केंद्र ने हिमाचल प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश में कुल तीन बल्क ड्रग पार्कों के निर्माण की ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी दी

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देश को बल्क ड्रग्स में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक और कदम

तीन राज्य अगले 90 दिनों में अपनी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट जमा करेंगे

औषध विभाग ने “बल्क ड्रग पार्कों को बढ़ावा देने” की योजना के तहत तीन राज्यों- हिमाचल प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश के प्रस्तावों को ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी दी है। यह देश में बल्क ड्रग विनिर्माण को सहायता देने के लिए शुरू की गई एक प्रमुख पहल है। इस योजना को साल 2020 में 3,000 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ अधिसूचित किया गया था। यह बल्क ड्रग पार्कों की स्थापना के लिए तीन राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगा। इसका उद्देश्य केंद्र सरकार द्वारा समर्थित विश्व स्तरीय सामान्य बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करके बल्क ड्रग के विनिर्माण की लागत को कम करना है और इसके माध्यम से घरेलू थोक दवा उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता में बढ़ोतरी करना है।

भारतीय औषध उद्योग आकार के आधार पर विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 1,75,040 करोड़ रुपये के दवाओं का निर्यात किया, जिसमें बल्क ड्रग्स/ड्रग इंटरमीडिएट शामिल हैं। इसके अलावा भारत विश्व में सक्रिय औषधीय घटकों (एपीआई) या थोक दवाओं के प्रमुख उत्पादकों में से एक है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 33,320 करोड़ रुपये मूल्य की बल्क ड्रग्स/ड्रग इंटरमीडिएट्स का निर्यात किया।

हालांकि, भारत में कई देशों से दवाओं के विनिर्माण के लिए विभिन्न बल्क ड्रग्स/एपीआई का भी आयात किया जाता है। देश में बल्क ड्रग/एपीआई का अधिकांश आयात आर्थिक कारणों से किया जा रहा है।

सरकार, आयात पर देश की निर्भरता को कम करने और स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। औषध विभाग, देश को एपीआई और ड्रग इंटरमीडिएट्स में आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू कर रहा है। इसके तहत प्रमुख पहलों में से एक बल्क ड्रग पार्क की योजना भी है।

इस योजना के तहत विकसित किए जाने वाले बल्क ड्रग पार्क एक ही स्थान पर सामान्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान करेंगे, जिससे देश में बल्क ड्रग विनिर्माण के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम का निर्माण होगा और विनिर्माण लागत में भी काफी कमी आएगी। इस योजना से आयात निर्भरता को कम करने के लिए थोक दवाओं के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने और मानक परीक्षण व बुनियादी सुविधाओं तक आसान पहुंच प्रदान करके वैश्विक बाजार में एक पैंठ बनाने की उम्मीद है। यह योजना उद्योग को सामान्य अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के अभिनव तरीकों के जरिए कम लागत पर पर्यावरण के मानकों को पूरा करने और संसाधनों के अनुकूलन व पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के कारण उत्पन्न होने वाले लाभों को प्राप्त करने में भी सहायता करेगी।

इस योजना के तहत 13 राज्यों से प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। इसके लिए विभाग को मात्रात्मक और साथ ही गुणात्मक पद्धति के आधार पर प्रस्तावों के मूल्यांकन में नीति आयोग के सीईओ के अधीन एक सलाहकार समिति की सहायता प्रदान की गई थी।

गुजरात और आंध्र प्रदेश में प्रस्तावित बल्क ड्रग पार्क के लिए वित्तीय सहायता सामान्य बुनियादी सुविधाओं की परियोजना लागत का 70 फीसदी होगा। वहीं, पहाड़ी राज्य होने के चलते हिमाचल प्रदेश के लिए वित्तीय सहायता कुल परियोजना लागत का 90 फीसदी होगा। एक बल्क ड्रग पार्क के लिए योजना के तहत अधिकतम सहायता 1,000 करोड़ रुपये तक सीमित होगी।

इन राज्यों की ओर से प्रस्तुत प्रस्तावों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में ऊना जिले के तहसील हरोली में 1402.44 एकड़ भूमि पर, गुजरात के भरूच जिले के जम्बूसर तहसील में 2015.02 एकड़ जमीन पर और आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के थोंडागी मंडल के केपी पुरम व कोढ़ाहा के 2000.45 एकड़ भूमि पर बल्क ड्रग्स पार्कों का निर्माण किया जाएगा। इन तीनों राज्यों को योजना के तहत अगले 90 दिनों में अपनी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत करने, उसका मूल्यांकन करने और अंतिम अनुमोदन के लिए प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया गया है।

यह योजना सहकारी संघवाद की भावना को दिखाती हैं, जहां केंद्र सरकार और राज्य सरकारें क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन के लिए बल्क ड्रग पार्क विकसित करने के लिए भागीदार होंगी। बल्क ड्रग्स के घरेलू विनिर्माण को सुनिश्चित करने में विभाग के अन्य पहलों में निम्नलिखित योजनाएं शामिल हैं :

  • केएसएम/ड्रग इंटरमीडिएट्स (डीआई) और एपीआई के घरेलू विनिर्माण के लिए उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना : इस योजना के तहत कुल 51 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 14 परियोजनाएं पहले ही चालू हो चुकी हैं और दवाओं का विनिर्माण शुरू हो गया है।
  • औषध के लिए पीएलआई को तीन श्रेणियों के तहत चिह्नित किए गए उत्पादों के विनिर्माण के लिए 55 चयनित आवेदकों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है और इस योजना के तहत पात्र दवाओं में एपीआई शामिल हैं।

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