लोक सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ
माननीय अध्यक्ष जी,
राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद कहने के लिए मैं उपस्थित हुआ हूं। आदरणीय राष्ट्रपति जी ने अपने भाषण में आत्मनिर्भर भारत को ले करके और आकांक्षी भारत को ले करके गत दिनों के जो प्रयास हैं उसके संबंध में विस्तार से बात कही है। मैं सभी आदरणीय सदस्यों का बहुत आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने इस महत्वपूर्ण भाषण पर अपनी टिप्पणी की है, अपने विचार रखे।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
मैं अपनी बात बताने से पहले कल जो घटना घटी, उसके लिए दो शब्द जरूरी कहना चाहूंगा। देश ने आदरणीय लता दीदी को खो दिया है। इतने लंबे काल तक जिनकी आवाज ने देश को मोहित किया, देश को प्रेरित भी किया है, देश को भावनाओं से भर दिया है। और एक अहर्निश, सांस्कृतिक धरोहर को मजबूत करते हुए और देश की एकता को भी; करीब-करीब 36 भाषाओं में उन्होंने गाया। ये अपने-आप में भारत की एकता और अखंडता के लिए भी एक प्रेरक उदाहरण है। मैं आज आदरणीय लता दीदी को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इतिहास इस बात का गवाह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में बहुत बड़ा बदलाव आया। एक नया वर्ल्ड ऑर्डर जिसमें हम सब लोग जी रहे हैं, मैं साफ देख रहा हूं कि कोरोना काल के बाद विश्व एक नए वर्ल्ड ऑर्डर की तरफ, नई व्यवस्थाओं की तरफ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। ये एक ऐसा टर्निंग प्वाइंट है कि हमें एक भारत के रूप में इस अवसर को गंवाना नहीं चाहिए। मेन टेबल पर भारत की आवाज भी बुलंद रहनी चाहिए। भारत ने एक लीडरशिप रोल के लिए अपने-आप को कम नहीं आंकना चाहिए। और इस परिप्रेक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव, आजादी के 75 साल अपने-आप में प्रेरक अवसर है। उस प्रेरक अवसर को ले करके, नए संकल्पों को ले करके देश जब आजादी के सौ साल मनाएगा तब तक हम पूरे सामर्थ्य से, पूरी शक्ति से, पूरे समर्पण से, पूरे संकल्प से देश को उस जगह पर ले करके पहुंचेंगे, ये संकल्प का समय है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
बीते वर्षों में देश ने कई क्षेत्रों में मूलभूत व्यवस्था में बहुत मजबूती का अनुभव किया है। और बहुत मजबूती के साथ हम आगे बढ़े हैं। प्रधान मंत्री आवास योजना- गरीबों को रहने के लिए घर हो, ये कार्यक्रम तो लंबे समय से चला है, लेकिन जो गति, जो व्यापकता, विशालता, विविधता, उसने उसमें स्थान पाया है उसके कारण आज गरीब का घर भी लाखों से भी ज्यादा कीमत का बन रहा है। और एक प्रकार से जो भी पक्का घर पाता है, वो गरीब आज लखपति की श्रेणी में भी आ जाता है। कौन हिन्दुस्तानी होगा जिसको इस बात को सुन करके गर्व न हो कि आज देश के गरीब से गरीब के घर में शौचालय बना है, आज खुले में शौच से देश के गांव भी मुक्त हुए हैं, कौन खुश नहीं होगा? मैं बैठने के लिए तैयार हूं। आपको धन्यवाद करके शुरू करूं? बहुत-बहुत धन्यवाद। आपका प्यार अजर-अमर रहे।
आजादी के इतने सालों के बाद गरीब के घर में भी जब रोशनी होती है, तो उसकी खुशियां देश की खुशियों को ताकत देती हैं। चूल्हे के धुंए से जलती हुई आंखों से काम करने वाली मां को, गरीब मां को, और जिस देश में घर में गैस कनेक्शन हो, ये status symbol बन चुका था, उस देश में गरीब के घर में गैस का कनेक्शन हो, धुएं वाले चूल्हे से मुक्ति हो तो उसका आनंद कुछ और ही होता है।
आज गरीब का बैंक में अपना खाता हो, आज बैंक में जाए बिना गरीब भी अपने टेलीफोन से बैंक के खाते का उपयोग करता हो। सरकार के द्वारा दी गई राशि सीधी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के तहत उसके खाते में पहुंच रही हो, ये सब अगर आप जमीन से जुड़े हुए होते हैं, अगर आप जनता के बीच में रहते होते हैं तो जरूर ये चीजें नज़र आती हैं, दिखाई देती हैं। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि आप में से बहुत लोग ऐसे हैं जिनके सुई-कांटा 2014 में अटका हुआ है और उससे वो बाहर ही निकल नहीं पाते हैं। और उसका नतीजा क्या आपको भुगतना पड़ा है, आपने जो अपने-आप को एक ऐसी मानसिक अवस्था में बांधकर रखा है; देश की जनता आपको पहचान गई है। कुछ लोग पहले पहचान गए हैं, कुछ लोग देर से पहचान रहे हैं और लोग आने वाले समय में पहचानने वाले हैं। आप देखिए, आप इतना सारा लंबा उपदेश देते हैं तब भूल जाते हैं 50 साल तक कभी आपने भी देश में यहां बैठने का सौभाग्य प्राप्त किया था और क्या कारण है ये आप सोच नहीं पाते हैं।
