछे गए प्रश्न के परीप्रेक्ष्य में ही यदि वाल्मिकी रामायण के उत्तर कांड में वर्णित सीता परित्याग का विषय या शंबूक वध का प्रसंग या शिव जी का सती के लिए विरह में रोने का प्रसंग या शिव जी का गणेश जी को नहीं पहचान पाना जैसे प्रसंग या फिर कृष्ण जी की रासलीलाओं का प्रसंग या फ़िर महाभारत से कुछ प्रसंग हैं, जिनपर तर्क किसी आस्थावान को तो कनविंस कर सकता है पर तार्किक मस्तिष्क को हो सकता है कि उन बातों पर सहमत होना मुश्किल लगे; क्योंकि उन घटनाओं को उस समय या परिस्थिति के आधार पर न देखकर हम वर्तमान परिस्थिति में देखेंगे तो ऐसे में जब कोई जाकिर नाइक या कोई विकास दिव्यकीर्ति जैसा प्रभावी और तार्किक वक्ता ठान ले तो दो मिनट में तुम्हारी आस्था को हिला देगा क्योंकि इन बातों को तार्किक और मानवीय समता या लैंगिक समानता के आधार पर डिफेंड करना तो मुश्किल है। वैसे भी औसत हिंदू बिटियाए उतनी प्रखर या ज्ञानी नहीं हो सकतीं कि वो इनके कुतर्क को काउंटर कर सके।

अब थोड़ा आगे बढ़ो, मान लो कोई वामपंथी क्रीप्टो पंथी छद्म नारीवादी महिला आगे आकर किसी हिंदू बिटिया से कहे कि चूंकि राम ने अपनी गर्भवती पत्नी को घर से निकाल कर अन्याय किया था तो ऐसे हिंदू धर्म में मैं नहीं रहूंगी। तो हमारी हिंदू बिटिया उसके इस स्टैंड पर तुम क्या कहेगी ?

उसे तो राम जी के द्वारा सीता परित्याग का लॉजिकल एंड कनविंसिंग आंसर नहीं मिलेगा तो उसे अपना हिंदू धर्म तो विलेन लगेगा ही।

तो ऐसे प्रश्नों पर ऐसे तर्क दुष्टों को कहना चाहिए कि मैं हिंदू हूं या ईश्वर ने मुझे हिंदू बनाया है तो रामायण या महाभारत की किसी घटना को जस्टिफाई करने के लिए नहीं बनाया है न ही वो मुझे जज बनाकर किसी घटित घटना पर वो मेरी राय मांगेगा।

स्वामी विवेकानंद अपने व्याख्यानों में अक्सर प्रभु राम, सीता जी और कृष्ण जी का उल्लेख करते थे। विदेश में उनसे किसी ने पूछा-

आपके इन सबके प्रति विचारों का क्या होगा अगर कल को ये सिद्ध हो गया कि राम, कृष्ण और सीता वगैरह काल्पनिक चरित्र थे?

बिना इधर उधर की बात किए स्वामी जी तत्क्षण कहा:- फिर मैं उस जाति में जन्म लेने पर गर्व करुंगा जिसके पूर्वजों ने अपनी कल्पना में भी ऐसे उद्दात्त और महान आदर्श रखे हैं।

ऐसी ही एक घटना इस्कॉन के फाउंडर भक्ति वेदांत प्रभुपाद जी के साथ हुआ था जब उनसे किसी विदेशी ने धर्म ग्रंथों से उल्टे सीधे हवाले देते हुए पूछ लिया कि क्या आपके अवतार मांस मछली खाते थे?

