भद्रवाह भारत की लैवेंडर राजधानी और कृषि स्टार्टअप गंतव्य के रूप में उभरा है: केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह
सीएसआईआर-आईआईआईएम ने ‘एक सप्ताह एक प्रयोगशाला’ अभियान किया आयोजित
नई दिल्ली, 05 जून। हम सभी के लिए यह बड़े गर्व की बात है कि भद्रवाह भारत की लैवेंडर राजधानी और कृषि स्टार्टअप गंतव्य के रूप में उभरा है।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने जम्मू के भद्रवाह में दो दिवसीय लैवेंडर उत्सव का उद्घाटन करते हुए यह बात कही।
सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन, जम्मू ने अपने ‘एक सप्ताह एक प्रयोगशाला’ अभियान के एक हिस्से के रूप में इस कार्यक्रम का आयोजन किया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने भद्रवाह को भारत की ‘बैंगनी क्रांति’ का जन्मस्थान और कृषि-स्टार्टअप का गंतव्य बताया।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि भद्रवाह की घाटी केंद्र की मौजूदा प्रगतिशील सरकार के विकास का एक ऐसा सबसे अच्छा उदाहरण है जिसे बहुत पहले मनाया जाना चाहिए था। भद्रवाह लैवेंडर की खेती के लिए भूमि और जलवायु के रूप में सबसे अच्छा स्थान है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस क्षेत्र में लैवेंडर की खेती का उल्लेख करते हुए कहा कि लैवेंडर रोजगार सृजन और अनुसंधान का एक ऐसा माध्यम है जो विकास के अनेक प्रतिमान प्रस्तुत कर रहा है।
लैवेंडर की खेती से अनेक किसानों के जीवन में काफी परिवर्तन आया है। यह बड़ी खुशी की बात है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात के 99वें संस्करण में सीएसआईआर-अरोमा मिशन के तहत जम्मू-कश्मीर में भद्रवाह और डोडा जिलों में लैवेंडर की खेती के संबंध में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (सीएसआईआर-आईआईआईएम) के प्रयासों की सराहना की थी।
उन्होंने कहा कि यहां के किसान दशकों से परम्परागत रूप से मक्का की खेती कर रहे थे, लेकिन यहां के कुछ किसानों ने कुछ अलग हटकर काम करने की सोची और उन्होंने फूलों की खेती शुरू की। आज यहां लगभग ढाई हजार किसान लैवेंडर की खेती में लगे हुए हैं। उन्हें केंद्र सरकार के अरोमा मिशन के माध्यम से मदद मिल रही है। इस नई खेती से किसानों की आमदनी में बहुत बढ़ोत्तरी हुई है।
सीएसआईआर-अरोमा मिशन सीएसआईआर की एक प्रमुख परियोजना है, जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के समशीतोष्ण क्षेत्रों में लैवेंडर की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों की आय में वृद्धि करना और कृषि आधारित स्टार्टअप विकसित करना है। इस परियोजना की केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा सीधे निगरानी की जा रही है। उनके निर्देशों के तहत सीएसआईआर-आईआईआईएम भद्रवाह और जम्मू-कश्मीर के अन्य भागों में लैवेंडर की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