अब आप देखिए, नागालैंड के लोगों ने आखिरी बार 1998 में कांग्रेस के लिए वोट किया था, करीब 24 साल हो गए। ओडिशा ने 1955 में आपके लिए वोट किया था, सिर्फ 27 साल हो गए आपको वहां एंट्री नही मिली। गोवा में 1994 में पूर्ण बहुमत के साथ आप जीते थे, 28 साल हो गए गोवा ने आपको स्वीकार नहीं किया। पिछली बार 1988 में त्रिपुरा में वहां की जनता ने वोट दिया था, करीब 34 साल पहले त्रिपुरा में। कांग्रेस का हाल है यूपी, बिहार और गुजरात- आखिर में 1985 में, करीब 37 साल पहले आपके लिए वोट किया था। पिछली बार पश्चिम बंगाल ने, वहां के लोगों ने 1972 में करीब 50 साल पहले आपको पसंद किया था। तमिलनाडु के लोगों ने….मैं इसके लिए सहमत हूं, अगर आप उस मर्यादा का पालन करते हैं और इस जगह का उपयोग न करते हों, बड़ा दुर्भाग्य है देश का कि सदन जैसी जगह देश के लिए काम आनी चाहिए, उसको दल के लिए काम में लेने का जो प्रयास हो रहा है और उसके कारण जवाब देना हमारी मजबूरी बन जाती है।
माननीय अध्यक्ष जी,
तमिलनाडु- आखिर में 1962 में यानी करीब 60 साल पहले आपको मौका मिला था। तेलंगना बनाने का श्रेय लेते हैं लेकिन तेलंगना बनने के बाद भी वहां की जनता ने आपको स्वीकार नहीं किया। झारखंड का जन्म हुआ, 20 साल हो गए, पूर्ण रूप से कांग्रेस को स्वीकार नहीं किया, पिछले दरवाजे से घुसने का प्रयास करते हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
सवाल चुनाव नतीजों का नहीं है। सवाल उन लोगों की नीयत का है, उनकी नेकदिली का है। इतने बड़े लोकतंत्र में इतने साल तक शासन में रहने के बाद देश की जनता हमेशा-हमेशा के लिए उनको क्यों नकार रही है? और जहां भी ठीक से लोगों ने राह पकड़ ली, दोबारा आपको प्रवेश करने नहीं दिया है। इतना सारा होने के बावजूद भी..हम तो एक चुनाव हार जाएं ना, महीनों तक न जाने ecosystem क्या-क्या करती है। इतना सारा पराजय होने के बावजूद भी न आपका अहंकार जाता है न आपकी ecosystem आपके अहंकार को जाने देती है।…इस बार अभिनंदन जी बहुत सारे शेर सुना रहे थे..चलिए मौका मैं भी ले लूं- और जब अहंकार की बात मैं कर रहा हूं, तब तो उनको कहना ही पड़ेगा- वो जब दिन को रात कहें तो तुरंत मान जाओ,
नहीं मानोगे तो दिन में नकाब ओढ़ लेंगे। जरूरत हुई तो हकीकत को थोड़ा-बहुत मरोड़ लेंगे।
वो मगरूर है खुद की समझ पर बेइन्तिहा, उन्हें आईना मत दिखाओ। वो आईने को भी तोड़ देंगे।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आजादी का अमृत महोत्सव, आजादी के 75 वर्ष में आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और देश अमृतकाल में प्रवेश कर रहा है। आजादी की इस लड़ाई में जिन-जिन लोगों ने योगदान किया है वो किसी दल के थे या नहीं थे…इन सबसे परे उठ करके देश के लिए जीने-मरने वाले लोग, देश के लिए जवानी खपाने वाले लोग, तो हर किसी को स्मरण करने का, पुन: स्मरण करने का अवसर है और उनके सपनों को याद करते हुए कुछ संकल्प लेने का अवसर है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हम सब संस्कार से, स्वभाव से, व्यवस्था से लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध लोग हैं और आज से नहीं, सदियों से हैं। लेकिन ये भी सही है कि आलोचना जीवंत लोकतंत्र का एक आभूषण है, लेकिन अंधविरोध, ये लोकतंत्र का अनादर है। सत्ता प्रयास, इस भावना से भारत ने जो कुछ हासिल किया है, अच्छा होता उसे खुले मन से स्वीकार किया गया होता, उसका स्वागत किया गया होता। उसका गौरव-गान करते।
बीते दो सालों में सौ साल का सबसे बड़ा वैश्विक महामारी का संकट पूरी दुनिया की मानव जाति झेल रही है। जिन्होंने भारत के अतीत के आधार पर ही भारत को समझने का प्रयास किया, उनको तो आशंका थी इतना बड़ा विशाल देश, इतनी बड़ी आबादी, इतनी विविधता, ये आदतें, ये स्वभाव…शायद ये भारत इतनी बड़ी लड़ाई नहीं लड़ पाएगा। भारत अपने-आपको बचा नहीं पाएगा…यही उनकी सोच थी। लेकिन आज स्थिति क्या है… मेड इंडिया कोवैक्सीन, कोविड टीके दुनिया में सबसे प्रभावी हैं। आज भारत शत-प्रतिशत पहली डोज, इस लक्ष्य के निकट करीब-करीब पहुंच रहा है। और लगभग 80 प्रतिशत सेंकेंड डोज- उसका पड़ाव भी पूरा कर लिया है।
माननीय अध्यक्ष जी,
कोरोना एक वैश्विक महामारी थी, लेकिन उसे भी दलगत राजनीति के लिए उपयोग में लाया जा रहा है, क्या ये मानवता के लिए अच्छा है?
