यूपी की फिज़ाओं में क्यों धूम मचा रही हैं दो सेक्स सीडी

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जिस्म की गली में गोया वह मकान खंडहर ही रहा
अपनी रूह के रेशों से जिसका चेहरा बुना था हमने’

अपने अवतरण काल से ही सियासत देह राग के मद्दिम ताने-बानों से जुड़ी रही है, वक्त बदला पर इसकी रवायत नहीं। लखनऊ में इन दिनों 2 सेक्स सीडी ने हंगामा बरपा रखा है। इनमें से एक में भाजपा के उस सर्वशक्तिमान महासचिव की दास्तां कैद बताई जाती है, जिन्होंने कभी यूपी के निजाम की नाक में दम कर रखा था। दूसरी सीडी में वहां के पॉवर सेंटर से जुड़े एक सर्वशक्तिमान अफसर की दास्तां बयां है, जिनके इशारों पर यूपी ठिठक-ठिठक कर चलती है। जब सीडी में अवतरित इस महिला को लगा कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है और वह तमाम आश्वासनों के नाम पर छली गई है तो उसने स्वयं के द्वारा कैद किए गए वीडियो फुटेज को एक सीडी में डाल इन दोनों सर्वशक्तिमानों को सबक सिखाने की ठान ली है। कहते हैं इस सीडी को लेकर उस महिला ने तमाम अखबारों और सच बयां करने के दावे करने वाले न्यूज चैनलों के द्वार खटखटा लिए, पर उसके लिए आस का कोई दरवाजा कहीं खुला नहीं। तो निराश होकर उस महिला ने अपनी सीडी के कुछ अंश इंटरनेट पर लीक करवा दिए। इस महिला का दावा है कि ’उसके साथ रेप हुआ है और इस मामले में दोनों सर्वशक्तिमानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।’ यूपी में इन दिनों कानून का राज सिर चढ़ कर बोल रहा है, पुलिस की गोलियों में इंसाफ के बारूद धधक रहे हैं, सो इस पीड़िता को भी अपने लिए इंसाफ की बहुत उम्मीद है।

क्या विदा होंगे दिल्ली के पुलिस कमिश्नर?

1988 बैच के तमिलनाडु कैडर के आईपीएस अफसर व दिल्ली के मौजूदा पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा का दिल अब यहां रम नहीं रहा। सूत्रों की मानें तो उन्होंने गृह मंत्रालय से यह शिकायत भी की है कि ’दिल्ली पुलिस का उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा, यहां उनके साथ एक बाहरी की तरह आचरण हो रहा है।’ सूत्र यह भी बताते हैं कि कमिश्नर अरोड़ा की दिली इच्छा है कि उन्हें सीबीआई में भेज दिया जाए, जहां मौजूदा सीबीआई डायरेक्टर सुबोध कुमार जायसवाल का दो वर्षीय कार्यकाल इसी माह पूरा हो रहा है। आने वाले दिनों में कई पैरा मिलिट्री फोर्सेस के मुखियाओं के पद भी खाली हो रहे हैं, सो संजय अरोड़ा को वहां भेजे जाने पर भी गुरेज नहीं। दरअसल, संजय अरोड़ा प्रतिनियुक्ति पर यूटी काडर में लाए गए हैं। सो वे चाहते हैं कि ’अगर उनका कहीं कुछ नहीं होता है तो उन्हें उनके मूल कैडर यानी वापिस उनके घर तमिलनाडु कैडर ही भेज दिया जाए।’ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने जिन तीन अफसरों के नाम अपने प्रदेश के अगले डीजी के तौर पर केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजे हैं उसमें संजय अरोड़ा का नाम भी शामिल बताया जाता है। लेकिन अगले कुछ महीनों में यानी सितंबर माह में जी20 देशों की एक अहम बैठक होने वाली है, जिसके एक बड़े हिस्से की मेजबानी का जिम्मा दिल्ली का है, जी20 बैठक की सुरक्षा से जुड़े हर तैयारी की बैठक से संजय अरोड़ा शामिल रहे हैं, सो जी20 शिखर सम्मेलन से ऐन पहले उनके तबादले को लेकर गृह मंत्रालय भी पेशोपेश में पड़ा है।

