डॉ. अभिलक्ष लिखी ने आईसीएआर-केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र रोहतक, हरियाणा और लाहली गांव, रोहतक में झींगा फार्म का दौरा किया और झींगा किसानों से की बातचीत
नई दिल्ली ,30 अगस्त। मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी ने रोहतक के लाहली गांव और आईसीएआर-केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान (सीआईएफ़ई), क्षेत्रीय केंद्र रोहतक, हरियाणा में झींगा फार्म का दौरा किया।
आईसीएआर – केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान की फार्म सुविधाओं के दौरे के दौरान, डॉ. अभिलक्ष लिखी ने खारे पानी के झींगा किसानों के सामने आने वाली जमीनी स्तर की समस्याओं को समझने के लिए हरियाणा के झींगा किसानों के साथ बातचीत की। उन्होंने चयनित किसानों को एनएएचईपी योजना के तहत केंद्र द्वारा उत्पादित पेडिग्रीड कॉमन कार्प बीज भी वितरित किए।
डॉ. अभिलक्ष लिखी ने अंतर्देशीय खारे पानी में कमजोर आयनों को मजबूत करने की तकनीक के विकास द्वारा खारे पानी को झींगा पालन के लिए उपयुक्त बनाने के लिए आईसीएआर-सीआईएफई, रोहतक के वैज्ञानिकों को बधाई दी। उन्होंने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में इस तकनीक को अपनाने के लिए जागरूकता पैदा करने पर बल दिया। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि समय की मांग है कि उक्त सभी चार राज्य, जिनके पास खारे पानी की जल कृषि के लिए उपयुक्त लगभग 58000 हेक्टेयर क्षेत्र उपलब्ध है, वे आईसीएआर-सीआईएफई द्वारा विकसित तकनीक को झींगा पालन के लिए अपनाएं, जबकि वर्तमान में केवल 2167 हेक्टेयर का उपयोग होता है, जो प्रति वर्ष 8554.15 मीट्रिक टन देता है । डॉ. अभिलक्ष लिखी ने कहा कि भारत सरकार का लक्ष्य इन चार राज्यों के 58000 हेक्टेयर क्षेत्र की पूरी क्षमता का उपयोग करना है ताकि क्षेत्र के मत्स्य किसानों की आय दोगुनी हो सके।
डॉ. अभिलक्ष लिखी ने आईसीएआर-सीआईएफई और मत्स्यपालन विभाग, हरियाणा को पर्यावरण अनुकूल झींगा पालन, मार्केटिंग लिंकेजस और आसानी से उपलब्ध इनपुट सहित क्षेत्र में टिकाऊ झींगा पालन के लिए एक विस्तृत योजना तैयार करने का निर्देश दिया ।
डॉ. अभिलक्ष लिखी ने एक्वाफार्मिंग के माध्यम से बंजर भूमि को धन भूमि में परिवर्तित करने की भविष्य की योजना पर जोर दिया । उनके दौरे के दौरान आईसीएआर-सीआईएफ़ई के वैज्ञानिकों ने उन्हें बताया कि देश के अंतर्देशीय राज्यों में भूजल के लवणीकरण ने बड़े प्रतिकूल आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय परिणाम पैदा किए हैं, जिससे मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लगभग 8.62 मिलियन हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई है। भूजल के खारे पानी को जलीय कृषि प्रथाओं के माध्यम से आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जा सकता है जिसमें जल का एक बड़ा हिस्सा जलकृषि तालाबों से वाष्पित किया जा सकता है और आय पैदा करने वाली मछली/प्रऑन/झींगा पैदा करने में उपयोग किया जा सकता है।
वर्तमान में चार उत्तर भारतीय राज्यों – हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से 2167 हेक्टेयर खारे पानी के जलीय कृषि से प्रति वर्ष 8554.15 मीट्रिक टन झींगा उत्पादित किया जाता है । इन चार राज्यों में 58000 हेक्टेयर क्षेत्र खारे पानी की जलकृषि के लिए उपयुक्त है। इन चार राज्यों के अंतर्देशीय लवणीय क्षेत्रों में झींगा पालन और मत्स्य पालन की पर्याप्त गुंजाइश है । इन क्षेत्रों में खारे पानी के जल कृषि में प्रजातियों के विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए, मत्स्यपालन विभाग ने 9.29 करोड़ रुपये की कुल लागत पर अंतर्देशीय खारा जल कृषि के लिए कॉमन कार्प साइप्रिनस कार्पियो के आनुवंशिक सुधार के लिए सीआईएफई, रोहतक को पीएमएमएसवाई के तहत एक परियोजना को मंजूरी दी है ।
डॉ. अभिलक्ष लिखी ने पीएमएमएसवाई के तहत सहायता प्रदान की जा रही कॉमन कार्प के आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम के साथ-साथ आईसीएआर- केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान (सीआईएफ़ई), रोहतक द्वारा की जा रही गतिविधियों की भी समीक्षा की। डॉ. एस. जागीरदार, प्रधान वैज्ञानिक, आईसीएआर ने आईसीएआर-सीआईएफई रोहतक केंद्र द्वारा की जा रही विभिन्न गतिविधियों और परियोजनाओं के बारे में जानकारी दी। सीआईएफई, रोहतक केंद्र की वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. बबीता रानी ने केंद्र में चल रही अनुसंधान गतिविधियों पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी। सीआईएफई, रोहतक के प्रभारी वैज्ञानिक ने बताया कि आईसीएआर-सीआईएफई, रोहतक केंद्र ने मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार के सहयोग से अंतर्देशीय खारे पानी में कमजोर आयनों को मजबूत करने और इसे झींगा और जलीय कृषि की अन्य प्रजातियों के लिए उपयुक्त बनाने के लिए तकनीक विकसित की है। सीआईएफई, रोहतक के प्रभारी द्वारा बताया गया कि इस तकनीक का विस्तार वर्ष 22-23 तक, हरियाणा में 2942 एकड़, पंजाब में 1200 एकड़, राजस्थान में 1000 एकड़ और उत्तर प्रदेश में 20-25 एकड़ के लिए किया गया है। वर्तमान वर्ष में हरियाणा में उत्पादन क्षेत्र 1200 एकड़ और बढ़ गया है।