अंबानी परिवार का निजी समारोह कैसे बना अंतरराष्ट्रीय आयोजन, क्या हैं मायने- प्रेस रिव्यू
नई दिल्ली,06 मार्च। इस सप्ताह गुजरात के जामनगर की हर तरफ़ चर्चा रही. वजह थी एशिया के सबसे अमीर शख़्स मुकेश अंबानी के सबसे छोटे बेटे अनंत अंबानी और उनकी मंगेतर राधिका मर्चेंट का प्री वेडिंग समारोह.
पॉप स्टार रिहाना से लेकर पंजाबी पॉप स्टार दिलजीत दोसांझ ने जामनगर में स्टेज शो किया. फिल्मी सितारों ले लेकर राजनेताओं, फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्ग और बिलगेट्स तक सभी जामनगर पहुँचे. जो तस्वीरें सामने आ रही थीं, उनमें लग रहा था मानो पूरे शहर में कार्निवाल का आयोजन हुआ है.
इस शादी को लेकर जाने माने पॉलिटिकल थिंकर और अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के कंट्रीब्यूटिंग एडिटर प्रताप भानु मेहता ने अख़बार में एक लेख लिखा है, जिसका शीर्षक है- शादी नंबर वन.
मेहता लिखते हैं, अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के प्री-वोडिंग (शादी से पहले का आयोजन) समारोह पर जिस तरह का आकर्षण रहा, वो भारत की संस्कृति और राजनीतिक अर्थव्यवस्था में हो रहे व्यापक बदलावों को देखने की एक खिड़की है.
स्क्रिप्ट के अनुसार, समारोह के वीडियो को रिलीज़ करना, इस इवेंट के लिए बड़ा तामझाम तैयार करना, ये हैरान करने वाला तो नहीं है.
एक नज़रिए से ये काफ़ी बेहतरीन स्क्रिप्ट है- कहानी में पैसा, पावर, ग्लैमर, पारिवारिक मूल्य, धर्मपरायणता का माकूल संगम है. यहां व्यक्ति का अपना संघर्ष भी है. ये ऐसी कहानी है, जिसे सूरज बड़जात्या भी कभी ना बना पाएं. इस कहानी में लोगों की रूचि भी है.
इस तरह का डिस्प्ले शायद ही लोगों के बीच रोष पैदा करता है या जलन का कारण बनता है. किसी भी स्थिति में जलन तब होती है, तब प्रतिद्वंद्विता आस-पास की हो.
आम तौर पर अमीरों के प्रति इस तरह की भावना नहीं होती. भारत जैसे असमानता वाले समाज में जब इस तरह का डिस्प्ले किया जाता है तो ये लोगों के लिए बड़ा अजीबोगरीब और ध्यान भटकाने वाला होता है. लेकिन इस सोच के ऊपर हावी होता है, लोगों के बीच प्रशंसा का एक भाव और वैसे भी किसी की सफलता और संपत्ति से चिढ़ना एक विकृत सोच है.
अगर इस तरह से पैसे पावर का दिखावा बेवजह होता है तो इससे नफ़रत करना भी बेवजह ही है.
जैसा की एडम स्मिथ ने कहा था– अमीरों के साथ ‘पिक्यूलियर सिंपथी’ होती है, यानी अमीर लोग आम लोगों के बीच एक प्रेरणा तो बनते ही हैं. और ‘हम जिसे ख़ुशी समझते हैं’ उसकी एक तस्वीर पेश करते हैं. सोचिए कि अगर एक अमीर आदमी भी अपने लिए मनमर्जी से चुनने का काम नहीं करेगा तो आम लोग क्या उम्मीद रखेंगे.
यही कारण है कि दुनियाभर में आम लोग अमीरों की सफलता के प्रति आकर्षित रहते हैं. उनसे सहानूभूति रखते हैं, प्रेरणा लेते हैं, चिढ़न का भाव नहीं रखते.
लेकिन ये मामला थोड़ा अलग है. आम तौर पर अमीर लोग के आयोजन बँटे होते हैं. कुछ में ग्लैमर दिखता है, कुछ में इंडस्ट्री दिखती है, कुछ में पावर दिखता है.
लेकिन इस ममाले में एक ही जगह ये सभी दिख रहे थे.
दूसरा अहम पहलू था, इस आयोजन को जिस तरह से सार्वजनिक रूप से दिखाया गया. फ़िल्मों के बड़े प्रोड्यूसर यहाँ ख़ुद फ़िल्म बन गए, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को कंट्रोल करने वाले लोग यहाँ पर एंटरटेनमेंट बन गए, ख़बरों के मालिक खुद ख़बर बनते हुए दिखे.
इस दिखावे को प्रताप भानु मेहता सोशल मीडिया की दुनिया से भी जोड़ कर देखते हैं. वो कहते है कि सोशल मीडिया पर परफॉर्मेंस का एक प्रेशर होता है.
ख़ुद को आइडियल दिखाना और ऑथेंटिंक दिखाने का दबाव. और जब स्क्रिप्ट इस छवि के साथ मैच कर जाती है तो जो नतीजा आता है वो अंबानी की शादी जैसा होता है, जो हमारे समय का एक बेहतरीन उदाहरण है.
इस पूरे आयोजन को देखते हुए तीन बाते मन में आती हैं.
पुरानी कहावत है, जिसके पास पैसा है, उसके पास पावर है. लेकिन बड़ी पूंजी क्या कुछ करने में सक्षम है इसकी परिभाषा बदल गई है. कुछ कंस्ट्रक्शन केवल अंबानी या अडानी ही कर सकते हैं.
यदि आप बड़ी रिफाइनरियां, तेजी से बनने वाले बंदरगाह, सस्ता दूरसंचार चाहते हैं, तो ‘बिग कैपिटल’ ही एकमात्र विकल्प है. ऐमें में नियमों से छेड़छाड़ कर इसे संभव बनाने से कतराना नहीं चाहिए.
दूसरा, अंबानी के मामले में एक ऐसा नज़ारा दिखा, जिसमें पूरी दुनिया से लोग नज़र आ रहे थे.
क़तर के शेख़ से लेकर रिहाना तक. ऐसा डिस्प्ले की पूरी दुनिया भारत को देख रही थी. तो क्या हुआ कि भारत अमीर देश नहीं है, कम से कम यहां दुनिया के अमीर लोग तो हैं.
तीसरा है भारतीय पूंजी का हिंदू राष्ट्रवाद से मिलन. पूंजी तो दिखनी ही चाहिए लेकिन साथ ही दिखना चाहिए लोगों को हित के लिए समर्पण. इसे दिखाने के लिए एक परफेक्ट पूंजीवादी संस्कारी परिवार से बेहतर और क्या हो सकता है.