भारत को भू-स्थानिक ज्ञान और बुनियादी ढांचे के माध्यम से बदलने के तरीकों पर विशेषज्ञों ने चर्चा की

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विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री द्वारा बजट प्रौद्योगिकी-सक्षम विकास पर उद्घाटित वेबिनार के एक ब्रेकअवे सत्र में राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति की मदद से भू-स्थानिक ज्ञान और बुनियादी ढांचे के माध्यम से भारत को बदलने के तरीकों पर चर्चा की, जो डेटा की पहुंच को सुविधाजनक, प्रभावी मानव संसाधन का निर्माण कर सके और सरकार, उद्योग और शिक्षाविदों के बीच ज्ञान भागीदारों के रूप में सहयोग को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ डेटा की उपयोगिता को बढ़ा सके।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की अगुवाई में ’भू-स्थानिक ज्ञान और बुनियादी ढांचे के माध्यम से भारत में बदलाव’ शीर्षक पर ब्रेकअवे सत्र में परिचर्चा के दौरान अंतरिक्ष विभाग के पूर्व सचिव और इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. किरण कुमार ने कहा, ’’डेटा जनरेशन और डेटा गवर्नेंस भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के महत्वपूर्ण घटक हैं, और इनके लिए सरकार, शिक्षाविदों और उद्योग के बीच प्रभावी सहयोग की आवश्यकता है। डेटा की बेहतर पहुंच के लिए समस्याओं को समाधान करने के लिए सरकार सभी प्रतिबंधों को हटा रही है। एक बार डेटा सुलभ हो जाने के बाद, कई क्षेत्रों में समाधान प्रदान करने की इसकी क्षमता बहुत अधिक है। इन सबको प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए, सभी स्तरों पर प्रशिक्षित मानव शक्ति आवश्यक है।’’

डॉ. कुमार ने 2 मार्च 2022 को वेबिनार में कहा, “हमें ऐसे तंत्र की आवश्यकता है जिसमें सरकार और उद्योग भागीदार के रूप में काम कर सकें, उद्योग द्वारा प्रदान किए गए समाधानों को मान्यता मिले और हमें सही कौशल वाले सही लोगों की आवश्यकता है जो इन पहलों को आगे बढ़ा सकें। बजट 2022 में डेटा संग्रह और इसकी पहुंच पर चर्चा की गई है और इसका लाभ उठाने की आवश्यकता है।’’

’प्रौद्योगिकी-सक्षम विकास’ शीर्षक पर वेबिनार प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) के कार्यालय द्वारा भारत सरकार के कई विज्ञान मंत्रालयों और विभागों के सहयोग के साथ द्वारा आयोजित किया गया था।

डॉ. शांतनु भटवडेकर, निदेशक, ईओए और डीएमएस कार्यक्रम कार्यालय, इसरो ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सरकार को इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकियों की गहरी पैठ के लिए इस क्षेत्र में डोमेन विशेषज्ञता को प्राइवेट के साथ साझा करना चाहिए। निरर्थकता को कम करने और डेटा को आसानी से सुलभ बनाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के लिए एक फेडरेटेड इकोसिस्टम बनाया जाना चाहिए। उन्होंने मंत्रालयों, लाइन विभागों और भू-स्थानिक उद्योग को एक साथ काम करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर डॉ. भरत लोहानी ने कहा, ’’हमें भू-स्थानिक आरएंडडी प्रणाली, प्रौद्योगिकी निर्माण, शिक्षा, डेटा साझाकरण, अकादमिक स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने के लिए एक रोडमैप की जरूरत है। साथ ही, हमें वैश्विक बेंचमार्क से तालमेल स्थापित करने के लिए तीव्र प्रगति की जरूरत है।’’ उन्होंने डेटा की गुणवत्ता के आधार पर डेटा के मानकीकरण और इसके एकीकरण की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

