अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूरोपीय संघ के दुरूम गेहूं की कीमत भारतीय गेहूं की तुलना में 39.5 फीसदी अधिक है

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सूरजमुखी तेल (एफओबी रॉटरडैम) की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 35.86 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन घरेलू बाजार में इसकी कीमतों वर्ष के दौरान केवल 12.12 फीसदी की वृद्धि हुई

गेहूं और चीनी के बढ़ते निर्यात को विनियमित करने को लेकर केंद्र के सही समय पर हस्तक्षेप ने वैश्विक बाजार बदलावों से इनकी कीमतों को सुरक्षित रखा है
निर्यात नियमों के जरिए गेहूं और चीनी के बढ़ते निर्यात को विनियमित करने को लेकर केंद्र के समय पर हस्तक्षेप ने इन वस्तुओं की कीमतों को वैश्विक बाजार में प्रचलित कीमतों के अनुरूप बढ़ोतरी से सुरक्षित रखा है।

उचित कीमतों पर चीनी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता है। पिछले 12 महीनों में घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें नियंत्रण में हैं। भारत में चीनी का थोक मूल्य 3150 रुपये से 3500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है. वहीं, खुदरा कीमतें देश में 40 से 43 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच हैं। ब्राजील में गन्ने के कम उत्पादन के कारण वैश्विक स्तर पर चीनी की कमी हो सकती है। इसे देखते हुए घरेलू उपलब्धता और भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने 1 जून, 2022 से अगले आदेश तक चीनी निर्यात को विनियमित करने के लिए समय पर उपाय किए हैं। इसके तहत चीनी कंपनी एक वर्ष के दौरान अधिकतम 100 लाख मीट्रिक टन का निर्यात कर सकती है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूरोपीय संघ के दुरूम गेहूं की कीमत लगभग 43 रुपये प्रति किलोग्राम है। वहीं, भारतीय गेहूं थोक में 26 रुपये प्रति किलोग्राम के औसत मूल्य पर बिक रहा है। दोनों की कीमतों में 17 रुपये प्रति किलोग्राम का अंतर है। यानी यह अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत से लगभग 39.5 फीसदी की छूट पर है। भारत को छोड़कर अन्य सभी देश लगभग 450 से 480 अमरीकी डॉलर/टन पर गेहूं की बिक्री कर रहे हैं। इसके चलते निर्यात अनुबंधों में तेजी आई है और इसके परिणामस्वरूप घरेलू खुदरा कीमतों में साल दर साल 16.08 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। उपभोक्ताओं को बढ़ती कीमतों से राहत देने लिए 13 मई, 2022 से गेहूं के निर्यात को विनियमित किया गया है। यह देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने और पड़ोसी व कमजोर देशों की जरूरतों को देखते हुए उनकी सहायता करने के लिए किया गया है।

उपरोक्त वस्तुओं की कीमत की स्थिति पर दिन-प्रतिदिन बारीकी से नजर रखी जा रही है, जिससे उनकी कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए उचित समय पर उपाय किए जा सकें। सचिव (खाद्य) की अध्यक्षता वाली कृषिगत-वस्तुओं पर अंतर-मंत्रालयी समिति किसान, उद्योग और उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए कृषि वस्तुओं की कीमतों व उपलब्धता की बारीकी से निगरानी करती है। यह समिति साप्ताहिक आधार पर कीमतों की स्थिति की समीक्षा करती है और घरेलू उत्पादन, मांग, घरेलू व अंतरराष्ट्रीय कीमतों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मात्रा के आधार पर खाद्य तेलों व अन्य खाद्य वस्तुओं के संबंध में प्रासंगिक उपायों पर विचार करती है।

