वर्षांत समीक्षा-2022 : परमाणु ऊर्जा विभाग

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2014 से 2022 तक परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां

क . अप्सरा- यू – भाभा परमाणु ऊर्जा केंद्र (बीएआरसी)-2 मेगावाट का पूल प्रकार  शोध (टाइप रिसर्च) रिएक्टर जो कि चिकित्सा, उद्योग और कृषि के क्षेत्र में अनुप्रयोगों के लिए समस्थानिकों (आइसोटोप्स) के उन्नत उत्पादन के लिए उपयुक्त है, 10 सितंबर 2018 को चालू हो गया। इस सुविधा का रेडियो समस्थानिकों (रेडियोआइसोटोप्स) के उपयोग उत्पादन के लिए नमूनों को विकिरणित करने के लिए किया जा रहा है।

ख. ध्रुव (बीएआरसी): राष्ट्रीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों द्वारा परमाणु और संबद्ध विज्ञान में अध्ययन के अलावा, पिछले आठ वर्षों में रिएक्टर बहुत उच्च उपलब्धता कारकों पर संचालित होता है और यहां लगभग 4000 नमूने विकिरणित किए जाते  हैं ।

ग़. इंदिरा गांधी परिमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर)/फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर) ने  यूरेनियम कार्बाइड और प्लूटोनियम कार्बाइड के लिए  स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित ईंधन का उपयोग करके 40 मेगावाट (एमडब्ल्यू) की अपनी निर्धारित (रेटेड) एमडब्ल्यूई  क्षमता प्राप्त की और यह 10 एमडब्ल्यूई का उत्पादन करते हुए ग्रिड से जुड़ा है । संचालन का संचयी प्रभावी पूर्ण शक्ति दिवस काल (ईएफपीडी) 128 दिनों का है और इस वर्ष (2022) उत्पादित विद्युत ऊर्जा 2 करोड़ 35 लाख  यूनिट है और 2014-2022 की अवधि में कुल 7 करोड़ 58 लाख यूनिट विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया गया है।

घ. इंदिरा गांधी परिमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर)/धात्विक ईंधन पिन निर्माण सुविधा (मेटल फ्यूल पिन फैब्रिकेशन फैसिलिटी) : उच्च शुद्धता वाले अक्रिय (इनर्ट) वातावरण ग्लोव बॉक्स ट्रेन के साथ सोडियम संयुग्मित धात्विक ईंधन पिन निर्माण सुविधा (सोडियम बॉन्डेड मेटल फ्यूल पिन फैब्रिकेशन फैसिलिटी) स्थापित की गई है। यू–पीयू–जेडआर के धातु ईंधन पिनों का निर्माण किया गया और परीक्षण ईंधन पिनों का एफबीटीआर में विकिरण किया जा रहा है। यह सुविधा माननीय राष्ट्रपति द्वारा मई 2018 में राष्ट्र को समर्पित की गई थी।

2. विद्युत उत्पादन

अ. न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल)/तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन (टीएपीएस) 1 और 2 के संचालन के 53 वर्ष पूरे हो रहे हैं, जो विश्व में सबसे पुराने रिएक्टर हैं ।

आ. एनपीसीआईएल/अब तक लगभग 582 रिएक्टर वर्षों का प्रचालन।

इ. एनपीसीआईएल / केजीएस-1 द्वारा 962 दिनों के निरंतर संचालन का विश्व रिकॉर्ड स्थापित करना; 765 दिनों  (2 वर्ष से अधिक) के लिए राजस्थान परमाणु ऊर्जा स्टेशन– 5  (आरएपीएस-5) का निरंतर संचालन ; आरएपीएस-3 द्वारा 777 दिनों का निरंतर प्रचालन; नरौरा परमाणु ऊर्जा स्टेशन-2 (एनएपीएस-2) का 852 दिनों का सतत संचालन; अब तक 42 बार एक वर्ष से अधिक समय तक भारतीय परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों का निरंतर संचालन;

ई. एनपीसीआईएल/पूजीगत व्यय (कैपिटल एक्सपेंडीचर-कैपेक्स) वर्ष 2021-22 में 14235 करोड़ रूपये ।

उ. 2021-22 में एनपीसीआईएल/1897 करोड़ रुपये का लाभांश।

ऊ. एनपीसीआईएल/सीएसआर व्यय रु. 101.96 करोड़ ।

3. रेडियो-आइसोटोप उत्पादन

बीएआरसी/सस्ते मूल्यों पर कैंसर के उपचार के लिए कई रेडियोफार्मास्यूटिकल एजेंटों के स्वदेशी विकास और नैदानिक ​​अनुप्रयोगों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान। इनमें 177 एलयू–डीओटीए–टीएटीई, 177 एलयू–पीइएमए–617, 177 एलयू– ईडीटीएमपी,177 एलयू–डीओटीएमपी, 90 वाई-हाइड्रॉक्सीपैटाइट सूक्ष्म कण आदि शामिल हैं। यिट्रीयम-90 के तीन अलग-अलग फॉर्मूलेशन विकसित और स्थापित  किए गए थे ।

