“शहद/मधुमक्खी पालन क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय उपाय और नवाचार” विषय पर परामर्श कार्यशाला का आयोजन
नई दिल्ली, 14अप्रैल। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (एनबीएचएम) के तहत कल नई दिल्ली में “शहद/मधुमक्खी पालन क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय उपाय और नवाचार” विषय पर एक परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया। लगभग 600 मधुमक्खी पालक शहद स्टार्टअप/एफपीओ, मधुमक्खी पालन के हितधारकों, विभिन्न मंत्रालयों/सरकारी संगठनों/संस्थानों, राज्य बागवानी विभागों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू)/केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों (सीएयू) आदि के अधिकारी इस कार्यशाला में भौतिक और वर्चुअली रूप से शामिल हुए।
इस कार्यशाला में अपने उद्घाटन संबोधन में बागबानी आयुक्त डॉ. प्रभात कुमार ने देश में मधुमक्खी पालन की स्थिति और इसके परिदृश्य के बारे में जानकारी देते हुए मधुमक्खी पालन में प्रौद्योगिकीय उपायों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने एनबीएचएम के माध्यम से शहद एफपीओ और कृषि स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देने के प्रावधान सहित मधुमक्खी पालन क्षेत्र को मजबूत बनाने में राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (एनबीएचएम) की भूमिका और इसके योगदान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने इस बारे में भी प्रकाश डाला कि एनबीएचएम योजना को लागू करने का उद्देश्य शहद संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परीक्षण और ब्रांडिंग केंद्रों के लिए बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करना है, जिससे देश में शहद की निर्यात क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि शहद क्षेत्र में मिलावट और अनाचार को रोकने के लिए जीआई टैगिंग एक मुख्य हथियार बन सकता है, जिससे अपने उत्पाद के लिए जीआई टैगिंग एवं जीईओ रेफरेंसिंग प्राप्त करने के लिए मधुमक्खी पालकों और हितधारकों को प्रोत्साहन मिला है।
उन्होंने मधुमक्खी पालकों और अन्य हितधारकों को एनबीएचएम के तहत उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठाने और मधुमक्खी पालन को वैज्ञानिक तरीके से अपनाने के लिए आमंत्रित किया, जिससे शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पादों के माध्यम से अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सके। उन्होंने एनबीएचएम योजना के तहत पूरे देश में मधुमक्खी पालकों को पूरी सहायता उपलब्ध कराने का भी आश्वासन दिया।
डॉ. एन. के. पटले, अपर बागवानी आयुक्त और कार्यकारी निदेशक, राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (एनबीबी) ने एनबीएचएम के तहत निभाई गयी भूमिका, देश में शहद की जीआई टैगिंग/जीईओ रेफरेंसिंग, एनबीएचएम के तहत सहायता प्राप्त लाभार्थियों की सफलता की कहानियों, एनबीएचएम के तहत मधुमक्खी पालकों, कृषि स्टार्टअप्स/हितधारकों के लिए उपलब्ध अवसरों के बारे में एक संक्षिप्त प्रस्तुति दी। इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन में प्रौद्योगिकीय उपायों की बहुत आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि सरकार मधुमक्खी पालन में शहद स्टार्टअप्स और एफपीओ को सहायता प्रदान करने सहित देश में मधुमक्खी पालन उद्योग की समग्र क्षमता बढ़ाने के लिए भी प्रतिबद्ध है। उन्होंने देश में शहद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एनबीएचएम के तहत 31 मिनी परीक्षण प्रयोगशालाओं और 4 क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं को मंजूरी दी है। मधुक्रांति पोर्टल मधुमक्खी पालकों/अन्य हितधारकों के पंजीकरण के माध्यम से मधुमक्खी पालन के बारे में डेटा एकत्र करने के लिए एनबीएचएम के तहत की गयी एक अन्य पहल है।