माननीय अध्यक्ष जी,
इस कोरोना काल में कांग्रेस ने तो हद कर दी
माननीय अध्यक्ष जी,
पहली लहर के दौरान देश जब लॉकडाउन का पालन कर रहा था जब WHO दुनियाभर के लोगों को सलाह देता था, सारे हेल्थ एक्सपर्ट कह रहे थे कि जो जहां है वहीं पर रुके, सारी दुनिया में ये संदेश दिया जाता था, क्योंकि मनुष्य जहां जाएगा अगर वो कोरोना से संक्रमित है तो कोरोना साथ ले जाएगा। तब, कांग्रेस के लोगों ने क्या किया, मुंबई के रेलवे स्टेशन पर खड़े रह करके, मुंबई छोड़कर जाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मुंबई में श्रमिकों को टिकट दिया गया, मुफ्त में टिकट दिया गया, लोगों को प्रेरित किया गया कि जाओ। महाराष्ट्र में हमारे पर जो बोझ है वो जरा कम हो, और जाओ तुम उत्तर प्रदेश के हो, तुम बिहार के हो। जाओ, वहां कोरोना फैलाओ। आपने ये बहुत बड़ा पाप किया है। महा अफरा-तफरी का माहौल खड़ा कर दिया। आपने हमारे श्रमिक भाइयों-बहनों को अनेक परेशानियों में धकेल दिया।
और माननीय अध्यक्ष जी,
उस समय दिल्ली में ऐसी सरकार थी, जो है। उस सरकार ने तो जीप पर माईक बांध करके, दिल्ली की झुग्गी-झोंपड़ी में गाड़ी घुमा करके लोगों को कहा, संकट बड़ा है भागो, गांव जाओ, घर जाओ। और दिल्ली से जाने के लिए बसें दीं…आधे रास्ते छोड़ दिया और सभी लोगों के लिए अनेक मुश्किलें पैदा कीं। और उसका कारण हुआ कि यूपी में, उत्तराखंड में, पंजाब में जिस कोरोना की इतनी गति नहीं थी, इतनी तीव्रता नहीं थी, इस पाप के कारण कोरोना ने वहां भी अपनी लपेट में ले लिया।
माननीय अध्यक्ष जी,
ये कैसी राजनीति है। मानव जाति पर संकट के समय ये कैसी राजनीति है? ये दलगत राजनीति कब तक चलेगी?
आदरणीय अध्यक्ष जी,
कांग्रेस के इस आचरण से सिर्फ मैं ही नहीं, पूरा देश अचंभित है। दो साल से देश सौ साल के सबसे बड़े संकट से मुकाबला कर रहा है। कुछ लोगों ने जिस प्रकार का व्यवहार किया देश जिससे इस सोच में पड़ गया है। क्या ये देश आपका नहीं है? क्या ये देश के लोग आपके नहीं हैं? क्या उनके सुख-दुख आपके नहीं हैं? इतना बड़ा संकट आया, कई राजनीतिक दल के नेता, जरा आप निरीक्षण करें, कितने राजनीतिक दल के नेता जो जनता के माने हुए नेता अपने-आपको मानते हैं, उन्होंने लोगों को रिक्वेस्ट की हो, अपील की हो…भई, कोरोना का एक ऐसा संकट है, वैश्विक महामारी है…आप मास्क पहनो, हाथ धोना रखो, दो गज़ की दूरी रखो। कितने नेता हैं…क्या ये बार-बार देश की जनता को अगर कहते तो उसमें बीजेपी की सरकार को क्या फायदा होने वाला था। मोदी को क्या फायदा होने वाला था। लेकिन इतने बड़े संकट में भी इतना सा पवित्र काम करने से भी चूक गए।
माननीय अध्यक्ष जी,
कुछ लोग हैं उनको ये इंतजार था कि कोरोना वायरस मोदी की छवि को चपेट में ले लेगा। बहुत इंतजार किया और कोरोना ने भी आपके धैर्य की बड़ी कसौटी की है। आए दिन आप लोग औरों को नीचा दिखाने के लिए महात्मा गांधी का नाम लेते हैं। महात्मा गांधी की स्वदेशी की बात इसको बार-बार दोहराने में हमें कौन रोकता है। अगर मोदी ‘वोकल फॉर लोकल’ कहता है, मोदी ने कहा इसलिए शब्दों को छोड़ दो भाई। लेकिन क्या आप नहीं चाहते हैं देश आत्मनिर्भर बने? जिस महात्मा गांधी के आदर्शों की बात करते हैं, तब भारत में इस अभियान को ताकत देने में, जुड़ने में आपका क्या जाता है? उसका नेतृत्व आप लीजिए। महात्मा गांधी जी के स्वदेशी के निर्णय को बढ़ाइए, देश का भला होगा। और हो सकता है आप महात्मा गांधी के सपनों को सच होते देखना नहीं चाहते हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
