श्री पीयूष गोयल ने अंतरराष्ट्रीय डेयरी फेडेरेशन (आईडीएफ) से विकासशील देशों में छोटे डेयरी फर्मों को अधिक उत्पादक, टिकाऊ, गुणवत्ता केंद्रित और लाभप्रद बनाने की दिशा में निरंतर प्रयास करने का निर्देश देने को कहा
भारत वैश्विक उत्सर्जनों पर खेती के प्रभाव को कम करने के लिए वैश्विक प्रयासों का एक हिस्सा बनना पसंद करेगा : श्री पीयूष गोयल
श्री गोयल ने प्रभावी जलवायु कार्रवाई करने की अपील की, विकसित देशों से प्रासंगिक प्रौद्योगिकी तथा निम्न लागत जलवायु वित्त के माध्यम से जलवायु शमन में विकासशील देशों की सहायता करने की अपील की
श्री गोयल ने विकसित देशों से विकासशील देशों में छोटे एवं सीमांत किसानों के संघर्षों के प्रति संवेदनशील होने का आह्वान किया
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण तथा कपड़ा मंत्री श्री श्री पीयूष गोयल ने आज अंतरराष्ट्रीय डेयरी फेडेरेशन (आईडीएफ) से विकासशील देशों में छोटे डेयरी फर्मों को अधिक उत्पादक, टिकाऊ, पर्यावरण अनुकूल, गुणवत्ता केंद्रित और लाभप्रद बनाने के लिए सुसंगत, समसामयिक, व्यवहारिक तथा लागत प्रभावी समाधान विकसित करने की दिशा में केंद्रित प्रयास करने का निर्देश देने को कहा। वह आज ग्रेटर नोएडा में आईडीएफ के विश्व डेयरी सम्मेलन (डब्ल्यूडीएस 2022) को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने आईडीएफ से भारत में विशेषज्ञों की एक छोटी टीम को कृषि स्तर पर अनुसंधान करने, भारत की विविध जलवायु परिस्थितियों का अध्ययन करने और ऐसे समाधान खोजने के लिए तैनात करने की संभावना खोजने का भी आग्रह किया जो हमें वैश्विक मानकों और वैश्विक उत्सर्जन मानदंडों के साथ संयोजित करने में सहायता करेगा। उन्होंने कहा,‘‘मैं आपको आश्वासन दे सकता हूं कि भारत समस्या का नहीं बल्कि समाधान का हिस्सा बनना चाहता है।”
विश्व के उत्पादन के लगभग एक चौथाई हिस्से के साथ, दुनिया में डेयरी उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में भारत की स्थिति को रेखांकित करते हुए, श्री गोयल ने विश्वास व्यक्त किया कि अधिक अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव तथा सरकार, सहकारी संघों तथा किसानों द्वारा उठाए गए मजबूत कदमों के साथ, वैश्विक डेयरी बाजार में भारत की हिस्सेदारी में आने वाले वर्षों में और अधिक बढ़ोत्तरी होगी। उन्होंने कहा कि इससे भारत के छोटे और सीमांत किसानों को अत्यधिक लाभ पहुंचेगा तथा उन्हें बहुत आवश्यक पूरक आय प्राप्त होगी एवं उनके बच्चों के लिए बेहतर पोषण की दिशा में योगदान प्राप्त होगा। उल्लेखनीय है कि डेयरी उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा किसान अपने परिवार के उपभोग के लिए उपयोग करते हैं।
गुणवत्ता मानकों एवं निर्वहनीयता की चर्चा करते हुए, श्री गोयल ने दोहराया कि भारत वैश्विक उत्सर्जनों पर खेती के प्रभाव को कम करने के लिए वैश्विक प्रयासों का एक हिस्सा बनना पसंद करेगा। भारत, जहां बड़ी संख्या में छोटी जोत वाले किसान और विकसित देशों में, जहां अपेक्षाकृत कम संख्या में उत्पादन में लगे हुए हैं, के बीच विरोधाभास की एक तस्वीर खींचते हुए श्री गोयल ने डेयरी उद्योग के हितधारकों से छोटे किसानों की सहायता के लिए समसामयिक, सुसंगत समाधान प्राप्त करने की अपील की। 2047 में हमारी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने की ओर अग्रसर इस अमृत काल के दौरान 1.3 बिलियन लोगों में से प्रत्येक को समृद्धि तथा विकास का लाभ दिलाने की भारत की प्रतिबद्धता को प्रतिध्वनित करते हुए, श्री गोयल ने छोटे फर्मों को अधिक लाभप्रद बनाने की दिशा में केंद्रित प्रयास करने को कहा।