प्रभुपाद जी ने छूटते ही उत्तर दिया :- प्रलय काल में सारे जगत को लील जाने वाले प्रभु ने अगर मांस मछली खा भी लिया तो कौन सा हैरत है।

वो व्यक्ति अपना सा मुंह लिए लौट गया।

ओशो कहते थे कि जब अपने धर्म को डिफेंड करने की बात आए तो विवेकानंद से बड़ा असहिष्णु कोई नहीं था क्योंकि अपने धर्म के “कोर प्रिंसिपल्स” पर उनके जितना तगड़ा बिलीफ किसी को भी नहीं था। कभी न डिगने वाला, कभी न समझौता करने वाला, कभी सफाई न देने वाला, कभी लज्जित न होने वाला हिंदू अभिमान था उनके पास।

अतः हिंदू समाज के सुदीर्घ इतिहास में घटित कोई घटना गलत तरीके से डॉक्यूमेंट हुई हो या उसे बदल दिया गया हो या उस घटना का context यदि मुझे नहीं पता, तब की परिस्थिति का मुझे नहीं पता तो इसके लिए मेरा हिंदू धर्म कैसे विलेन हो गया और मैं क्यूं इससे अपनी हिंदू आइडेंटिटी को हेट करूं? क्यूं उन बातों को लेकर कुढ़ता रहूं या अपराधबोध महसूस करूं जिससे मेरा कोई प्रयोजन नहीं है?

बल्कि मैं तो अपने हिंदू आइडेंटिटी को सेलिब्रेट करता हूं क्योंकि मेरी इस हिंदू आइडेंटिटी की वजह से मुझे दुनिया के एयरपोर्ट पर मेरे साथ हिंदू होने के नाते अशोभनीय व्यवहार नहीं होता, एक हिंदू होने पर मुझे वीजा या नागरिकता देते हुए कोई देश शंकित नहीं होता, दुनिया एक हिंदू के रूप में मेरी ओर देखकर ये कामना करती है कि काश इसके पासंग की बौद्धिक स्वतंत्रता मुझे मिलती, इसके तरह की “फ्रीडम ऑफ वर्शिप” मिलती, इसके तरह की पारिवारिक व्यवस्था मिलती जो पति और पत्नी के संबंधों की पवित्रता को इतना मान देती है, जो संयुक्त परिवार के मूल्यों में बिलीव करती है,

मेरी हिंदू दृष्टि प्रकृति और जीवों में भी में ईश्वर का दर्शन करती है, जिसे कण- कण में ईश्वर देखने की उदारमाना दृष्टि मिली है, जो नास्तिक होना चाहे तो उसे उसकी भी फ्रीडम है और हजारों लाखों देवताओं को पूजना चाहे तो उसकी भी छूट है।

इसलिए मैं उससे कहता कि मेरे हिंदू होना ऐसा नहीं है कि किसी एक या कुछ आस्था, अवतार या किताब के सहारे है जो कभी दरक जाए तो मैं “एक्स हिंदू” हो जाऊंगा। मेरा हिंदू होना मेरी “आईडेंटिटी कार्ड” है और मैं इसे बड़े गर्व से own करता हूं।

इसलिए मेरा ऐसा कहना है कि बच्चियों की परवरिश हिंदुत्व के इन “एसेंस” को समझाकर करिए। उसे समझाइए कि अवतारवाद, मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, प्रकृति पूजन इन बातों का अर्थ क्या है। उसे बताइए कि उसका हिंदू होना प्रकृति के लिए, सृष्टि के लिए, मानव जाति के लिए, जलचर -थलचर और नभचर के लिए कितना आवश्यक है।

अपनी बिटियाओं को बताइए कि अगर तुमने अपना हिंदुत्व छोड़ दिया तो तो तुम अपनी चेतना खो दोगी, अपना बौद्धिक स्वातंत्र्य खो दोगी, अपना स्वतंत्र अस्तित्व खो दोगी, अपनी आइडेंटिटी खो दोगी, पूछने और जानने का अधिकार खो दोगी और बचोगी तो केवल काले कपड़े से ढंकी हुई एक रोबोट जो प्रोग्रामिंग की भाषा से नियंत्रित होती है ।अपनी बच्चियों का प्रबोधन इस लाइन पर करिए…….कोई भी कल को किसी भी तरीके से, किसी भी तर्क से, कैसी भी व्याख्या से या किसी भी संदर्भ से उसके हिंदू विश्वास को हिला नहीं सकेगा।

हमें आगे और #केरल_स्टोरी नहीं चाहिए तो ये करना पड़ेगा। ये करेंगे तो कोई भी उसे बहला नहीं सकेगा। समय रहते उसके मन में ये बीज डाल दीजिए तो ही कुछ बचेगा।

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