आज पूरी दुनिया योग के लिए, एक प्रकार से कोरोना में तो योग ने दुनियाभर में जगह बना ली। दुनियाभर में कौन हिन्दुस्तानी होगा जिसको योग के लिए गर्व न हो। आपने उसका भी मज़ाक उड़ाया, उसका भी विरोध किया। अच्छा होता आप लोगों को कहते, भई, संकट में घर में हैं, योगा कीजिए, आपको फायदा होगा…क्या नुकसान था। ‘फिट इंडिया मूवमेंट’ चले, देश का नौजवान सशक्त हो, सामर्थ्यवान हो, आपको मोदी से विरोध हो सकता है…’फिट इंडिया मूवमेंट’ आपके राजनीतिक दलों के छोटे-छोटे मंच होते हैं। अगर हम सबने मिल करके अगर ‘फिट इंडिया’ के द्वारा देश की युवा शक्ति को इस सामर्थ्य की तरफ आगे बढ़ने के लिए कहते, लेकिन उसका भी विरोध, उसका भी उपहास। यानी क्या हो गया है आपको, मुझे समझ नहीं आ रहा है और इसलिए मैं आज इसलिए कहता हूं कि आपको ध्यान में आए कि आप कहां खड़े हैं । और मैंने इतिहास बताया, 60 साल से लेकर 15 साल तक, पूरा कालखंड, इतने राज्य, कोई आपको घुसने नहीं दे रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
कभी-कभी मैं….ये विशेष बहुत प्यार से कह रहा हूं, नाराज मत हो जाना। मुझे कभी-कभी माननीय अध्यक्ष जी, एक विचार आता है…डनके बयानों से, उनके कार्यक्रमों से, उनकी करतूतों से…जिस प्रकार से आप बोलते हैं, जिस प्रकार से मुद्दों से जुड़ते हैं, ऐसा लगता है कि आपने मन बना लिया है कि सौ साल तक सत्ता में नहीं आना है। ऐसा नहीं करना जी, थोड़ी सी भी आशा होती, थोड़ा सा भी लगता कि हां देश की जनता फिर से फूलहार करेगी तो ऐसा नहीं करते जी। और इसलिए…खैर अब आपने ही तय कर लिया है 100 साल के लिए तो फिर मैंने भी तैयार कर लिया।
माननीय अध्यक्ष जी,
ये सदन इस बात का साक्षी है कि कोरोना वैश्चिक महामारी से जो स्थितियां उत्पन्न हुईं, उसको निपटने के लिए भारत ने जो भी रणनीति बनाई, उसको ले करके day one से क्या-क्या नहीं कहा गया। किस-किसने क्या बोला, आज वो खुद देखेंगे तो उनको हैरानी हो जाएगी ऐसा कैसे बुलवा लिया, किसने बुलवा लिया। पता नहीं क्या बोल दिए हम लोग। दुनिया के और लोगों से बड़ी-बडी कांफ्रेंस करके ऐसी बातें बुलवाई गईं ताकि पूरे विश्व में भारत बदनाम हो। खुद को टिके रहने के लिए, आर्थिक आयोजन को भारत कैसे चल रहा है, My God क्या कुछ कहा गया। बड़े-बड़े पंडितों ने देखा था, पूरी आपकी Ecosystem लग गई थी। हम जो भी समझते थे, भगवान ने जो भी समझ दी थी, लेकिन समझ से ज्यादा समर्पण बहुत बड़ा था जी। और जहां समझ से समर्पण ज्यादा होता है वहां देश और दुनिया को अर्पण करने की ताकत भी होती है। और वो हमने करके दिखाया है। और जिस रास्ते पर हम चले आज विश्व के अर्थ जगत के सभी ज्ञेता इस बात को मानते हैं भारत ने जिस आर्थिक नीतियों को लेकर इस कोरोना कालखंड में अपने-आपको आगे बढ़ाया वो अपने-आप में उदाहरणीय है। और अनुभव भी हम करते हैं, हमने देखा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
भारत आज दुनिया की जो बड़ी economies हैं उसमें सबसे तेजी से विकसित हो रही बड़ी अर्थव्यवस्था है।
माननीय अध्यक्ष जी,
इस कोरोना कालखंड में भी हमारे किसानों ने रिकॉर्ड पैदावार की, सरकार ने रिकॉर्ड खरीदी की। दुनिया के अनेक देशों में जहां खाने का संकट पैदा हुआ हो और आपको पता होगा सौ साल पहले जो आपदा आई थी, उसकी जो रिपोर्ट है, उसमें ये बात कही गई है कि बीमारी से मरने वालों की जैसी तादाद है वैसे ही भूख से मरने वालों की भी बड़ी तादाद है, उस समय की सौ साल पहले की रिपोर्ट में है। इस देश ने किसी को भूख से मरने नहीं दिया। 80 करोड़ से अधिक देशवासियों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया और आज भी करा रहे हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
हमारा total export historical highest level पर है। और ये कोरोना काल में है। कृषि export ऐतिहासिक चीजों पर top पर पहुंचा है। Software exports नयी ऊंचाई की तरफ बढ़ रहा है। Mobile Phone Export, अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। Defence Export, कईयों को परेशानी हो रही है। ये आत्मनिर्भर भारत का कमाल है कि आज देश Defence Export में भी अपनी पहचान बना रहा है। FDI और FDI…