यह देखते हुए कि भारत के किसान पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी के प्रति बहुत सचेत हैं, श्री गोयल ने कहा कि वे आंतरिक रूप से, अपने स्वभाव और दार्शनिक सोच के कारण निर्वहनीयता में दृढ़ विश्वास रखते हैं। प्रकृति में विद्यमान देवत्व के प्रति भारतीयों की गहरी श्रद्धा और सम्मान का उल्लेख करते हुए श्री गोयल ने कहा कि हमारे डेयरी किसान हमेशा ही अपने व्यवसाय के पर्यावरणीय प्रभाव के प्रति बहुत सचेत रहे हैं। उन्होंने एक उदाहरण के रूप में, गाय के गोबर के व्यापक उपयोग का उल्लेख किया जो उल्लेखनीय मात्रा में रसायनिक उर्वरक तथा कीटनाशकों तथा बायोगैस जैर्से इंधनों के उत्पादन की आवश्यकता को कम करता है। उन्होंने कहा कि यह भी खेती के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के प्रयासों की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है।
श्री गोयल ने कहा कि प्रकृति के लिए यह सम्मान न केवल डेयरी में बल्कि हमारी खेती और मत्स्य पालन की प्रथाओं में भी देख जा सकता है। उन्होंने बताया कि भारत द्वारा विश्व की जनसंख्या के लगभग 17 प्रतिशत लोगों का भरण पोषण करने तथा फिर भी नुकसानदायक वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 3 प्रतिशत से भी कम का योगदान देने के पीछे यह एक बड़ी वजह है। श्री गोयल ने कहा कि इस परिपेक्ष्य में, अगर हमारे किसानों को निर्वहनीयता के लिए सुसंगत और लागत प्रभावी समाधानों की पेशकश की जाती है तो उन्हें शीघ्रता से अपनाया जाएगा।
श्री गोयल ने विश्व के विकासशील तथा कम विकसित देशों को प्रौद्योगिकी, निम्न लागत, दीर्घकालिक सरकार समर्थित जलवायु वित्त के योगदानों के माध्यम से प्रभावी रूप से सहायता करने के प्रति विकसित देशों द्वारा की गई अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की अक्षमता को लेकर जोरदार तरीके से अपनी चिंता दर्शाई। उन्होंने कहा कि यह प्रदूषकों द्वारा भुगतान करने का एक प्राकृतिक परिणाम होना चाहिए था। श्री गोयल ने आईडीएफ से एक वैश्विक प्रयास की शुरुआत करने का आग्रह किया जिसके द्वारा ऐसे देश जिन्होंने ग्रीन हाउस उत्सर्जन की दिशा में अधिक योगदान दिया है, उन्हें वास्तव में कम विकसित देशों में जलवायु संकट का शमन करने में सहायता करने के लिए सुसंगत प्रौद्योगिकी और वित्तपोषण प्रस्तुत करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘इनमें एशिया और अफ्रीका के कई देश शामिल होंगे जिन्होंने प्रतिबद्धता तो की, लेकिन जरुरी नहीं कि उनके पास प्रासंगिक प्रौद्योगिकी और संसाधन हों ही। ‘‘
श्री गोयल ने कहा कि जलवायु शमन में विकासशील देशों की सहायता करने की प्रतिबद्धता विकसित देशों द्वारा एक दशक पहले की गई थी और पेरिस में आयोजित सीओपी 21 में दोहराई गई थी, जहां भारत ने जलवायु लक्ष्यों को अर्जित करने की दिशा में काम करने के लिए दुनिया को संयोजित करने करने में एक अग्रणी भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि सीओपी 21 के 7 वर्षों के बाद भी हमें केवल नारों की ही आवाज आ रही है और कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। श्री गोयल ने कहा कि अगर मैं जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में कहता हूं कि ‘काम जरुर होना चाहिए’ तो मैं वास्तव में पूरे विकासशील देशों की तरफ से बोल रहा होता हूं।
श्री गोयल ने विश्वास व्यक्त किया कि भारत के डेयरी क्षेत्र की विकसित देशों के मशीनीकृत डेयरी उद्योग से तुलना करते हुए किसी भी विश्लेषण में, भारत निर्वहनीयता के मामले में हमेशा ही विजेता के रूप में सामने आएगा। उन्होंने यह भी कहा कि जब ईमानदारी से चर्चाएं की गई थीं तो विकसित विश्व के कई हिस्से विकासशील देशों की चिंताओं के प्रति बहुत संवेदनशील थे। उन्होंने एक उदाहरण के रूप में आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ईसीटीए) पर हस्ताक्षर करने के लिए द्विदलीय ऑस्ट्रेलियाई सरकार के साथ हुई बातचीत को संदर्भित किया। श्री गोयल ने स्मरण किया कि जब उन्होंने भारत के छोटे किसानों की पीड़ा और बाधाओं तथा कठिनाइयों जिनके तहत डेयरी किसान काम करते हैं, को साझा किया तो उन्होंने इन किसानों के लिए बहुत अधिक संवेदनशीलता, गहरी समझ तथा असीम प्रशंसा का अनुभव किया।