रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के लिए एस्ट्रा एमके-आई बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर टू एयर मिसाइल सिस्टम और संबंधित उपकरण की खरीद के लिए बीडीएल के साथ 2,900 करोड़ रुपये से अधिक के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विज़न को बढ़ावा देते हुए रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के लिए खरीदे (इंडियन-आईडीडीएम) श्रेणी के तहत 2,971 करोड़ रुपये की लागत से एस्ट्रा एमके-आई बियॉन्ड विजुअल रेंज (बीवीआर) एयर टू एयर मिसाइल (एएएम) और संबंधित उपकरण की आपूर्ति के लिए भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (बीडीएल) के साथ 31 मई, 2022 को एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।
अभी तक इस श्रेणी की मिसाइल को स्वदेशी रूप से बनाने की तकनीक उपलब्ध नहीं थी। एस्ट्रा एमके-आई बीवीआर एएएम को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है, जो विदेशी स्रोतों पर निर्भरता कम करते हुए बियॉन्ड विजुअल रेंज के साथ-साथ क्लोज कॉम्बैट एंगेजमेंट के लिए भारतीय वायु सेना (आईएएफ) द्वारा जारी की गई स्टाफ आवश्यकताओं पर आधारित है। बीवीआर क्षमता के साथ हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल अपने लड़ाकू विमानों को बड़ी स्टैंड ऑफ रेंज प्रदान करती है जो दुश्मन के वायु रक्षा उपायों के सामने खुद को उजागर किए बिना शत्रु दल के विमानों को बेअसर कर सकती है। इससे हवाई क्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त होती है और यह बनी रहती है। यह मिसाइल तकनीकी और आर्थिक रूप से ऐसी कई आयातित मिसाइल प्रणालियों से बेहतर है।
एस्ट्रा एमके-आई मिसाइल और इसके प्रक्षेपण, जमीनी तैयारी तथा परीक्षण के लिए सभी संबद्ध प्रणालियों को डीआरडीओ ने आईएएफ के समन्वय से विकसित किया है। यह मिसाइल, जिसके लिए आईएएफ द्वारा पहले ही सफल परीक्षण किए जा चुके हैं, पूरी तरह से सु 30 एमके-आई लड़ाकू विमान में एकीकृत है और हल्के लड़ाकू विमान (तेजस) सहित चरणबद्ध तरीके से अन्य लड़ाकू विमानों के साथ इसे जोड़ा जाएगा। भारतीय नौसेना मिग 29के लड़ाकू विमान में इस मिसाइल को जोड़ेगी।
एस्ट्रा एमके-आई मिसाइल और सभी संबद्ध प्रणालियों के उत्पादन के लिए डीआरडीओ से बीडीएल को प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण पूरा कर लिया गया है और बीडीएल में उत्पादन प्रगति पर है। यह परियोजना बीडीएल में बुनियादी ढांचे और परीक्षण सुविधाओं के विकास के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी। यह एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी में कम से कम 25 वर्षों की अवधि के लिए कई एमएसएमई के लिए अवसर भी पैदा करेगी। यह परियोजना अनिवार्य रूप से ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना का प्रतीक है और हवा से हवा में मार करने वाले मिसाइल क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में देश की यात्रा को साकार करने में मदद करेगी।