बीएआरसी/अपशिष्ट से सम्पदा के दर्शन पर काम करते हुए सीजियम (सीएस) से  लगभग 1 लाख क्यूरी (सीआई) प्राप्त किया गया और इसमें से लगभग 6 किलो को विकिरण के लिए पेंसिलों में परिवर्तित कर दिया गया है।

परमाणु कचरे से 106 आरयू की पुनःप्राप्ति के लिए बीएआरसी/बीआरआईटी  प्रौद्योगिकी और आंखों के कैंसर के उपचार के लिए 106 आरयू युक्त चांदी की पट्टिका (परिपत्र विन्यास) का निर्माण सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। इन पट्टिकाओं की आपूर्ति अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली सहित कई अस्पतालों को की गई थी।

बीआरआईटी/सीएस-137 आधारित ब्लड इरेडिएटर को कोबाल्ट (सीओ)-60  आधारित ब्लड इरेडिएटर के विकल्प के रूप में विकसित और पेश किया गया था। सीओ 60 रक्त किरणक की तुलना में इसका अधिक उपयोगी जीवन है।

4. कैंसर की देखभाल

क. टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी)/अकेले मुंबई में हर साल करीब 80,000 नए रोगियों और 650,000 से ज्यादा फॉलोअप दर्ज करते हैं, यह सामाजिक आर्थिक स्थिति और भुगतान करने की उनकी क्षमता की परवाह किए बिना देश भर के मरीजों को उच्च गुणवत्ता वाली कैंसर देखभाल प्रदान करता है; 60% से अधिक रोगियों का लगभग निशुल्क उपचार किया जाता है ।

ख. टीएमसी/राष्ट्रीय स्तर पर

  • राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड (एनसीजी)-2012 में भारत भर में कैंसर देखभाल के समान मानक बनाने की व्यापक दृष्टि से बनाया गया । आठ वर्षों के  बाद, यह 287 सदस्यों के साथ विश्व के ऐसे सबसे बड़े कैंसर नेटवर्क में विकसित हो गया है, जिसमें कैंसर केंद्र, अनुसंधान संस्थान, रोगी पक्षधारिता समूह, धर्मार्थ संगठन और पेशेवर समाज शामिल हैं। एनसीजी के सदस्य संगठनों के बीच, यह नेटवर्क सालाना कैंसर के 750,000 से अधिक नए रोगियों का उपचार करता है, जो भारत के कुल कैंसर रोगियों का 60% से अधिक है।
  • एनजीसी ने आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी- पीएमजेएवाई) के साथ साक्ष्य-आधारित कैंसर देखभाल सुनिश्चित करने और योजना के अंतर्गत टैरिफ पैकेजों को युक्तिसंगत बनाने के लिए भी भागीदारी की है। हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम) में रोगी स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स (पीएचआर) पर एनसीजी के काम का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था ।
  • टीएमसी ने एक प्रमुख विस्तार योजना शुरू की है जो इसकी रोगी देखभाल क्षमताओं को चौगुना करेगी और साथ ही देश भर में इसकी भौगोलिक उपस्थिति को व्यापक बनाएगी। टीएमसी ने अब वाराणसी (2), गुवाहाटी, संगरूर, विशाखापत्तनम, चंडीगढ़ और मुजफ्फरपुर में स्थित छह अन्य अस्पतालों में विस्तार किया है ।
  • केंद्र पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित  विभिन्न राज्य सरकारों को उनकी कैंसर देखभाल को मजबूत करने के लिए तकनीकी सहायता की पेशकश कर रहा है ।
  • एसीटीआरईसी, जिसके पास पिछले साल तक 100 बिस्तर थे, इस साल 500 बिस्तरों तक विस्तारित हो गया है (2023 के मध्य तक यह 900 बिस्तरों तक विस्तारित होगा) और ठोस ट्यूमर कीमोथेरेपी, हेमेटो-लिम्फोइड कैंसर प्रबंधन, उपचार के लिए समर्पित रेडियोन्यूक्लाइड आइसोटोप के साथ और भारत में तीन गैन्ट्री के साथ पहली प्रोटॉन बीम थेरेपी यूनिट एवं   सरकारी क्षेत्र में पहली सुविधा के साथ अत्याधुनिक उपचार की पेशकश करेगा।
  • 2017 में 740 बिस्तरों से शुरू होकर टीएमसी अब 2022 में 2450 बिस्तरों तक बढ़ गया है और 2023 के मध्य तक इसकी क्षमता 2700 बिस्तरों तक बढ़ जाएगी। वर्तमान में, टीएमसी प्रतिवर्ष कैंसर के लगभग 125,000 नए रोगियों का उपचार करती है (जो भारत के सभी कैंसर रोगियों की संख्या  का लगभग 10% है)I
  • पंजाब और उत्तर प्रदेश में कैंसर देखभाल का हब एंड स्पोक मॉडल सफलतापूर्वक लागू किया गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर संसदीय समिति ने 325वीं रिपोर्ट में और संसदीय स्थायी समिति स्वास्थ्य और परिवार कल्याण ने अपनी 139वीं रिपोर्ट में इसका समर्थन किया है।