अपनी पुनर्वापसी को लेकर आश्वस्त बघेल

छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी पुनर्वापसी  को लेकर खासे आश्वस्त जान पड़ते हैं। वैसे भी राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा अब भी वहां अपने रंग में नहीं दिख रही। भाजपा के राज्य में कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अपने स्वास्थ्यगत कारणों से प्रदेश की राजनीति में उतने एक्टिव नहीं दिख रहे। छत्तीसगढ़ के एक अन्य प्रमुख नेता और पीएम मोदी के बेहद करीबी माने जाने वाले नंद कुमार साय का हालिया दिनों में भाजपा छोड़ कर कांग्रेस ज्वॉइन कर लेने से भाजपा की उम्मीदें यहां और मद्दिम पड़ गई है। भाजपा शीर्ष ने भी अपनी ओर से राज्य में कई जनमत सर्वेक्षण करवाए हैं, इन तमाम सर्वेक्षणों में बघेल की लोकप्रियता में इजाफा ही दर्ज हुआ है। दरअसल, बघेल सरकार की एक के बाद एक लांच हुई लोक कल्याणकारी नीतियों व योजनाओं से वोटरों का एक नया वर्ग तैयार हो गया है, जो बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक मौका और देना चाहता है। वहीं कांग्रेस में बघेल के प्रबल विरोधी माने जाने वाले टीएस सिंहदेव अब भी निरंतर भाजपा के संपर्क में बताए जाते हैं पर भाजपा की स्थानीय इकाई उनको लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं को सिंहदेव की राजसी जीवनशैली रास नहीं आ रही, चूंकि सिंहदेव एक राज परिवार से ताल्लुक रखते हैं, सो राजनीति करने का उनका अंदाज भी किंचित दीगर है। वे ग्रासरूट की राजनीति में उस कदर फिट नहीं बैठते। सो, छत्तीसगढ़ में तो फिलवक्त ऐसा ही भान हो रहा है कि यहां की फिज़ाओं में कांग्रेस का जादू ही सिर चढ़ कर बोल रहा है।

क्या बजरंग बली खिलाएंगे कमल

कर्नाटक चुनाव में जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें करीब आ रही है, सत्तारूढ़ दल के वैचारिक दिवालियापन की पोल भी खुलती जा रही है। जब कांग्रेस ने नफरत और जहर फैलाने वाले संगठनों ’बजरंग दल’ और ’पीएफआई’ पर बैन की बात की तो भाजपा प्रचार के अगुआ ने इसे बजरंग बली से जोड़ कर एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया। बात तो उन्होंने हालिया रिलीज एक प्रोपेगेंडा फिल्म ’केरल एक्सप्रेस’ की भी की पर इससे भी इतना चुनावी बुखार चढ़ता नज़र नहीं आया। अब कांग्रेस कर्नाटक के पड़ोसी राज्य गोवा का मुद्दा उठा रही है कि ’जब वहां मनोहर परिक्कर वाली भाजपा की सरकार थी तब उन्होंने राज्य में हिंदू अधिकारों की वकालत करने वाली ‘श्रीराम सेना’ के गोवा में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था, यह प्रतिबंध आज भी वहां की भाजपा सरकार के दौर में बदस्तूर जारी है।’ कांग्रेस पूछ रही है कि ’क्या यह श्रीराम पर लगाया गया प्रतिबंध है?’ पीएम के करीबी माने जाने वाले जफर सरेशवाला का वह वीडियो भी इन दिनों खूब वायरल हो रहा है, जिसमें एक चैनल को दिए गए इंटरव्यू में सरेशवाला कह रहे हैं कि ’कभी अहमदाबाद में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की हुकूमत चलती थी, यहां विहिप का सालाना जलसा होता था तो उसमें 5 लाख से ज्यादा हिंदू शामिल होते थे, प्रवीण तोगड़िया जब अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उतरते थे तो उनके साथ 200 गाड़ियों का काफिला चलता था, मोदी ने आकर इनकी दहशत खत्म कर दी।’ आज उसी बजरंग दल को भगवा स्टार एक चुनावी मुद्दा क्यों बना रहे हैं? सवाल यही सबसे बड़ा है।

