साइबर क्राइम के 31 लाख मामले, एफआईआर सिर्फ़ 66 हज़ार दर्ज
सरकार साइबर-सुरक्षित देश बनाने के लिए प्रतिबद्ध और प्रयासरत है क्योंकि साइबर सुरक्षा विश्व स्तर पर सभी सुरक्षा संबंधी मामलों का एक अनिवार्य पहलू बन गई है।
एफआईआर ही दर्ज नहीं करते-
लेकिन लगता है कि गृह मंत्रालय के प्रयासों पर पुलिस ही पानी फेर रही है।
पुलिस साइबर अपराध के सभी मामलों को दर्ज तक नहीं कर रही है। अन्य अपराधों की ही तरह साइबर अपराध के शिकार हुए लोगों को भी एफआईआर दर्ज कराने के ही लिए ही नाकों चने चबाने पड़ते हैं या सिफारिश करानी पड़ती है। आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाने की प्रवृत्ति के कारण ही पुलिस द्वारा अपराध को सही दर्ज नहीं किए जाने की परंपरा है। इस परंपरा में अपराध को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करना शामिल है।
जबकि सच्चाई यह है कि अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने का सिर्फ और सिर्फ एकमात्र रास्ता यह है कि अपराध के सभी मामलों को सही सही दर्ज किया जाए। वरना सरकार की साइबर सुरक्षा की भी कोई भी योजना सफल नहीं होगी।
पुलिस की पोल खुली-
सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़े चौंकाने वाले और पुलिस की पोल खोलने वाले हैं।
अगस्त 2019 में लॉन्च होने के बाद से राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (www.cybercrime.gov.in) पर अब तक 31 लाख से अधिक साइबर अपराध की शिकायतें दर्ज की गई हैं। इन शिकायतों के आधार पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस/कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा सिर्फ 66,000 से अधिक एफआईआर ही दर्ज की गई हैं।
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4 सी) के सीईओ राजेश कुमार द्वारा वार्षिक सम्मेलन (3 जनवरी 2024)में यह जानकारी दी गई।
इन आंकड़ों से ही यह साफ पता चलता है कि साइबर अपराध के करीब 97 फीसदी मामलों में तो एफआईआर ही दर्ज नहीं की गई है।
एफआईआर दर्ज हो-
गृह मंत्रालय/भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4 सी) को ऐसा
सिस्टम बनाना चाहिए, जो यह सुनिश्चित करें कि साइबर अपराध की शिकायत करते ही तुरंत एफआईआर भी दर्ज हो जाए। एफआईआर दर्ज करने के बाद पुलिस ने उस मामले में अपराधियों को पकड़ने के लिए क्या क्या प्रयास किए, इसकी जानकारी खुद पुलिस द्वारा आई4 सी और पीड़ित को देना अनिवार्य हो।
पैसा आसानी से वापस मिल जाए-
साइबर अपराध के कारण पैसा गंवा/फंसा चुके लोगों को अपना पैसा वापस मिलने में बैंक/अदालत/कानूनी प्रक्रियाओं के कारण काफ़ी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को ऐसा सरल सिस्टम बनाना चाहिए जिससे पीड़ित को पैसा आसानी से और जल्द वापस मिल जाए।
आई4 सी के अनुसार तो अभी हालात यह है कि साइबर अपराध पीड़ित व्यक्ति को पैसा वापस मिलने की दर नौ-दस प्रतिशत ही है। यानी दस फीसदी से भी कम लोगों को अपनी रकम वापस मिली है।
हेल्पलाइन नंबर 1930-
राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 की मदद से, संबंधित एजेंसियों ने 4.3 लाख पीड़ितों को लाभान्वित करके तीन वर्षों में 1,100 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की गई धनराशि को बचाने में मदद की।
लेकिन दस फीसदी से भी कम लोगों को अपनी रकम वापस मिली है।
हेल्पलाइन नंबर 1930, आम नागरिकों को ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी दर्ज करने में मदद कर रहा है, सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को इसमें शामिल किया गया है और 263 से अधिक बैंकों, ई-कॉमर्स कंपनियों और अन्य को एकीकृत किया गया है।
इस हेल्पलाइन नंबर पर रिपोर्ट करने के बाद आपके अकाउंट से ट्रांसफर किए जा रही रकम को फौरन अगले अकाउंट में फ्रीज कर दिया जाता है, जिससे जांच के बाद इसे वापस आपके पास भेजा जा सके।
गृह मंत्रालय द्वारा जनवरी 2020 में स्थापित भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र ( आई4 सी )का उद्देश्य देश में साइबर अपराध से समन्वित और व्यापक तरीके से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों (एलईए) के लिए एक रूपरेखा और इको-सिस्टम प्रदान करना है
आई4 सी की उपलब्धियां-
नागरिक-केंद्रित राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) आई4 सी की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है, इस पोर्टल का अब तक 14 करोड़ से अधिक बार उपयोग किया जा चुका है।
अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (सीसीटीएनएस) के माध्यम से, 99.9 फीसदी पुलिस स्टेशन (16,597) सीधे 100 फीसदी एफआईआर दर्ज कर रहे हैं और 28.98 करोड़ पुलिस रिकॉर्ड दर्ज किए गए हैं। राष्ट्रीय स्वचालित फ़िंगर-प्रिंट पहचान प्रणाली ने अपराध नियंत्रण में फ़िंगरप्रिंट पहचान प्रणाली में क्रांति ला दी है, 1,05,80,266 रिकॉर्ड एनएएफआईएस पर एकीकृत किए जा रहे हैं।
आई4 सी अपने मॉडल जेसीसीटी
प्रबंधन सूचना प्रणाली (बीटा संस्करण) के माध्यम से 2,95,000 से अधिक नकली सिम कार्ड, 46,000 से अधिक आईएमईआई, 2800 से अधिक वेबसाइट/यूआरएल, 595 मोबाइल एप्लिकेशन को ब्लॉक करवा चुका है। शीर्ष 50 साइबर हमलों के तौर-तरीकों पर एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार की गई है।
जामताड़ा पर शिकंजा-
आई4 सी और जेसीसीटी जामताड़ा, झारखंड ने ‘प्रतिबिंब’ प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है जो न केवल डेटा एकत्र करता है बल्कि साइबर अपराधों से जुड़े मोबाइल नंबरों के भौतिक स्थानों को इंगित करने के लिए भू-स्थानिक मैपिंग का भी उपयोग करता है।
इसके कारण झारखंड पुलिस द्वारा दिसंबर 2023 में 400 से अधिक गिरफ्तारियां की गई हैं, जो इस क्षेत्र से होने वाले अपराधों में गिरावट के ठोस सबूत हैं, और हॉटस्पॉट को खत्म करने के लिए इस मॉडल का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार किया जाएगा।