ग़. टीएमसी/अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर

  • एनसीजी के अंतर्राष्ट्रीय घटक एनसीजी “विश्वम” के निर्माण के साथ, नेटवर्क को तेजी से वैश्विक कैंसर देखभाल में सबसे प्रभावशाली संगठनों में से एक के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
  • टीएमसी में कम लागत के कार्यान्वयन योग्य अनुसंधान परिणामों ने विश्व स्तर पर विशेष रूप से अफ्रीका और विकासशील दुनिया में कैंसर देखभाल को बदल दिया है जहां यह अब कार्यान्वयन योग्य दिशानिर्देशों का हिस्सा बन गया है। केवल इस वर्ष स्तन कैंसर में तीन नए अध्ययन प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने उत्तरजीविता में सुधार के लिए कम लागत और स्वदेशी हस्तक्षेप का उपयोग किया है और वैश्विक स्तर पर लागू होने पर यह 100,000 से अधिक जीवन बचाने की क्षमता रखता है ।

5. परमाणु कृषि और खाद्य प्रसंस्करण/संरक्षण के लिए विकिरण प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग

  • बीएआरसी/अब तक भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) ने मूंगफली, मूंग दाल, अरहर, उड़द दाल, सरसों, सोयाबीन, लोबिया, चावल, जूट और सूरजमुखी की किस्मों सहित खेती के लिए 55 फसल प्रजातियों को विकसित और जारी किया है। बीजों की 13 नई किस्मों को जारी किया गया ।
  • बीएआरसी/पर्यावरण के अनुकूल और जैव विखंडनीय (बायोडिग्रेडेबल)  बीएआरसी-हाइड्रोजेल को अपने स्वयं के वजन के 550 गुना तक जल अवशोषण प्राप्त करने के लिए और बेहतर बनाया गया है।
  • बीएआरसी/ 13 खाद्य विकिरणन संयंत्र स्थापित किए गए हैं । बीएआरसी–डीएई तकनीक पर आधारित लीची उपचारण संयंत्र (ट्रीटमेंट प्लांट) को 29 मई 2017 को मुशहरी, मुजफ्फरपुर, बिहार में स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, में प्रारम्भ किया गया था। जामुन उत्पाद, अंकुरित खाद्यान और स्वीट कॉर्न कर्नेल, स्टफ्ड बेक्ड फूड, इंटरमीडिएट मोइस्चर श्रिम्प और मछली सूप पाउडर के लिए खाद्य संरक्षण तकनीकों का विकास किया गया और इन्हें  हाल ही में व्यावसायिक तैनाती के लिए विभिन्न फर्मों में स्थानांतरित कर दिया गया है। सभी गुणवत्ता विशेषताओं को बनाए रखते 28 टन आलू की शेल्फ लाइफ को सामान्य 100 दिनों से बढ़ाकर आठ महीने करने के लिए गामा विकिरण तकनीक का उपयोग किया गया था।
  1. . तकनीकी हस्तांतरण
  • बीएआरसी/के कम लागत वाले हाथ से उपयोग किए जा सकने वाले 12-चैनल के टेली-ईसीजी उपकरण को  ग्रामीण स्वास्थ्य की उपयुक्त देखभाल के लिए विकसित किया गया था। इस उपकरण को ब्लूटूथ के माध्यम से मोबाइल फोन का उपयोग करके संचालित किया जा सकता है।
  • सीवेज कीचड़ को जैविक खाद में परिवर्तित करने के लिए बीएआरसी/ विकिरण स्वच्छता प्रौद्योगिकी-अहमदाबाद में 100 टन/दिन क्षमता की पहली सुविधा का निर्माण किया गया है। अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) के संयंत्र का उद्घाटन 2019 में हुआ था; इंदौर में दूसरा संयंत्र लगने वाला है, तीसरी इकाई के लिए पुणे नगर निगम के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ।
