कंप्यूटर को ज्यादा सक्षम बनाने वाली सामग्री पर कार्य कर रहा बेंगलुरू का स्वर्णजयंती पुरस्कार विजेता
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरू के प्रो. मयंक श्रीवास्तव, स्वर्णजयंती फेलोशिप 2020-21 विजेता हैं। वह ऐसी उभरती हुईं सामग्री के अनुप्रयोग पर काम कर रहे हैं जिनसे कंप्यूटर के अनुकरण करने के कार्य में मदद मिल सकती है जो कार्य मस्तिष्क तेजी से कर सकता है। इससे कंप्यूटर को संज्ञान संबंधी कार्य करने, भीड़ में लोगों की पहचान करने, गंध में फर्क करने के साथ-साथ सीखने और निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।
उन्नत संगणक प्रणाली में आरंभ से ही वॉन न्यूमैन आर्किटेक्चर का उपयोग हो रहा है जिसमें भौतिक रूप से पृथक प्रोसेसिंग और मेमोरी ब्लॉक का उपयोग होता है। जबकि यह अब तक का सबसे अधिक लागत प्रभावी तरीका रहा है, प्रोसेसिंग ब्लॉक से मेमोरी का भौतिक पृथक्करण उन्नत नैनो-इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली की संगणक संबंधी क्षमताओं को बढ़ाने में रेट लिमिटर बन गया है। वहीं, वॉन न्यूमैन की आर्किटेक्चर सूचना को वास्तविक समय में संसाधित करने में विफल रहता जबकि मानव उस सूचना को सेकंड के महज के एक अंश समय में संसाधित कर सकता है। इन अंतर को ध्यान में रखते हुए, मानव मस्तिष्क में न्यूरॉन्स (प्रोसेसिंग यूनिट) और सिनैप्स (मेमोरी) के संगठन से प्रेरित एक वैकल्पिक आर्किटेक्चर, जो मस्तिष्क जैसे संगणक व्यवहार का अनुकरण करता है, पिछले दशक की एक महत्वपूर्ण खोज रही है।
मस्तिष्क के मौलिक प्रक्रियाओं को समझने और अनोखा मेमोरी आर्किटेक्चर की खोज के लिए काफी अनुसंधान हुआ है जिससे अब इंजीनियरिंग समुदाय को विश्वास हो गया है कि विकास की जा रही प्रणाली मस्तिष्क की तरह अनुकरण का कार्य कर सकती और इस लक्ष्य को आगामी दशकों में हासिल किया जा सकता है। इस तरह के आर्किटेक्चर का एक प्रमुख तत्व एक मेमोरी डिवाइस है जिसे कृत्रिम सिनैप्स कहा जाता है, हालांकि, इसे जैविक/सिनैप्टिक सिद्धांतों पर काम करना चाहिए।
प्रोफेसर श्रीवास्तव विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक्स, बिजली उपकरणों, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक, टेराहट्र्ज, मेमोरी और क्वांटम एप्लीकेशंस के लिए गैलियम नाइट्राइड (जीएएन), परमाणु के स्तर पर पतली द्वि-आयामी सामग्री जैसे ग्राफीन, और ट्रांजिशन मेटल डाइक्लोजेनाइड्स ( टीएमडीसी) जैसी सामग्री की खोज कर रहे हैं। ग्राफीन और 2डी-टीएमडीसीसी का उपयोग करते हुए, वह जैविक/सिनैप्टिक सिद्धांतों पर काम करने और जैविक तंत्रिका नेटवर्क और उनके कृत्रिम समकक्ष के बीच की खाई को पाटने के लिए मेमोरी डिवाइसेस अर्थात स्मृति उपकरणों की क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं।
वर्तमान में अपने शोध-समूह के साथ, वह कुछ प्रगाढ़ परमाणु न्यूरोमॉर्फिक सर्किट, उच्च विश्वसनीयता वाले जीएएन- आधारित अल्ट्रा-हाई-पावर डिवाइस और टेराहट्र्ज आवृत्तियों पर संचालन के लिए डिवाइस/सर्किट विकसित कर रहे हैं।
प्रो. श्रीवास्तव के कार्य को 150 से अधिक पियर-रिव्यूड अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन में देखा गया है और इसे लगभग 50 पेटेंट मिले हैं। उन्होंने एजीएनआईटी सेमीकंडक्टर्स नामक एक जीएएन मैन्युफैक्चरिंग स्टार्ट-अप की स्थापना की है। इनमें से अधिकांश पेटेंट या तो सेमीकंडक्टर कंपनियों द्वारा लाइसेंस प्राप्त हैं या उनके उत्पादों में उपयोग किए गए हैं। वह एक प्राइवेट लिमिटेड के सह-संस्थापकों में भी शामिल हैं।
इस फेलोशिप के तहत उनके समूह ने मस्तिष्क जैसे (कम्प्यूटेशनल) व्यवहार का अनुकरण करने वाले नए उपकरणों पर काम करने की योजना बनाई है। इससे आखिरकार कुछ प्रगाढ़ परमाणु न्यूरोमॉर्फिक सर्किट विकसित करने में मदद मिलनी चाहिए, जो कई जटिल समस्याओं को हल करने में सक्षम होंगे, जिनका हल मानव मस्तिष्क सेकंड के एक अंश में कर सकता है, लेकिन एक पारंपरिक कंप्यूटर रियल-टाइम पर नहीं कर सकता है।
प्रोफेसर श्रीवास्तव ने कहा, ’’जबकि मुद्रण में कई सिनैप्टिक डिवाइस प्रस्ताव उपलब्ध हैं, लेकिन कोई भी जैविक तंत्रिका नेटवर्क और उनके कृत्रिम समकक्ष के बीच की खाई को पाटने में मदद नहीं करता है। जबकि मस्तिष्क की तरह का अनुकरण अनुकरण करने वाली प्रणाली विकसित की जा सकती है लेकिन हम अभी मस्तिष्क जैसी संगणक प्रणाली को साकार करने से बहुत दूर हैं। वर्तमान कार्य महत्वपूर्ण कमी को पाटने का रास्ता दिखाएगा।’’
अधिक जानकारी के लिए प्रो. मयंक श्रीवास्तव से ईमेल ( mayank@iisc.ac.in) द्वारा संपर्क किया जा सकता है।