प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ की नवीनतम कड़ी में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को बढ़ावा देने में पारंपरिक मेलों के महत्व को रेखांकित किया

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मेले लोगों और दिलों को जोड़ते हैं: प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 31 जुलाई, 2022 को ‘मन की बात’ की 91वीं कड़ी में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’, विविधता में एकता की भावना को बढ़ावा देने में पारंपरिक मेलों के महत्व पर प्रकाश डाला। मन की बात के विभिन्न संस्करणों में एक भारत श्रेष्ठ भारत को गौरव का स्थान प्राप्त हुआ है। ‘मन की बात’ के 91वें संस्करण में प्रधानमंत्री ने कहा कि इस बार ‘मन की बात’ बेहद खास है। इसकी वजह है, स्वतंत्रता दिवस, जब भारत अपनी आजादी के 75 साल पूरे करेगा।

मन की बात संबोधन के दौरान, पीएम ने कहा, “मुझे हिमाचल प्रदेश के ‘मन की बात’ के श्रोता श्रीमान आशीष बहल जी का एक पत्र मिला है। उन्होंने अपने पत्र में चंबा के ‘मिंजर मेला’ का जिक्र किया है। दरअसल, मक्के के पौधे के पुष्पक्रम को मिंजर कहते हैं। जब मक्के पर फूल खिलते हैं, तो मिंजर मेला मनाया जाता है और इस मेले में देश भर से पर्यटक हिस्सा लेने आते हैं। संयोग से इस समय मिंजर मेला भी चल रहा है। अगर आप हिमाचल घूमने गए हैं, तो इस मेले को देखने के लिए चंबा जा सकते हैं। “चंबे एक दिन ओना केन महिना रैना” यानी जो लोग एक दिन के लिए चंबा आते हैं, वे इसकी सुंदरता को देखते हुए एक महीने तक यहां रुक जाते हैं।”

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारे देश में मेलों का सांस्कृतिक महत्व भी है। मेले लोगों और दिलों को जोड़ते हैं। जब सितंबर में हिमाचल में बारिश के बाद खरीफ की फसल पकती है, तो शिमला, मंडी, कुल्लू और सोलन में सारी या सैर भी मनाई जाती है। सितंबर में ही जागरा भी आने वाला है। जागरा मेलों में, महासू के देवता का आह्वान करके बिसु गीत गाए जाते हैं। महासू देवता का यह जागरण हिमाचल में शिमला, किन्नौर और सिरमौर में होता है और इसे उत्तराखंड में भी एक साथ मनाया जाता है।

पीएम ने आगे कहा कि हमारे देश में विभिन्न राज्यों में जनजातीय समाजों के कई पारंपरिक मेले हैं। इनमें से कुछ मेले आदिवासी संस्कृति से जुड़े हुए हैं, तो कुछ आदिवासी इतिहास और विरासत को लेकर आयोजित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपको मौका मिले, तो आपको तेलंगाना के मेदारम में चार दिवसीय समक्का-सरलम्मा जतरा मेले में अवश्य जाना चाहिए। इस मेले को तेलंगाना का महाकुंभ कहा जाता है। सरलम्मा जतरा मेला दो आदिवासी महिलाओं – समक्का और सरलम्मा के सम्मान में मनाया जाता है। यह स्थान न केवल तेलंगाना के लिए, बल्कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में भी कोया आदिवासी समुदाय के लिए आस्था का एक बड़ा केंद्र है। आंध्र प्रदेश में मरीदम्मा मेला भी जनजातीय समाज की मान्यताओं से जुड़ा एक बड़ा मेला है। मरीदम्मा मेला ज्येष्ठ अमावस्या से आषाढ़ अमावस्या तक चलता है और यहां का आदिवासी समाज इसे शक्ति उपासना, पूजा से जोड़ता है। यहां पूर्वी गोदावरी के पेद्दापुरम में एक मरीदम्मा मंदिर भी है। इसी तरह राजस्थान में गरासिया जनजाति के लोग वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को ‘सियावा का मेला’ या ‘मनखान रो मेला’ का आयोजन करते हैं।

एक भारत श्रेष्ठ भारत सरकार की अनूठी पहल है, जिसका उद्देश्य विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लोगों के बीच विविधता को साझा और सराहना करते हुए परस्पर बातचीत को विस्तार देना है, ताकि उनके बीच आपसी समझ को बढ़ावा मिल सके।

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