उलझन में सरकार

दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र आस्तिक नारायण ने अपने पहले ही अटेम्ट में जेईई मेंस में 100 पर्सेंटाइल लाकर सबको चौंका दिया, दिल्ली की आप सरकार के लिए भी यह एक मौका था कि ’वे अपने दावे को पुष्ट कर सके कि उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कायाकल्प कर दिया है।’ दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जो इन दिनों अपने 45 करोड़ के सरकारी निवास को लेकर विपक्षियों के निशाने पर हैं वे इस मौके को लपकना चाहते थे। सो, उन्होंने अपनी टीम से कहा कि ’वे आस्तिक को बाबा साहेब अंबेडकर की एक प्रेरक बॉयोग्राफी भेंट करना चाहते हैं।’ उनकी टीम काम पर लग गई और सर्वसम्मति से एक पुस्तक का चुनाव किया गया, वह पुस्तक थी-’अंबेडकर: ए लाइफ’ जिसे लिखा था शशि थरूर ने, जो अब कांग्रेस के एक बड़े नेता हैं। जब यह पुस्तक केजरीवाल के संज्ञान में लाई गई तो वे इस पर किंचित झिझक गए, उनकी द्विविधा थी कि ’एक कांग्रेस नेता द्वारा लिखित बॉयोग्राफी देने से इसके अलग राजनैतिक माएने न निकाले जाए,’ सो इस पुस्तक की जगह आनन-फानन में एक वैकल्पिक पुस्तक की पड़ताल हुई और केजरीवाल ने अपने कार्यालय में आयोजित एक समारोह में आस्तिक को जो पुस्तक भेंट की, वह थी आकाश सिंह राठौर द्वारा लिखित ’बीकमिंग बाबा साहेब अंबेडकर’।

कांग्रेस का पलटवार

कर्नाटक चुनाव में भाजपा बनाम कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप के दौर जारी हैं। केंद्रीय नेत्री स्मृति ईरानी अभी कर्नाटक चुनाव प्रचार में गई तो उन्होंने तुर्रा उछाल दिया कि ’2019 के लोकसभा चुनाव में जब प्रियंका गांधी अमेठी गई थीं तो वहां की एक गली में वह नमाज़ अदा करती नज़र आयी थीं।’ स्मृति के इस बयान के बाद बवाल मच गया और सोशल मीडिया पर इस बात की पड़ताल शुरू हो गई। फिर यह निष्कर्ष निकला कि यह तस्वीर प्रियंका की एक दरगाह की थी, जहां वह हाथ उठा कर दुआ मांग रही है। इसके बाद कांग्रेस की ‘ई सेना’ भी सक्रिय हो गई उन्होंने भी ढूंढ-ढूंढ कर भाजपा नेताओं की ऐसी तस्वीरें निकालीं जहां दुआ में उनके हाथ भी उठे हुए थे। किसी दरगाह में दुआ मांगते और कलमा पढ़ते कई भाजपा नेताओं की तस्वीरें सामने आ गई, इन तस्वीरों में पीएम मोदी, अमित शाह, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा जैसे भाजपा के दिग्गज नेतागण शुमार हैं। एक अन्य तस्वीर में मोदी व स्मृति ईरानी किसी मजार पर चादर चढ़ाते नज़र आ रहे हैं।

और अंत में

कर्नाटक चुनाव में एक बात तो दिलचस्प तौर पर सामने आई है कि वहां के हर क्षेत्र में कांगे्रस मुख्य लड़ाई में शामिल दिखती है। दक्षिण कर्नाटक में कांग्रेस की टक्कर जेडीएस है तो केंद्रीय कर्नाटक में कांग्रेस की लड़ाई भाजपा से है। उत्तर में भी भाजपा बनाम कांग्रेस की लड़ाई है। तटीय कर्नाटक में बजरंग बली के दम पर भाजपा मजबूत दिख रही है। पर सबसे दिलचस्प कि कांग्रेस यहां हर जगह लड़ाई में है, पर कई स्थानों पर जेडीएस ने भाजपा की जगह ले ली है।

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