उन्होंने बताया कि एनबीएचएम मधुमक्खी पालन/शहद उत्पादन में शामिल कृषि-उद्यमियों/स्टार्टअप्स को सहायता प्रदान कर रहा है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि एफपीओ को प्रोत्साहन और गठन कृषि को आत्मनिर्भर कृषि में परिवर्तित करने का पहला कदम है। इसके लिए उन्होंने यह आश्वासन दिया कि एनबीएचएम योजना के लागू होने से मधुमक्खी पालन क्षेत्र में संस्थागत ढांचे को मजबूत बनाकर क्रांतिकारी परिवर्तन आएंगे और इससे शहद एफपीओ और हनी स्टार्टअप्स के गठन और प्रोत्साहन में मदद मिलेगी। उन्होंने सभी मधुमक्खी पालन हितधारकों को अपने उत्पाद के लिए जीआई टैगिंग प्राप्त करने के उद्देश्य से आगे आने के लिए आमंत्रित किया।
सैमुअल प्रवीण कुमार, संयुक्त सचिव (विस्तार), डीए एंड एफडब्ल्यू ने बताया कि सफल मिशन के लिए बुनियादी ढांचा, नवाचार और प्रौद्योगिकीय रूप से मजबूत रणनीति अपनाई जाना चाहिए, ताकि इस क्षेत्र को बढ़ावा मिल सके। उन्होंने यह उल्लेख भी किया कि मिशन को जमीनी स्तर तक पहुंचाने के लिए और इस मिशन के सफल संचालन के लिए पहुंच का विस्तार सफलता की एक अन्य कुंजी है।
डॉ. बलराज सिंह, कुलपति, एसकेएन कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर, जयपुर, राजस्थान ने भी इस कार्यशाला में प्रतिभागियों के साथ बातचीत करते हुए मधुमक्खी पालन क्षेत्र को प्रोत्साहन देने और इसके विकास के लिए केंद्रीय और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की भूमिका और उनकी सहायता के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण, कौशल विकास तथा मधुमक्खी ब्रीडिंग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। डॉ. वी. गीतालक्ष्मी, कुलपति, तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर, तमिलनाडु ने भी इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय के उपायों के बारे में प्रकाश डाला।
पी. चंद्रशेखर, महानिदेशक, एमएएनएजीई (मैनेज) ने मधुमक्खी पालन क्षेत्र में कृषि स्टार्टअप्स की क्षमता के बारे में जानकारी देते हुए यह उल्लेख किया कि मैनेज कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सफल उद्यमों का सृजन करने के लिए वन स्टॉप समाधान है। उन्होंने मधुमक्खी पालन पर साहित्य तैयार करने के बारे में काम करने का सुझाव दिया और कहा कि यह साहित्य विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ताकि इस योजना की अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच हो सके। उन्होंने मधुमक्खी पालन क्षेत्र में स्टार्टअप्स और उद्यमियों के लिए अधिक क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू करने और ईकोसिस्टम स्थापित करने का भी सुझाव दिया।
ओनली एंड श्योरली ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स कंपनी, हरिद्वार के श्री निर्मल वार्ष्णेय ने भी मधुमक्खी पालन में अपने अनुभव साझा किए और उन्होंने एनबीएचएम के तहत सहायता प्राप्त करने के लिए मधुमक्खी पालकों/छोटे उद्यमियों को अपने व्यवसाय का विस्तार करने के लिए आगे आने का आग्रह किया। श्री नूर मोहम्मद भट्ट, वैली एपीरीज़ एंड फूड प्रोडक्ट्स, पुलवामा, जम्मू-कश्मीर ने पुराने मधुमक्खी पालकों को सहायता प्रदान करने और शहद में मिलावट को प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया।
