“जलीय जंतु रोगों के लिए राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम” पर वेबिनार

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भारत सरकार के मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय की ओर से “आजादी का अमृत महोत्सव” के तहत 15 फरवरी, 2022 को “जलीय जंतु रोगों के लिए राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम : भारत में रोग संचालन प्रणाली स्थापित करने की दिशा में एक कदम” पर वेबिनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन विभाग, आईसीएआर संस्थान, भारत सरकार के अधिकारियों और विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मत्स्य अधिकारियों, राज्य कृषि, पशु चिकित्सा और मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों के शिक्षकों, उद्यमियों, वैज्ञानिकों, किसानों, मछली पालन करने वाले और देश भर में जलीय कृषि उद्योग से जुड़े छात्र और हितधारक सहित 150 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

मत्स्यपालन विभाग के मत्स्य विकास आयुक्त श्री आई ए. सिद्दीकी के स्वागत भाषण के साथ वेबिनार के विषय की शुरुआत हुई। इसमें विशिष्ट पैनलिस्ट श्री सागर मेहरा, संयुक्त सचिव (अंतर्देशीय मत्स्यपालन), डॉ. जॉयकृष्ण जेना, उप महानिदेशक (मत्स्य विज्ञान), आईसीएआर, नई दिल्ली, डॉ. इद्या करुणासागर, सलाहकार (अनुसंधान और पेटेंट), निट्टे (एनआईटीटीई) विश्वविद्यालय, मंगलुरु, पूर्व एमेरिटस वैज्ञानिक और मलेशिया के वर्ल्डफिश सेंटर के पूर्व शिक्षण मार्गदर्शक डॉ. ए. जी. पोन्नैया, डॉ. के. के. लाल, निदेशक, आईसीएआर-राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ, डॉ नीरज सूद, प्रधान वैज्ञानिक आईसीएआर-राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ, श्री वी. बालासुब्रमण्यम, महासचिव, प्रॉउन फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, बेंगलुरु और अन्य प्रतिभागी शामिल हुए।

श्री सागर मेहरा, संयुक्त सचिव (अंतर्देशीय मत्स्यपालन) ने अपने उद्घाटन भाषण में उल्लेख किया कि उत्कटता और विविधीकरण के माध्यम से जलीय कृषि उत्पादन ने जलीय कृषि में नए और उभरते जलीय रोगों के प्रसार के जोखिम कारकों को जोड़ा है। उभरती हुई बीमारियों का जल्द पता लगाना उनके नियंत्रण की कुंजी माना जाता है और राष्ट्रीय नियंत्रण या काबू करने की रणनीति विकसित करने के लिए मौजूदा बीमारी के बारे में जानकारी आवश्यक है। श्री मेहरा ने जलीय रोगों की निगरानी और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को रिपोर्ट करने और देश में जलीय रोग निगरानी प्रणाली को मजबूत करने के दीर्घकालिक उद्देश्यों में एनएसपीएएडी द्वारा निभाई गई भूमिका पर संक्षेप में प्रकाश डाला।

नई दिल्ली स्थित आईसीएआर के उप महानिदेशक (मत्स्य विज्ञान) डॉ. जॉयकृष्ण जेना ने तकनीकी सत्र के दौरान वेबिनार के लिए संदर्भ निर्धारित किया और कहा कि भारत एक विशाल देश है जिसमें राज्य की क्षमताओं और मत्स्यपालन प्राथमिकताओं के विभिन्न स्तर हैं। इसलिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में रोगों के प्रसार की निगरानी और नियंत्रण के लिए प्रभावी स्वास्थ्य प्रबंधन और अंततः स्थायी जलीय कृषि के लिए एक प्राथमिक आवश्यकता बन गया है। डॉ. जेना ने आगे कहा कि भारत के जलीय जंतु रोगों के लिए राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम (एनएसपीएएडी) ने जलीय कृषि के लिए समन्वित निगरानी कार्यक्रम स्थापित करने में अपना उदाहरण बनाया है।

लखनऊ स्थित आईसीएआर राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. नीरज सूद ने देश में परियोजना की स्थिति और परियोजना के भविष्य के उद्देश्यों के साथ एनएसपीएएडी पर विस्तृत प्रस्तुति दी। बाद में निट्टे विश्वविद्यालय, मंगलुरु के सलाहकार डॉ. इद्या करुणासागर ने जानकारी से भरे सत्र में रोग निगरानी पर आधारित जलीय जंतु स्वास्थ्य प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया। सूचनात्मक सत्र में पूर्व एमेरिटस वैज्ञानिक और मलेशिया के वर्ल्डफिश सेंटर के पूर्व शिक्षण मार्गदर्शक डॉ. ए. जी. पोन्नैया ने विदेशी जलीय रोगों का पता लगाने के मामले में आपातकालीन प्रतिक्रिया पर अपनी बात रखी और प्रॉउन फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव श्री वी. बालासुब्रमण्यम ने झींगा जलीय कृषि में रोग निगरानी के लिए औद्योगिक दृष्टिकोण और मत्स्यपालन व जलीय कृषि क्षेत्र की आवश्यकता के बारे में जानकारी दी।

प्रस्तुतिकरण के बाद वैज्ञानिकों, मछली पालने वाले किसानों, उद्यमियों, मछली पालकों, छात्रों, वैज्ञानिकों और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के साथ खुली चर्चा पर सत्र आयोजित किया गया। चर्चा के बाद मत्स्यपालन विभाग के सहायक आयुक्त डॉ. एस. के. द्विवेदी ने धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया, जिसके बाद वेबिनार का समापन हुआ।

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