माननीय अध्यक्ष जी,
सदन में थोड़ी बहुत टोका-टोकी तो आवश्यक होती है जरा गर्मी रहती है। लेकिन जब सीमा के बाहर भाग जाता है तो जरा लगता है कि हमारे साथी ऐसे हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
इनकी पार्टी के एक एमपी ने चर्चा की शुरुआत की थी और यहां से कुछ छोटा-मोटा नोक-झोंक चल रहा था। और मैं मेरे कमरे से स्क्रीन पर देख रहा था कि हमारे मंत्री पीछे गए, सबको रोका और वहां से चैलेंज आई कि अगर हमारे एक हो गए तो तुम्हारे नेता का ये हाल करेंगे। क्या इसी कारण ये हो रहा है क्या?
माननीय अध्यक्ष जी,
आप, आपने, आपको अब हर एक को अपना CR सुधारने की कोशिश तो करनी चाहिए। अब मैं मानता हूं कि जितना किया है उससे आपका CR ठीक हो गया है। जिन लोगों को रजिस्टर करना है आपके इस पराक्रम को कर लिया है जी, ज्यादा क्यों कर रहे हो? इस सत्र में से कोई आपको नहीं निकालेगा, विश्वास करो? इस सत्र में आपको कोई निकालने का नहीं, मैं आपको गारंटी देता हूं। इस जगह से अरे भई ऐसे ही बच गए हो।
माननीय अध्यक्ष जी,
FDI और FDI का रिकॉर्ड निवेश आज भारत में हो रहा है। Renewable Energy के क्षेत्र में आज हिन्दुस्तान दुनिया के top five countries में है।
माननीय अध्यक्ष जी,
ये सब इसलिए संभव हुआ है कि कोरोना काल में इतना बड़ा संकट सामने होने के बावजूद, अपने कर्तव्यों को निभाते हुए, इस संकट के काल में देश को बचाना है तो reform जरूरी थीं। और हमने वो जो reform किये, उसके परिणाम है कि आज हम इस तरीके से इस स्थिति पर आ कर के पहुंचे हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
MSMEs सहित हर उद्योग को जरूरी सपोर्ट दी। नियमों को, प्रक्रियाओं को सरल किया। आत्मनिर्भर भारत का जो मिशन है उसको हमने ये चरितार्थ करने के लिए भरपूर कोशिश की। ये सारी उपलब्धियां ऐसे हालात में देश ने हासिल की हैं जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, आर्थिक जगत में बहुत बड़ी उथल-पुथल आज भी चल रही है। सप्लाई चेन पूरी तरह चरमरा गई है। Logistic Support में संकट पैदा हुए। दुनिया में सप्लाई चेन की वजह से केमिकल फर्टिलाइजर पर कितना बड़ा संकट आया है और भारत आयात करने पर dependent है। कितना बड़ा आर्थिक बोझ देश पर आया है। पूरी विश्व में हालात पैदा हुए लेकिन भारत ने किसानों को इस पीड़ा को झेलने के लिए मजबूर नहीं किया। भारत ने, सारा बोझ देश ने अपने कंधों पर उठाया और किसान को transfer नहीं होने दिया है। भारत ने फर्टिलाइजर की सप्लाई को भी निरंतर जारी रखा है। कोरोना के संकट काल में भारत ने अपनी खेती को अपने छोटे किसानों को संकट से बाहर निकालने के लिए बड़े फैसले लिये। मैं कभी-कभी सोचता हूं, जो लोग जड़ों से कटे हुए लोग हैं, दो-दो चार-चार पीढ़ी से महलों में बैठने की आदत हो गई है, वो देश के छोटे किसानों की क्या समस्या है, वो समझ ही नहीं पाए हैं। उनके अगल-बगल में जिन किसानों की उनकी पहुंच थी, उससे आगे देख नहीं पाए हैं। और कभी ऐसे लोगों को पूछना चाहता हूं कि छोटे किसानों की प्रति आपकी इतनी नफरत क्यों है? क्या आप छोटे किसानों के कल्याण के लिये, आप रोड़े अटकाते रहते हो। छोटे किसानों को इस संकट में डालते हो।
माननीय अध्यक्ष जी,
अगर गरीबी से मुक्ति चाहिए तो हमें हमारे छोटे किसानों को मजबूत बनाना होगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना है, तो हमारे छोटे किसानों को मजबूत बनाना होगा। अगर हमारा छोटा किसान मजबूत होता है, छोटी सी जमीन होगी दो हेक्टेयर की भूमि होती तो भी उसकी आधुनिक करने का वो प्रयास करेगा, नया सीखने का प्रयास करेगा और उसकी ताकत आएगी तो देश की अर्थ रचना को भी ताकत मिलेगी। और इसलिए आधुनिकता के लिये छोटे किसानों की तरफ ध्यान देने का मेरा प्रयास है। लेकिन छोटे किसानों के प्रति जिन लोगों के मन में नफरत है, जिन्होंने छोटे किसानों को दुख-दर्द नहीं जाना है, उनको किसानों के नाम पर अपनी राजनीति करने का कोई हक नहीं बनता है।
