श्री अश्वनी कुमार, संयुक्त सचिव, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल और उरुग्वे सरकार के कृषि मंत्रालय के श्री मारकोस मार्टिनेज के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल के बीच बैठक
कृषि के क्षेत्र में भारत और उरुग्वे के बीच सहयोग की संभावना तलाशने के लिए आज नई दिल्ली में दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल की बैठक हुई। उरुग्वे की तरफ से कृषि मंत्रालय के श्री मारकोस मार्टिनेज और राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान, उरुग्वे के जीनबैंक मैनेजर श्री फेडेरिको कोंडोन जबकि कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव अश्वनी कुमार के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल में डॉ. आर. सी. अग्रवाल, डीडीजी (शिक्षा), आईसीएआर, डॉ. अशोक कुमार, निदेशक एनबीपीजीआर और डॉ. सुनील अर्चक, प्रधान वैज्ञानिक, एनबीपीजीआर शामिल थे।
श्री मारकोस मार्टिनेज ने कहा कि उनके देश में सोरगम और फिंगर मिलेट जैसे बाजरे और पासपलम व पैनिकम जैसे कई देशी बाजरे की खेती की जाती है। उन्होंने कहा कि उरुग्वे में स्थानीय घास होती है, जो प्राकृतिक रूप से उगती है और पशुओं के चारे के लिए इसका उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय घास के मैदान को उरुग्वे की मूल संपदा माना जाता है और इसे मवेशी व भेड़ चाव से खाते हैं।
श्री मारकोस ने कहा कि वे दोनों देशों के बीच जर्म प्लाज्म एक्सचेंज, मानव भोजन के लिए अनाज का प्रसंस्करण, प्रजनन और अनाज उत्पादन से संबंधित किसी अन्य शोध के लिए सहयोग की संभावना तलाशना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उरुग्वे को खाद्य उत्पादन में अग्रणी माना जाता है। उरुग्वे में 3.5 मिलियन लोग रहते हैं लेकिन यह 30 मिलियन से ज्यादा लोगों के लिए खाद्यान्न उत्पादन करता है। उन्होंने कहा कि वे सोयाबीन और तेल जैसे इसके घटकों, लंबे चावल आदि का निर्यात करते हैं। इसके साथ ही उरुग्वे मांस, दूध, संतरा, नींबू, ऊन और स्थानीय स्तर पर बनी शराब का भी निर्यात करता है। ऊन और चमड़े का उत्पादन बहुत अधिक है और निर्यात की भी काफी संभावना है।
उरुग्वे की निर्यात क्षमता की जानकारी देने के लिए श्री अश्वनी कुमार ने श्री मारकोस को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि भारत के पास भी बहुत ऐसे कृषि उत्पाद हैं, जिनका निर्यात उरुग्वे को किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि भारत कई सब्जियों और फलों का उत्पादन करता है और अमेरिका, कनाडा आदि सहित कई देशों को आम, अंगूर, अनानास, अनार का निर्यात करता है। उन्होंने कहा कि भारत यूरोप और उत्तरी अमेरिका को सब्जियों और बासमती चावल का निर्यात भी करता है, जो करीब 30,000 करोड़ का है। उन्होंने बताया कि देश में 10 तरह के बाजरा उगाए जाते हैं। छोटे बाजरे की खेती भी काफी बड़े क्षेत्र में की जाती है। उन्होंने कहा कि भारत की तरफ से कृषि विभाग, पशुपालन विभाग और आईसीएआर का एक तकनीकी द्विपक्षीय समूह तैयार हो सकता है जो हर साल मिले और बाजरा और किसी अन्य फसल या निर्यात के क्षेत्र में आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि उरुग्वे सहयोग को लेकर अपनी रुचि व्यक्त करते हुए एक पत्र भेज सकता है और योजनाबद्ध तरीके से इस दिशा में बढ़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि दोनों देश जर्म प्लाज्म में आपसी आदान-प्रदान के लिए रोडमैप भी तैयार कर सकते हैं। दोनों देश विशेषज्ञता का लाभ उठा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कृषि के क्षेत्र में भारत और अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप संघ के बीच संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजी) बना हुआ है और इसी तरह भारत और उरुग्वे के बीच जेडब्ल्यूजी का गठन किया जा सकता है जो साल में दो बार- एक बार भारत में और एक बार उरुग्वे में मिल सकता है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के विश्वविद्यालयों के बीच तकनीकी सहयोग भी हो सकता है। भारत में 74 कृषि विश्वविद्यालय हैं और हमारा देश इस क्षेत्र में बहुत मजबूत है। दोनों देशों के बीच छात्रों के आने-जाने का कार्यक्रम भी एक प्रमुख क्षेत्र है, जहां दोनों देश सहयोग कर सकते हैं। अनुसंधान और स्नातकोत्तर कार्यक्रमों के लिए उरुग्वे के छात्रों को यहां प्रवेश भी मिल सकता है। उरुग्वे के प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि यह शानदार विचार है क्योंकि इससे संबंध और मजबूत होंगे। श्री अश्वनी कुमार ने कहा कि दोनों देश किसानों के अधिकार और पौधों की किस्मों पर काम कर सकते हैं। भारत में पीपीवीएफआरए नाम से पौधे की किस्म से संबंधित एक प्राधिकरण है। दोनों देशों की ओर से क्षमता निर्माण भी किया जा सकता है।
श्री अश्वनी कुमार ने कहा कि उरुग्वे दूतावास से द्विपक्षीय समझौते के लिए अपनी रुचि व्यक्त करते हुए एक पत्र भेजा जा सकता है जिससे हम आगे बढ़ सकें।