केजरीवाल इंटरप्राइजेज, नई दिल्ली के अमित धानुका ने शहद की कीमतों में स्थिरता लाने का सुझाव देते हुए मस्टर्ड शहद क्रिस्टलीकरण के बारे में जागरूकता पैदा करने और सी3, सी4 और एंटीबायोटिक की शहद में मिलावट पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया।
श्री जयकुमार, निदेशक मार्थंडम हनी एफपीओ, कन्याकुमारी, तमिलनाडु ने कहा कि शहद की जीआई टैगिंग से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में शहद की मांग में वृद्धि करके जीआई टैग के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि में बढ़ोतरी करने में मदद करेगी। उन्होंने मधुमक्खी पालन में शामिल सभी हितधारकों को अपने उत्पाद के लिए जीआई टैगिंग के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने मार्तंडम शहद के लिए जीआई टैग के लिए आवेदन किया था, जिसके बारे में संबंधित अधिकारी सक्रिय रूप से विचार कर रहे हैं।
मधुमक्खी वाला, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश के निमित सिंह ने अपने हनी स्टार्टअप्स के बारे में जानकारी दी और मधुमक्खी पालकों तथा अन्य हितधारकों को शहद स्टार्टअप स्थापित करके अपने व्यवसाय का विस्तार करने तथा भारत सरकार की योजनाओं के तहत सहायता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।
डॉ अर्जुन सिंह सैनी, महानिदेशक (बागवानी), हरियाणा सरकार ने मधुमक्खी पालन क्षेत्र को गुणवत्तायुक्त शहद का उत्पादन और क्षेत्र में वैक्स-शीट का निर्माण करने के लिए एकीकृत तरीके अपनाने का सुझाव दिया, क्योंकि प्रयोगशाला राष्ट्रीय सुविधा के लिए स्वीकृत है और यह एक वर्ष में संचालित हो जाएगी। उन्होंने निर्यातकों और मधुमक्खी पालकों के बीच विश्वास से संबंधित मुद्दों पर भी प्रकाश डाला और कहा कि सामान्य मंच उपलब्ध कराने के लिए व्यापार केंद्रों की ज़रूरत है। एनबीबी को इस क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक विज़न लक्षित करना चाहिए और अन्य मधुमक्खी उत्पादों पर ध्यान देते हुए मधुमक्खी निदान केंद्र स्थापित करने चाहिए।
इंडियन हनी एलायंस (आईएचए) के महासचिव दीपक जॉली ने बताया कि उनका संगठन मधुमक्खी पालकों और उपभोक्ताओं को अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने और शहद क्षेत्र में मूल्य श्रृंखला के विकास के लिए एक एकीकृत मंच उपलब्ध कराएगा। पंकज प्रसाद रतूड़ी, प्रमुख जैव-संसाधन विकास, डाबर ने बताया कि डाबर भारत के विभिन्न स्थानों से शहद खरीद रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि डाबर ने बिहार और मध्य प्रदेश में मधुमक्खी पालन की प्रक्रिया में स्थानीय गैरसरकारी संगठनों (एनजीओ) के प्रशिक्षण और सहायता के माध्यम से आय का एक नया स्रोत उपलब्ध कराने और गरीबी उन्मूलन के लिए एक बड़ी पहल शुरू की है। डाबर ने पश्चिम बंगाल के सुंदरबन वन क्षेत्र के लिए भी ऐसी ही योजना बनाई है।
रमेश मित्तल, निदेशक, राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान (एनआईएएम), जयपुर ने शहद क्षेत्र में स्टार्ट-अप्स का अनुभव साझा करते हुए शहद क्षेत्र को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने शहद क्षेत्र के लिए इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित करने का सुझाव दिया क्योंकि ऐसा ही आरकेवीवाई सहायता के तहत स्थापित किया गया है। उन्होंने समर्पित प्रयासों के साथ शहद क्षेत्र में जीआई टैग प्राप्त करने के लिए एनआईएएम को सहायता के लिए हाथ बढ़ाया है।