  • बीएआरसी/भाभा कवच-विशेष रूप से डिजाइन किए गए बुलेट प्रूफ जैकेट (बीपीजे) की एक श्रृंखला है जो स्वदेशी रूप से विकसित हॉट-प्रेस्ड बोरान कार्बाइड (एचपीबीसी) और कार्बन नैनोट्यूब (सीएनटी) प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती है। भाभा कवच के निर्माण की तकनीक अप्रैल 2017 में मैसर्स मिश्रधातु निगम (मिधानी) और 3 अन्य प्रतिष्ठित कंपनियों को हस्तांतरित की गई थी। स्तर III + भाभा कवच ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस दल और सीमा सुरक्षा बल के लिए सफलतापूर्वक परीक्षण किया और स्तर IV खतरे के लिए बोरॉन कार्बाइड-सीएनटी संसेचित बहुलक समग्र बैलिस्टिक कवच का सफलतापूर्वक परीक्षण किया ।
  • बीएआरसी/निसर्गुण-ठोस जैवविखंडनीय कचरे के स्वच्छ प्रसंस्करण और निपटान के लिए प्रौद्योगिकी : स्वच्छ भारत अभियान के एक भाग के रूप में माथेरान नगर परिषद सहित कई शहरों में निसर्गुण लागू  किया गया था। केरल के कन्नूर गांव में प्रतिदिन 1000 किलो कचरा निसर्गुण प्लांट लगाया गया है। निसर्गुण संयंत्र से उत्पादित बायोगैस का उपयोग रसोई में ईंधन के रूप में किया जाता है ।
  • बीएआरसी/जल उपचार प्रौद्योगिकियां-महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा राज्य के कई गांवों में स्थापित की गई  हैं।
  • बहु प्रभावी  आसवन-तापीय वाष्प संपीडन (मल्टी इफेक्ट डिस्टिलेशन-थर्मल वेपर कम्प्रेशन) पर आधारित बीएआरसी/तापीय समुद्री जल अलवणीकरण तकनीक (थर्मल सीवाटर डीसैलीनेशन टेक्नीक)-दो उद्यमियों को हस्तांतरित की गई है।
  1. असैन्य परमाणु सहयोग :
  • जापान, ग्रेट ब्रिटेन (यूके), वियतनाम, बांग्लादेश के साथ परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए नागरिक परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
  • बांग्लादेश में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिए रूस, बांग्लादेश और भारत के बीच त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
  • कनाडा के साथ परमाणु अनुसंधान एवं विकास सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर।
  1. प्रकाशन और पेटेंट
  • मौलिक विज्ञान प्रकर्ष केन्द्र (सीईबीएस)/द्वारा 516 से अधिक वैज्ञानिक पत्र प्रकाशित किए गए हैं।
  • पिछले 8 वर्षों में परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) ने लगभग 156 पेटेंट दायर किए हैं (जिसमे 80 भारतीय, 13 पीसीटी आवेदन और 63 विदेशी आवेदन हैं) और जिनमें से अब तक लगभग 121 प्रदान किए जा चुके हैं। शेष  परीक्षा के विभिन्न चरणों में हैं ।
  •  आईओपी/इंटरनेशनल पीयर रिव्यूड जर्नल्स में 700 से ज्यादा पेपर प्रकाशित किए जा चुके हैं ।
  •  आरआरसीएटी/लगभग 120 एम.टेक/एम.एससी छात्रों को आरआरकेट की अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में प्रतिवर्ष  प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है ।
  •  इंदिरा गांधी परिमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर)/ को एक भारतीय पेटेंट (पेटेंट संख्या आवंटित: 396872 ) 13 मई 2022 को एक आईजीसीएआर आविष्कार के लिए प्रदान किया गया था, जिसका शीर्षक था , ” ए मेथड  एंड एपरेटस फॉर  ब्लॉक एन्क्रिप्शन एंड सिंक्रोनस स्ट्रीम सिफर”।
  • आईजीसीएआर प्रकाशन और उद्धरण : इंदिरा गांधी परिमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) का प्रकाशन केवल अच्छे प्रभाव और विज्ञान अनुक्रमित पत्रिकाओं के कार्यक्षेत्र (स्कोप)/वेब में रहा है। स्कोपस साइटेशन डेटाबेस से प्राप्त प्रकाशन और उद्धरण की स्थिति नीचे दी गई है: ( स्रोत : स्कोपस, दिनांक 09.12.2022 )

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