माननीय अध्यक्ष जी,
इस बात को हमें समझना होगा 100 करोड़ वर्षों का गुलामी कालखंड उसकी जो मानसिकता है, वो आजादी के 75 साल के बाद भी कुछ लोग बदल नहीं पाए हैं। वो गुलामी की मानसिकता किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिये बहुत बड़ा संकट होती है।
लेकिन माननीय अध्यक्ष जी,
आज देश का मैं एक चित्र देखता हूं। एक ऐसा समुदाय, एक ऐसा वर्ग है आज भी वो गुलामी की वो मानसिकता में जीता है। आज भी 19वीं सदी के काम उस सोच, उनसे वो जकड़ा हुआ है और 20वीं सदी के जो कानून हैं वहीं कानून उसको कानून लगते हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
गुलामी की मानसिकता, इन 19वीं सदी का रहन-सहन, 20वीं सदी के कानून, 21वीं सदी की आकांक्षाएं पूरी नहीं कर सकते। 21वीं सदी के अनुकूल हमें बदलाव बहुत जरूरी है।
माननीय अध्यक्ष जी,
जिस बदलाव को हमने अस्वीकार किया उसका परिणाम क्या आया? Freight Corridor इतने मनोमन चंद के बाद, कई वर्षों तक, उसके बाद योजना हुई। 2006 में प्लानिंग, 2006 से 2014 तक का उसका हाल देखिए। 2014 के बाद उसकी तेजी आई। यूपी में सरयू नहर परियोजना, 70 के दशक में शुरू हुई और उसकी लागत 100 गुना बढ़ गई। हमारे आने के बाद हमने उस काम को पूरा किया। ये कैसी सोच है? यूपी का अर्जुन डैम परियोजना 2009 में शुरू हुई। 2017 तक एक-तिहाई खर्चा हुआ। हमने इतने कम समय में इसको पूरा कर दिया। अगर कांग्रेस के पास इतनी सत्ता थी, इतने सालों तक सत्ता थी तो चार धाम को all weather सड़कों में परिवर्तित कर सकती थी, जोड़ सकते थे लेकिन नहीं किया। Waterway, सारी दुनिया waterway को समझती है, हमारा ही एक देश था कि हमने waterway को नकार दिया। आज हमारी सरकार को waterway पर काम चल रहा है। पुरानी अप्रोच से गोरखपुर का कारखाना बंद होता था, हमारी अप्रोच से गोरखपुर का फर्टिलाइजर का कारखाना शुरू हुआ है।
माननीय अध्यक्ष जी,
ये लोग ऐसे हैं जो जमीन से कटे हुए हैं जिसके कारण उनके लिये फाईल की मूवमेंट, फाईल में सिग्नेचर कर दिये, कौन है, क्या मुलाकात के लिये आएगा उसी के इंतजार में वो रहते हैं। आपके लिये फाईल सब कुछ है, हमारे लिये 130 करोड़ देशवासियों का लाभ महत्वपूर्ण है। आप फाईल में खोए रहे, हम लाईफ बदलने के लिऐ जी-जान से जुटे हुए हैं। आज उसी का परिणाम है प्रधानमंत्री गति शक्ति मास्टर प्लान एक holistic approach, टुकड़ों में नहीं, एक आधा काम वहां आ रहा है, रोड बन रहा है फिर बिजली वाला आकर के खुदाई करता है। वो चीज ठीक होता है फिर पानी वाला आकर के खुदाई करता है। उस सारी समस्याओं से बाहर आकर के हमने डिस्ट्रिक लेवल तक गति शक्ति मास्टर प्लान की दिशा में हम काम कर रहे हैं। उसी प्रकार से हमारा देश की विशेषता को देखते हुए multimodal transport system, उस पर हम बड़ा जोर दे रहे हैं और कनक्टिवीटी पर इसके आधार पर हम जोर दे रहे हैं। आजादी के बाद सबसे तेज गति से ग्रामीण सड़के कहीं बन रहीं हैं तो वो इस पांच साल के कालखंड में बनी हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
नेशनल हाईवे बन रहे हैं। रेलवे लाईनों का बिजलीकरण हो रहा है। आज देश नए airports, heliports और water drone का नेटवर्क खड़ा कर रहा है। देश के 6 लाख से अधिक गांव में optical fibre network का काम चल रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
ये सारे काम ऐसे हैं, जो रोजगार देते हैं। ज्यादा से ज्यादा रोजगार इन्हीं कामों से मिलता है। आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर आज देश की आवश्यकता है और अभूतपूर्व निवेश भी हो रहा है और उसी से रोजगार भी बन रहा है, विकास भी बन रहा है और विकास की गति भी बन रहा है। और इसलिए आज देश उस दिशा में काम कर रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