डॉ. राजीव चावला, एनडीडीबी ने एनडीडीबी द्वारा स्थापित पहली शहद परीक्षण प्रयोगशाला के बारे में जानकारी दी। उन्होंने शहद के परीक्षण के मुद्दों के समाधान के लिए विभिन्न तरीके भी सुझाए। डॉ. उमेश, डीजीएम, एपीडा ने शहद के निर्यात में एपीडा की भूमिका और इसके प्रचार के लिए भविष्य की रणनीतियों के बारे में संक्षेप में जानकारी दी। एपीडा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से मानव जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में प्रकाश डालते हुए खाद्य निर्यात के हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करने के बारे में योजना बना रहा है।
अपनी टिप्पणी में, डॉ. अभिलक्ष लिखी, अपर सचिव, डीए एंड एफडब्ल्यू ने एनबीएचएम योजना के तहत सहायता के माध्यम से संभावित नवोदित एग्रीस्टार्ट-अप्स और एफपीओ के पोषण पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें मधुमक्खी पालन का एक आकर्षक करियर के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित करने का उल्लेख किया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि एनबीएचएम के लागू होने से वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन में कौशल का उन्नयन होगा, शहद के प्रसंस्करण के लिए अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा सुविधाओं की स्थापना और मधुमक्खी के मोम, प्रोपोलिस, रॉयल जेली, मधुमक्खी के जहर (बी-वेनम) जैसे संबद्ध मधुमक्खी पालन उत्पादों, गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं द्वारा उन्नयन और संग्रह, भंडारण, बॉटलिंग और विपणन केंद्रों की स्थापना करके बेहतर आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण होगा। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि एपीडा, मैनेज, एनआईएएम, नाफेड, एनडीडीबी, एनबीबी और अन्य संबंधित संगठनों के सहयोगात्मक दृष्टिकोण से मधुमक्खी पालन क्षेत्र में क्रांतिकारी उपलब्धियाँ प्राप्त होंगी।
उन्होंने क्रिस्टलीकृत शहद के उपयोग पर मास मीडिया के माध्यम से जागरूकता अभियान शुरू करने के बारे में जोर दिया और कहा कि क्रिस्टलीकृत शहद एक शुद्ध/बिना मिलावट वाला शहद है। मधुमक्खियों की स्वदेशी प्रजातियों का अधिक क्षेत्रवार लोकप्रियता के लिए मूल्यांकन किये जाने की भी आवश्यकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि शहद में जीआई टैगिंग से मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन के माध्यम से उत्पादकों के राजस्व और क्षेत्र में रोजगार में बढ़ोतरी होने से ग्रामीण क्षेत्रों को आर्थिक बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। उत्पादों की अच्छी गुणवत्ता उत्पादकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय द्वार भी खोलती है और इस प्रकार शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।
पैनलिस्ट और कार्यशाला के अन्य प्रतिभागियों ने प्रमुख सुझाव देते हुए जिन प्रमुख बिंदुओं पर काम करने के बारे में प्रकाश डाला, उनमें गुणवत्ता वाले शहद की ट्रेसबिलिटी, प्रौद्योगिकीय उपायों, निर्यातकों का शिकायती तंत्र स्थापित करना, प्रयोगशाला बुनियादी ढांचा स्थापित करना, (मिलावट और एंटीबायोटिक्स परीक्षण तंत्र होना चाहिए) और संपर्क विवरण जैसे प्रमुख कार्य बिंदुओं पर कार्य करना शामिल है।
प्रतिभागियों ने राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (एनबीएचएम) के तहत सहायता के कुछ संशोधनों के बारे में भी सुझाव दिया। एनबीएचएम के घटक जैसे प्रयोगशाला के बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाना, शहद में मिलावट से निपटने के लिए मधुमक्खी पालकों के लिए क्षमता निर्माण तथा उपभोक्ता पहुंच निर्माण योजना तैयार करने की आवश्यकता है। प्रतिभागियों ने कहा कि मधुमक्खी उत्पादों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।