धातु क्षेत्र को सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल में सबसे आगे रहने की जरूरत: श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया

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भारत का खनिज और धातु क्षेत्र मजबूत विकास के लिए तैयार: इस्पात मंत्री

केन्‍द्रीय इस्पात और नागर विमानन मंत्री श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया ने कहा कि हमारे अधिकांश प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि दुनिया इन दुर्लभ संसाधनों का उपयोग करने के लिए पर्यावरण और आर्थिक रूप से व्यवहार्य तरीके ढूंढे। श्री सिंधिया ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेटल्स दिल्ली चैप्टर द्वारा आज आयोजित सर्कुलर इकोनॉमी और संसाधन दक्षता पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में यह बात कही। सम्मेलन में सेल की अध्यक्ष, सुश्री सोमा मंडल, एसएमएस समूह के भारत और एशिया प्रशांत क्षेत्र के सीईओ श्री उलरिच ग्रीनर पच्टर, एमआईडीएचएएनआई के सीएमडी डॉ. एस.के. झा, आईआईएम, दिल्‍ली चैप्‍टर के अध्‍यक्ष डॉ. मुकेश कुमार तथा खनिज और धातु क्षेत्र के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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श्री सिंधिया ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दुनिया भर में आम सहमति बन गई है कि सर्कुलर इकोनॉमी संसाधनों के संरक्षण का एकमात्र तरीका है। हमें यह समझना चाहिए कि मानवता का भविष्य ‘टेक-मेक-डिस्पोज’ मॉडल यानी लीनियर इकोनामी पर नहीं बनाया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि 6आर सिद्धांतों रिड्यूस, रीसायकल, रीयूज, रिकवर, रिडिजाइल और रीमैन्‍यूफैक्‍चर का पालन करते हुए व्‍यवसाय मॉडल में उत्‍तरदायी और स्‍वीकार्य होने के कारण धातु क्षेत्र को धातुओं की प्राकृतिक संभावना के अलावा उसके व्यापक इस्‍तेमाल के मद्देनजर सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल में सबसे आगे रहने की जरूरत है।

मंत्री ने 15 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के संबोधन को याद किया जिसमें उन्होंने सर्कुलर इकोनॉमी मिशन की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया था। अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री ने कहा था कि सर्कुलर इकोनॉमी समय की आवश्यकता है, और हमें आधुनिक अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की तेजी से कमी के कारण इसे अपने जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बनाना चाहिए।

श्री सिंधिया ने कहा कि धातु उद्योग ऊर्जा का बड़े पैमाने पर उपयोग करने वाला उद्योग है और इस प्रकार बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन का कारण बनता है, जो वैश्विक समुदाय के लिए एक बड़ी चुनौती है, इसलिए हमें शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नई तकनीकों को अपनाना होगा। मंत्री ने कहा कि हम सभी इस बात से सहमत हैं कि आज दुनिया में टेक्‍नोलॉजी का वर्चस्‍व है, कुछ भी बेकार नहीं है और सभी तथाकथित कचरे को उपयुक्त प्रौद्योगिकी को अपनाकर धन सृजन के लिए संसाधनों में बदला जा सकता है।

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ऑटोमोटिव, इंफ्रास्ट्रक्चर, परिवहन, अंतरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में वृद्धि में उभरते उछाल का समर्थन करने के लिए मांग में अपेक्षित उछाल को देखते हुए भारत का खनन और धातु क्षेत्र जबरदस्‍त विकास के लिए तैयार है। तेजी से दौड़ती इस दुनिया में चुनौती स्टील जैसे क्षेत्रों के उप-उत्पादों का मुकाबला करना है, जो कि अर्थव्यवस्था के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है और दूसरी ओर कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के संबंध में क्षेत्र को समाप्‍त करना कठिन है। दुनिया भर में स्टील निर्माता पर्यावरणीय स्थिरता और सर्कुलर इकोनॉमी की दोहरी चुनौतियों से निपटने के लिए उपयुक्त रणनीतियां विकसित करने के लिए तैयार हैं।

मंत्री ने कहा, भारत सरकार ने लौह और अलौह धातुओं को शामिल करते हुए धातु क्षेत्र सहित विभिन्न क्षेत्रों में सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग के माध्यम से 11 समितियों का गठन करके समय पर पहल की है।