जितनी ज्यादा अर्थव्यवस्था grow करेगी, उतने ही रोजगार के अवसर पैदा होंगे। और इसी लक्ष्य को लेकर के पिछले सात साल से हमने इन चीजों पर फोकस किया है। और उसका परिणाम है हमारा आत्मनिर्भर भारत अभियान। Manufacturing हो या service sector हो, हर sector में हमारा उत्पाद बढ़ रहा है, उत्पादन बढ़ रहा है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के द्वारा हम आज global value chain का हिस्सा बन रहे हैं। ये अपने आप में भारत के लिये एक अच्छी निशानी है। हमारा बड़ा फोकस MSME और textile जैसे labour sector में है। MSME की बड़ी व्यवस्था में सुधार, MSME की परिभाषा में हमने सुधार करके उसको भी नए अवसर दिये हैं। अपने छोटे उद्योगों को सुरक्षित करने के लिये MSMEs के लिए सरकार ने इस कोरोना के विकट कालखंड में तीन लाख करोड़ रुपये की विशेष योजना भी शुरू की है और उसका लाभ हमारा MSME सेक्टर को मिला है। और इसका बहुत बढ़िया स्टडी एसबीआई ने किया है। SBI का स्टडी कहता है कि साढ़े तेरह लाख MSMEs इस योजना के कारण बर्बाद होने से बच गए हैं और एसबीआई का स्टडी कहता है डेढ़ करोड़ नौकरियां बची हैं और करीब 14 प्रतिशत MSME Loans के कारण NPA होने की जो संभावना थी, उससे बच गए हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
जो सदस्य जमीन पर जाते हैं, वो इसको प्रभाव को देख सकते हैं। विपक्ष के भी कई साथी मुझे भेजते हैं, कहते हैं कि साहब ये योजना ने बहुत बड़ा लाभ किया है। MSME सेक्टर को इस संकट की घड़ी में बहुत बड़ा सहारा दिया है।
माननीय अध्यक्ष जी,
उसी प्रकार से मुद्रा योजना कितनी सफल रही है, हमारी माताएं-बहनें कितनी इस क्षेत्र में आई हैं। लाखों लोग बिना गारंटी बैंक से लोन लेकर के आज अपना स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़े हैं और खुद तो करते हैं, एक-आद दो लोगों को रोजगार भी देते हैं। स्वनिधी योजना, स्ट्रीट वेंडर्स कभी हमने सोचा नहीं, पहली बार आजादी के बाद स्ट्रीट वेंडर्स को बैंक के अंदर से लोन मिल रहा है और आज स्ट्रीट वेंडर्स डिजिटल ट्रांजेक्शन कर रहे हैं और करोड़ों श्रमिकों को लाभ मिल रहा है। हमने गरीब श्रमिकों के लिये दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किये हैं। आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना के तहत हजारों लाभार्थियों के खातों में हमने सीधा पैसे ट्रांस्फर किये हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
इंडस्ट्री को गति देने के लिये बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की बहुत जरूरत होती है। PM गति शक्ति मास्टर प्लान ये हमारे लॉजिस्टिक cost को बहुत कम कर देगा। और इसके कारण देश में भी माल सस्ते में पहुंच पाएगा और एक्सपोर्ट करने वाले लोग भी दुनिया के साथ कॉम्पिटिशन कर पाएंगे। और इसलिये PM गति शक्ति प्लान आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभकारक होने वाला है।
माननीय अध्यक्ष जी,
सरकार ने एक और बहुत बड़ा काम किया है, नये क्षेत्रों को, entrepreneurs को उसके लिये हमने open कर दिया है। आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत स्पेस, डिफेंस, ड्रोंस, माइनिंग को प्राइवेट सेक्टर को आज देश के विकास में भागीदार बनने के लिये हमने निमंत्रित किया है। देश में entrepreneurs के लिये बेहतर माहौल बनाने के लिये सिम्पल टैक्स सिस्टम की शुरुआत हजारों कम्पलाइंसिस, हमारे देश में आधा देश तो हर डिपार्टमेंट, ये लाओ वो लाओ, ये कागज लाओ वो लाओ, वो सारा करीब 25 हजार कम्पलाइंसिस हमने खत्म किये हैं। आज मैं तो राज्य से भी आग्रह करूंगा कि वे भी ढूंढ-ढूंढ करके ऐसे कम्पलाइंसिस खत्म करें। देश के नागरिकों को परेशानी हो रही है, उसको समझिये आप लोग। आज देश में इस प्रकार के बैरियर्स हटाये जा रहे हैं। Domestic industry को level देने के लिये एक के बाद एक कदम हम उठाते जा रहे हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