डॉ. प्रकाश चौहान, निदेशक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस), देहरादून ने विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले उपयोगकर्ता विनिर्देशों के संदर्भ में भू-स्थानिक डेटा की पहुंच बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “भारत में डेटा तैयार करने और उनकी उपलब्धता के लिए विभिन्न व्यवस्थाएं मौजूद हैं। उन डेटा को अपडेट करने और डेटा का मिलान करने का एक उचित चैनल जरूरी है। इसके अलावा, हमें भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के विकास की नींव बनाने के लिए देश की आईटी क्षमताओं और स्थानीय डेटा का उपयोग करने के लिए एक स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है। इसरो ने एक डेटासेट बनाया है और इसे क्लाउड-आधारित सेवाओं के माध्यम से प्रसारित करने की आवश्यकता है।’’

वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्यों पर चित्रण करते हुए, मैपमाईइंडिया के अध्यक्ष, श्री राकेश वर्मा ने विदेशी संस्थाओं पर निर्भरता को कम करने के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने और उन्हें उपयोगकर्ताओं तक प्रसारित करने की बढ़ती आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है और इसलिए भू-स्थानिक उद्योग ऐसे संसाधनों से आत्मानिर्भर हो सकता है। उन्होंने भारत में विकसित मोबाइल मैपिंग के उदाहरणों पर प्रकाश डाला, जिसका विस्तार पूरे देश में किया जा सकता है।

जियोस्पेशियल वल्र्ड के सीईओ श्री संजय कुमार ने बताया, ’’हमें स्वदेशी कंपनियों का सहयोग करके स्वदेशी सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर विकसित करने की आवश्यकता है और इसके लिए औद्योगिक क्षमता, इनक्यूबेटर, पूंजी जुटाने की जरूरत होगी, जिनमें से कुछ भू-स्थानिक औद्योगिक विकास कोष, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता, स्थानीय विनिर्माण, और आखिर में कई गुना विकास के लिए एक अच्छी औद्योगिक रणनीति के रूप में हो सकते हैं।

सुश्री अभिलाषा पुरवार, संस्थापक और सीईओ, ब्लू स्काई एनालिटिक्स ने उन तरीकों पर प्रकाश डाला, जिनसे भू-स्थानिक डेटा भारत को जलवायु कार्रवाई और चर्चा में उपग्रह खुफिया और डेटा को जलवायु चर्चाओं में शामिल करके अग्रणी बना सकता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के संयुक्त सचिव, श्री सुनील कुमार ने भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी और ड्रोन प्रौद्योगिकी में सरकारी सुधारों पर प्रकाश डाला और ग्रामीणों को स्वामित्व शीर्षक प्रदान करने के लिए स्वामी परियोजना के बारे में भी चर्चा की।

अंतिम सिफारिशों में मानव पूंजी का लाभ उठाना शामिल है जिसे देश में पहले से ही भू-स्थानिक डेटा का उपयोग करके उत्पादों और समाधानों को विकसित किया गया है, भू-सूचना विज्ञान में यूजी और पीजी स्तर पर नए पाठ्यक्रमों की शुरूआत, उद्योग के नेतृत्व वाले प्रमाणीकरण के माध्यम से सर्वेक्षणकर्ताओं और जीआईएस पेशेवरों द्वारा प्रदान की जाने वाली पेशेवर सेवाओं का मानकीकरण और उच्च-रिजॉल्यूशन वाले भू-स्थानिक डेटासेट जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान पर बल देना इसमें शामिल हैं।

सिफारिशों में लोकल क्लाउड सेवाओं को प्रोत्साहित करना, गुणवत्ता वाले आरएफपी दस्तावेजों के माध्यम से सार्वजनिक खरीद में सुधार, निर्धारित विनिर्देशों के अनुसार निविदा कार्यों के मूल्यांकन और प्रमाणित करने में विशेषज्ञता विकसित करना, उद्योग के साथ सहयोग करने के लिए निविदाओं से आगे बढ़ना, राजस्व मॉडल बनाने के लिएसरकारी डेटा और उद्योग की प्रौद्योगिकी का लाभ, स्टार्ट अप और अन्य व्यवसायों के लिए पूंजी उपलब्धता में सुधार, भू-स्थानिक निवेश कोष, भू-स्थानिक उद्योग विकास रणनीति के साथ-साथ क्षेत्रीय विकास योजनाएं भी सिफारिशों में शामिल हैं।

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