श्री सिंधिया ने बताया कि इस्पात मंत्रालय एक नोडल एजेंसी के रूप में काम कर रहा है और उसने खनन क्षेत्र में सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार कर लिया है। इसमें खनन से लेकर तैयार धातु उत्पादन और हर तरह के कचरे के उपयोग सहित उनके पुनर्चक्रण/पुन: उपयोग औरप्रक्रिया में उत्पन्न उत्पादों के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।

मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सर्कुलर इकोनॉमी रीसाइक्लिंग से कहीं आगे बढ़कर है। हमारी ऊर्जा खपत का एक बहुत बड़ा हिस्सा, और संबंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का संबंध पदार्थ के निष्कर्षण, प्रसंस्करण, परिवहन, उपयोग और निपटान से निकटता से जुड़ा हुआ है। सर्कुलर रणनीतियां जैसे सर्कुलर डिजाइन, कुशल सामग्री उत्पादन, पुन: उपयोग, मरम्मत और पुनर्चक्रण से पदार्थ की खपत में बचत होती है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है। अधिकतम मूल्यवान समय में वस्‍तु के उपयोग पर ध्यान केन्‍द्रित करके और मैटिरियल रीसायकल को बंद करके, सर्कुलर इकोनॉमी में एक मजबूती होती है जो जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले जबरदस्‍त परिवर्तनों से निपटने में मदद करेगी। इन कदमों से राष्ट्र को अनेक लाभ होंगे और संबद्ध आपूर्ति श्रृंखला के साथ-साथ खपत से संबंधित उद्योगों के कारण सकल घरेलू उत्पाद पर एक गुणक प्रभाव पड़ेगा, इसके अलावा संयंत्र के भीतर प्रत्‍यक्ष रूप से और अप्रत्यक्ष रूप से संबद्ध उद्योगों में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

मंत्री ने कहा कि भारत ने वित्त वर्ष 2022 में इस्पात उत्पादन की स्थापित क्षमता 50 प्रतिशत बढ़ाकर 155 मिलियन टन कर दी है, जो वित्त वर्ष 2014 में लगभग 100 मिलियन टन थी। आठ वर्षों की इस अवधि के दौरान इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत भी लगभग 50 प्रतिशत बढ़कर प्रति व्यक्ति 77 किलोग्राम हो गई है। देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर सरकार का ध्यान केन्द्रित करने के अलावा भारत सरकार की निवेशक अनुकूल नीतियों के नेतृत्व में इस्पात उद्योग एक स्थिर विकास पथ पर है। श्री सिंधिया ने यह भी कहा कि खनिज और धातु क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं और आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक है ।

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श्री सिंधिया को उम्मीद है कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेटल्स, दिल्ली चैप्टर इस महत्वपूर्ण विषय पर इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विचार-विमर्श की सिफारिशें लेकर आएगा, जिससे उद्योग को जीरो वेस्ट और जीरो हार्म दृष्टिकोण की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी।

एसएमएस समूह के भारत और एशिया प्रशांत क्षेत्र के सीईओ श्री उलरिच ग्रीनर पच्टर ने कहा कि भारत के इस्पात उद्योग में सकारात्मक विकास की दिशा में बहुत बदलाव आया है।

सेल की अध्यक्ष, सुश्री सोमा मंडल ने कहा कि शोध से पता चलता है कि कार्बन कम करने की परिचालन क्षमताओं और नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों के व्यापक कार्यान्वयन से वातावरण में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को लगभग 50 प्रतिशत तक ही कम किया जा सकता है। शेष 50 प्रतिशत इस बात पर निर्भर करता है कि हम संसाधनों का उत्पादन और उपभोग करने के तरीके में परिवर्तन कैसे ला सकते हैं। इस प्रकार व्यवसायों को इस नई आर्थिक संरचना में अग्रणी भूमिका निभानी है, पृथ्‍वी की रक्षा करने के लिए परिवर्तन और नए मूल्य बनाने के नवाचार को अग्रणी रहना है। सुश्री मंडल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कुछ भी बेकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि लगभग 200 प्रतिनिधि इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।

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