नीति आयोग ने ‘‘अभिनव कृषि’’ पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया
नीति आयोग ने आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के तहत 25 अप्रैल, 2022 को सुबह 9:00 बजे से शाम 4:30 बजे तक विज्ञान भवन, नई दिल्ली में ‘‘अभिनव कृषि’’ पर एक राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला का आयोजन किया।
नीति आयोग के कृषि और संबद्ध क्षेत्र (एएएस) वर्टिकल की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. नीलम पटेल ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और प्राकृतिक खेती के अभ्यास के पीछे विज्ञान, बुनियादी चीजों और प्रक्रियाओं को समझने की आवश्यकता का हवाला दिया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि कार्यशाला में भाग लेने वाले अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का ज्ञान, अनुसंधान अनुभव और विशेषज्ञता देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं की क्षमता निर्माण में मदद करेगी।
नीति आयोग के सीईओ श्री अमिताभ कांत ने अपने संबोधन के दौरान कहा, ‘‘प्राकृतिक खेती समय की जरूरत है और वैज्ञानिक तरीकों की पहचान करना महत्वपूर्ण है ताकि किसानों को प्राकृतिक खेती से प्रत्यक्ष लाभ और उच्च आय हो सके।’’
कार्यशाला को संबोधित करते हुए, नीति आयोग के सदस्य प्रो रमेश चंद ने कहा, ‘‘हम ऐसे विकल्पों को मौका दे सकते हैं क्योंकि खाद्य सुरक्षा के लिए कोई गंभीर खतरा नहीं है क्योंकि हमारे पास अधिक खाद्य भंडार है।’’ उन्होंने प्राकृतिक खेती को चरणबद्ध तरीके से अपनाने का भी आह्वान किया।
केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने बताया कि महामारी के दौरान पौष्टिक भोजन, अच्छे स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमता के बारे में जागरूकता बढ़ी है। इस संबंध में उन्होंने पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने में प्राकृतिक खेती की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बेहतर पोषण सुनिश्चित करने में मवेशियों और पशुओं के महत्व पर जोर दिया।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने उल्लेख किया कि सरकार कृषि प्रणालियों को प्रोत्साहित कर रही है जो प्रकृति के अनुरूप काम करती हैं, उत्पादन की लागत को कम करती हैं और किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाली उपज और लाभ सुनिश्चित करती हैं। उन्होंने प्राकृतिक खेती में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्व पर भी जोर दिया।
गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने अपना अनुभव साझा किया कि कैसे प्राकृतिक खेती में बदलाव से खेती की लागत में उल्लेखनीय कमी आई है, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है और उपज में वृद्धि हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि प्राकृतिक खेती को अपनाने से किसानों के काम को अनुकूलित करने और पर्यावरण को बड़े पैमाने पर लाभ पहुंचाने में मदद मिलेगी, खासकर जब पानी के उपयोग की बात आती है। उन्होंने कहा, ‘‘प्राकृतिक खेती के माध्यम से कृषि क्षेत्र में नवाचार लाने की बहुत गुंजाइश है।’’
नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने उल्लेख किया कि प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने और बड़े पैमाने पर लोगों, विशेषकर हमारे किसानों के साथ इसके लाभ साझा करने का समय आ गया है। राज्यों के साझा अनुभव देश में नवीन कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए एक मजबूत रोडमैप बनाने में मदद करेंगे। उन्होंने कार्यशाला के बाद भारत में प्राकृतिक खेती की दिशा में एक सफल रोड मैप बनाने का उत्साह व्यक्त किया।
आयोजन के दौरान प्राकृतिक खेती की सफलता की कहानियों का एक द्विभाषी संग्रह जारी किया गया, जिसमें पूरे भारत के 13 राज्यों की 110 सफलता की कहानियां शामिल हैं।
कार्यशाला में चार तकनीकी सत्र थेः (i) राज्यों में प्राकृतिक खेती पर एक पैनल चर्चा, (ii) मृदा स्वास्थ्य बहाली और जलवायु परिवर्तन शमन के लिए प्राकृतिक खेती, (iii) प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना, (iv) प्राकृतिक खेती में नवाचार।
प्रथम तकनीकी सत्र के दौरान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ कार्यशाला में ऑनलाइन माध्यम से शामिल हुए और गाय आधारित प्राकृतिक खेती के महत्व और पारंपरिक पहलुओं पर प्रकाश डाला, जो कार्बन को अलग करने और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करता है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा नदी के दोनों किनारों और 5,200 गांवों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की राज्य की योजना का उल्लेख किया। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने प्राकृतिक खेती पर अनुसंधान को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया और 90:10 के अनुपात में प्राकृतिक कृषि के लिए केंद्र से सहयोग की आवश्यकता बताई। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में प्राकृतिक खेती की वर्तमान स्थिति, प्रगति और चुनौतियों के बारे में बताया।
दूसरे तकनीकी सत्र में, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और गणमान्य व्यक्तियों ने पुनर्योजी कृषि को बढ़ावा देने की आवश्यकता, पारंपरिक कृषि प्रणालियों के साथ जलवायु परिवर्तन को कम करने की रणनीति, 21वीं सदी में स्थायी कृषि पारिस्थितिक खाद्य प्रणालियों के महत्व, कृषि जलवायु को लचीला बनाने में प्राकृतिक खेती द्वारा निभाई गई भूमिका और नए भारत के लिए हरित अर्थशास्त्र की आवश्यकता पर चर्चा की।
तीसरे तकनीकी सत्र में, प्राकृतिक खेती को बढ़ाने की आवश्यकता, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) संसाधनों का एकीकरण, और विपणन नेटवर्क को बढ़ावा देने और बढ़ाने तथा प्राकृतिक खेती के लिए ऋण सहायता के प्रावधान में सहकारी समितियों और एफपीओ द्वारा निभाई गई भूमिका पर प्रकाश डाला गया। डॉ. राजेश्वर चंदेल (कार्यकारी निदेशक, प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना, हिमाचल प्रदेश) ने प्राकृतिक खेती में समुदाय आधारित प्रमाणन प्रक्रिया के बारे में बताया। डॉ. बलजीत सहारन (एसोसिएट प्रोफेसर, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय) ने कहा, ‘‘बेहतर मृदा जैविकी और जैव विविधता प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।’’
अंतिम तकनीकी सत्र में, मानसून पूर्व शुष्क बुवाई, प्राकृतिक खेती का अभ्यास करते समय फसल अवशेषों के प्रबंधन के अनुभव और इनपुट तैयारियों के लिए मशीनीकरण तथा स्वचालन और प्राकृतिक खेती में अनुप्रयोगों जैसे नवाचारों को साझा किया गया।
केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, उद्योग, किसानों, शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों, केवीके और गैर सरकारी संगठनों, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों समेत 1250 से अधिक प्रतिभागी कार्यशाला में शामिल हुए। कार्यशाला को लिंक https://youtu.be/sq2BXK3RFY0 के माध्यम से यूट्यूब पर भी लाइव-स्ट्रीम किया गया।