J-K का संविधान भारतीय संविधान के अधीन, लोगों को गुमराह किया गया; केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
नई दिल्ली, 29अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र की इस दलील से प्रथम दृष्टया सहमति जताई कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारतीय संविधान के “अधीनस्थ” है। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ इस दलील से सहमत नहीं दिखी कि पूर्ववर्ती राज्य की संविधान सभा, जिसे 1957 में भंग कर दिया गया था, वास्तव में एक विधान सभा थी।
तत्कालीन राज्य के दो मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का नाम लिए बिना केंद्र ने कहा कि नागरिकों को गुमराह किया गया है कि जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान “भेदभाव नहीं बल्कि एक विशेषाधिकार” थे। तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के 11वें दिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि “आज भी दो राजनीतिक दल इस अदालत के समक्ष अनुच्छेद-370 और 35ए का बचाव कर रहे हैं।”
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारत के संविधान के अधीन है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वास्तव में कानून बनाने वाली विधान सभा थी।
पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, एक स्तर पर आप दूसरे पक्ष (याचिकाकर्ताओं के पक्ष) के प्रत्युत्तर तर्कों के तहत सही हो सकते हैं कि भारत का संविधान वास्तव में एक दस्तावेज है जो जम्मू-कश्मीर के संविधान की तुलना में एक उच्च मंच पर स्थित है। पीठ ने मेहता से कहा कि इस तर्क के दूसरे पहलू को स्वीकार करना मुश्किल होगा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा (सीए) वास्तव में एक विधान सभा थी। अनुच्छेद-370 के प्रावधानों में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि संविधान सभा के अनुमोदन पर कुछ विषयों को राज्य के दायरे में लाया गया है।
इसपर मेहता ने कहा, जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा सभी उद्देश्यों के लिए राज्य विधायिका के रूप में कार्य कर रही थी, इसके अलावा ‘जम्मू और कश्मीर का संविधान’ नामक एक अधीनस्थ दस्तावेज तैयार करने के अलावा कई कानून पारित करके कानून भी बनाए। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने अपनी सीमित शक्तियों का प्रयोग करते हुए जम्मू-कश्मीर के संविधान को मंजूरी दी और अपनाया, जो भारतीय संविधान के व्यापक अनुप्रयोग के साथ आंतरिक शासन के लिए एक “विधायी टुकड़ा” के अलावा कुछ नहीं था।
सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा कि अनुच्छेद 370 का प्रभाव ऐसा था कि राष्ट्रपति और राज्य सरकार के प्रशासनिक कार्य से जम्मू-कश्मीर के संबंध में भारत के संविधान के किसी भी भाग में संशोधन, परिवर्तन या यहां तक कि “नष्ट” किया जा सकता था और नए प्रावधान बनाए जा सकते थे। उन्होंने कहा कि 42वें संशोधन के बाद ”समाजवादी” और ”धर्मनिरपेक्ष” शब्द जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं किए गए। यहां तक कि “अखंडता” शब्द भी वहां नहीं है। मौलिक कर्तव्य वहां नहीं थे, जो भारतीय संविधान में मौजूद हैं।
मेहता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के संविधान को निरस्त करने की जरूरत है क्योंकि यह भारतीय संविधान के साथ सह-अस्तित्व में नहीं रह सकता। सुनवाई बेनतीजा रही और मंगलवार को भी जारी रहेगी। इससे पहले 24 अगस्त को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के समर्थन में अपनी दलीलें शुरू करते हुए केंद्र ने कहा था कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को रद्द करने में कोई “संवैधानिक धोखाधड़ी” नहीं हुई थी।