यह उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण है कि वैज्ञानिक उपायों के अनेक दशकों के बाद सीएसआईआर-आईआईआईएम ने लैवेंडर की अपनी एक विशिष्ट प्रजाति (आरआरएल-12) और लैवेंडर की कृषि प्रौद्योगिकी विकसित की है। लैवेंडर की यह प्रजाति भारत के वर्षा आधारित समशीतोष्ण क्षेत्रों में लैवेंडर की खेती के लिए बहुत उपयुक्त सिद्ध हुई है। सीएसआईआर-अरोमा मिशन के तहत सीएसआईआर-आईआईआईएम ने लैवेंडर की खेती की शुरुआत की और जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों के किसानों को 30 लाख से अधिक लैवेंडर के पौधे निशुल्क उपलब्ध कराए। लैवेंडर की खेती, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और लैवेंडर की फसल के विपणन के लिए शुरू से अंत तक प्रौद्योगिकी पैकेज भी उपलब्ध कराए। सीएसआईआर-आईआईआईएम ने किसानों को अपनी-अपनी उपज के प्रसंस्करण में सहायता प्रदान करने के लिए जम्मू-कश्मीर के विभिन्न स्थानों पर पचास आसवन इकाइयां (45 स्थिर और पांच गतिशील मोबाइल) स्थापित कीं।
जम्मू संभाग के समशीतोष्ण क्षेत्रों में अनेक छोटे और सीमांत मक्का किसानों ने लैवेंडर की खेती को सफलतापूर्वक अपनाया है। लैवेंडर की खेती ने जम्मू-कश्मीर के भौगोलिक रूप से दूर-दराज के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में किसानों और युवा उद्यमियों को रोजगार उपलब्ध कराया है।
सीएसआईआर-आईआईआईएम के उपायों के कारण इस क्षेत्र में लैवेंडर की खेती के आसपास नया उद्योग विकसित हुआ है। लैवेंडर के फूलों को तोड़ने और उसके प्रसंस्करण के लिए लैवेंडर के खेतों में मुख्य रूप से महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। अनेक युवा उद्यमियों ने लैवेंडर तेल, हाइड्रोसोल और फूलों के मूल्यवर्धन के माध्यम से छोटे पैमाने पर कारोबार शुरू कर दिया है। सीएसआईआर-आईआईआईएम ने यहां पर कई कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किए हैं और जम्मू-कश्मीर से 2500 से अधिक किसान और युवा उद्यमियों को लैवेंडर की खेती, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और विपणन के बारे में प्रशिक्षित किया गया है।
मक्का की जगह लैवेंडर की खेती करने वाले किसानों की शुद्ध वार्षिक आय कई गुना बढ़ गई है। यह आय जो पहले 40,000 रुपये से 60,000 रुपये प्रति हेक्टेयर थी, अब बढ़कर 3,50,000 रुपये से 6,00,000 रुपये प्रति हेक्टेयर तक हो गई है। भद्रवाह, डोडा जिले के किसानों ने वर्ष 2019, 2020, 2021 और 2022 में क्रमशः 300, 500, 800 और 1500 लीटर लैवेंडर तेल का उत्पादन किया है। किसानों ने लैवेंडर सूखे फूलों, लैवेंडर के पौधों और लैवेंडर तेल की बिक्री से वर्ष 2018 से 2022 के बीच 5 करोड़ रुपये से अधिक आय अर्जित की है। अरोमा मिशन के तहत सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू द्वारा जम्मू-कश्मीर के किसानों को लैवेंडर की खेती के बारे में प्रौद्योगिकी के शुरू से अंत तक सफल हस्तांतरण को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक कवरेज दी गई है। मीडिया ने सीएसआईआर-आईआईआईएम की इस पहल को “बैंगनी क्रांति” के रूप में मान्यता दी है।
सीएसआईआर-आईआईआईएम को जम्मू और कश्मीर में बैंगनी क्रांति: “जम्मू और कश्मीर में लैवेंडर खेती के माध्यम से ग्रामीण विकास” के लिए ग्रामीण विकास (सीएआईआरडी- 2020) के निमित्त एस एंड टी नवाचारों के लिए सीएसआईआर पुरस्कार प्रदान किया गया है।
इस कार्यक्रम में डॉ. डी श्रीनिवास रेड्डी, निदेशक, सीएसआईआर-आईआईसीटी, डॉ. जबीर अहमद, निदेशक, सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू, धनेतर सिंह, डीडीसी अध्यक्ष, डोडा, संगीता रानी भगत, डीडीसी उपाध्यक्ष, डोडा, विशेष पॉल महाजन, उपायुक्त डोडा तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।