इस बात का उल्लेख किया जा सकता है कि पिछले एक साल से खाद्य तेल की कीमतों में निरंतर बढ़ोतरी को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर बेसिक ड्यूटी 2.5 फीसदी से घटाकर शून्य कर दिया है। इन तेलों पर कृषि उपकर को 5 फीसदी कर दिया गया है। रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर बेसिक ड्यूटी मौजूदा 32.5 फीसदी से घटाकर 17.5 फीसदी कर दी गई है। इसके अलावा रिफाइंड पाम ऑयल पर भी बेसिक ड्यूटी 17.5 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी कर दी गई है। वहीं, सरकार ने रिफाइंड पाम तेल के मुक्त आयात को 31.12.2022 तक की अवधि के लिए बढ़ा दिया है। खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए एनसीडीईएक्स पर सरसों तेल में वायदा कारोबार को निलंबित कर दिया गया है और स्टॉक की सीमा लगा दी गई है।

सरकार ने खाद्य तेल और तिलहनों पर 31 दिसंबर, 2022 तक की अवधि के लिए स्टॉक सीमा लगा दी है। यह आदेश देश में इनकी सुचारू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया है। इस नियंत्रण आदेश को सख्ती से कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के क्रम में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग की केंद्रीय टीमें जमाखोरी व मुनाफाखोरी को रोकने के लिए प्रमुख तिलहन उत्पादक/उपभोक्ता राज्यों में खुदरा विक्रेताओं, थोक विक्रेताओं, बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं और प्रसंस्करणकर्ताओं के खाद्य तेल और तिलहनों के स्टॉक का औचक निरीक्षण कर रही हैं।

खाद्य तेलों की कीमतों को कम करने और उपभोक्ताओं को राहत प्रदान करने की अपनी नवीनतम पहल में सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 और 2023-24 के लिए शून्य आयात शुल्क और शून्य एआईडीसी पर कच्चे सोयाबीन तेल के 20 लाख मीट्रिक टन और कच्चे सूरजमुखी तेल के 20 लाख मीट्रिक टन के आयात के लिए टैरिफ रेट कोटा (टीआरक्यू) के आवंटन के लिए अधिसूचना जारी की है। यह कदम खाद्य तेलों की बढ़ती घरेलू कीमतों, घरेलू मांग में औसत बढ़ोतरी और वैश्विक पाम तेल की उपलब्धता में अनिश्चितता/गिरावट को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। खाद्य तेलों के मामले में सोयाबीन तेल (एफओबी ब्राजील) की कीमतों में 35.50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन घरेलू बाजार में इसकी वार्षिक वृद्धि दर केवल 13 प्रतिशत रही है।

सनफ्लावर तेल (एफओबी रॉटरडैम) की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 35.86 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन घरेलू बाजार में यह बढ़ोतरी 12.12 फीसदी रही है। वहीं, आरबीडी पामोलिन की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्षिक वृद्धि दर लगभग 56.88 फीसदी के आसपास है, वहीं, भारत में यह आंकड़ा केवल 13.98 फीसदी की सीमा तक रही है। फसल वर्ष 2020-21 के दौरान मूंगफली, सरसों और सोयाबीन फसलों के घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी ने सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम तेल की कीमतों को कम करने में अपना योगदान दिया है।

सरकार की ओर से उठाए गए उपरोक्त कदमों के परिणामस्वरूप खाद्य तेलों की कीमतों पर सख्त नियंत्रण लगा है। पेट्रोल और डीजल पर लगाए गए उत्पाद शुल्क को कम करने के सरकार के हालिया फैसले ने सभी वस्तुओं की कीमतों को कम करने में सहायता की है।

पूरे विश्व में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, कंटेनर की कमी के कारण उच्च परिवहन लागत और मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य के चलते व्यापार के प्रभावित होने के कारण खाद्य कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। खाद्य तेल, गेहूं, चावल, आटा और चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में तेज बढ़ोतरी को नियंत्रित करने के लिए सरकार की ओर से तत्काल उठाए गए इन कदमों से भारतीय उपभोक्ताओं को खाने के खर्चों में राहत मिली है।

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