आज देश उस पुरानी अवधारणा से बाहर निकल रहा है, हमारे देश में ये सोच बन गई है कि सरकार ही भाग्य विधाता है, तुम्हें सरकार पर ही निर्भर रहना पड़ेगा, तुम्हारी आशा-आकांक्षाओं को कोई पूरा नहीं कर सकता है, सरकार ही करेंगी, सब कुछ सरकार ही देगी। ये हम लोग इतना ego पाल करके रखा था और इसके कारण देश के सामर्थ्य को भी चोट पहुंची है। और इसलिये सामान्य युवा के सपने, युवा कौशल, उसके रास्ते, हमने नए सिरे से सोचना शुरू किया। सब कुछ सरकार करती है, ऐसा नहीं है। देशवासियों की ताकत अनेक गुना ज्यादा होती है। वो सामर्थ्य के साथ अगर संकट के साथ जुड़ जाते हैं, तो परिणाम मिलता है। आप देखिये 2014 के पहले, हमारे देश में सिर्फ 500 र्स्टाट अप थे, जब अवसर दिया जाता है देश के नौजवानों को तो क्या परिणाम आता है, इन सात साल में 2014 के पहले 500 र्स्टाट अप, इस सात साल में 7000 र्स्टाट अप इस देश में काम कर रहे हैं। ये मेरे देश के युवाओं की ताकत है। और इसमें यूनिकॉर्न बन रहे हैं और एक-एक यूनिकॉर्न यानी हजारों करोड़ की उसकी वैल्यू तय हो जाती है।
माननीय अध्यक्ष जी,
और बहुत ही कम समय में भारत के यूनिकॉर्न सेंचुरी बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, ये बहुत बड़ा है । हजारों करोड़ की कंपनी बनने में पहले दशकों लग जाते थे। आज हमारे नौजवानों की ताकत है, सरकार की नीतियों के कारण साल दो साल के अंदर हजारों करोड़ को, कारोबार को उनके आस-पास वो देख पा रहे हैं।
और माननीय अध्यक्ष जी,
हम र्स्टाटअपस यूनिकॉर्नस में इस मामले में, दुनिया में टॉप 3 में पहुंच गए हैं। कौन हिन्दुस्तानी होगा जिसको गर्व नहीं होगा? लेकिन ऐसे समय इस सरकार का अंतर्विरोध करने की इनको आदत लग गई है। सुबह-सुबह शुरू हो जाते हैं और यहां मैंने देखा हमारे आदरणीय जी बता रहे थे, क्या तुम मोदी, मोदी, मोदी, मोदी करते रहते हो, हां यही कह रहे थे ना! और सब लोग मोदी, मोदी, मोदी बोल रहे हैं, आप भी बोल रहे हैं। आप लोग सुबह होते ही शुरू हो जाते हैं। एक पल आप लोग पल मोदी के बगैर नहीं बिता सकते। अरे मोदी तो आपकी प्राणशक्ति है।
और माननीय अध्यक्ष जी,
कुछ लोग देश के नौजवानों को, देश के entrepreneurs को, देश के बेस्ट क्रियेटर्स को उनको डराने आनंद आता है। उनको भयभीत करने में भी आनंद आ जाता है। उनको पूर्वाग्रह करने में आनंद आता है। देश का नौजवान उनकी बातें सुन नहीं रहा है, इसके कारण देश आगे बढ़ रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
आज जो यूनिकॉर्न हैं, यही उसमें से कुछ multinational कंपनियां बनने का सामर्थ्य रखती है। लेकिन कांग्रेस में ऐसे लोग बैठे हैं जो कहते हैं जो हमारे उद्यमी हैं उनके लिये कहते हैं और आपको भी जानकर के आश्चर्य होगा, क्या कहते हैं, वो कहते हैं ये उद्यमी लोग कोरोना वायरस का वेरिएंट बताइए क्या हो गया है? हमारे देश के उद्योग ये कोरोना वायरस के वेरिएंट हैं क्या? हम क्या बोल रहे हैं, किसके लिये बोल रहे हैं? कोई जरा आपके अंदर बैठे तो जरा बोलो तो सही ये क्या हो रहा है? पार्टी का नुकसान हो रहा है, कांग्रेस पार्टी का नुकसान हो रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते हैं, वो इतिहास में खो जाते हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
ये मैं इसलिये कह रहा हूं, जरा 60 से 80 दशक का, उनके सभी प्रमुख लोग उसमें आ जाते हैं जो देश का नेतृत्व करते थे उस कालखंड की बात कर रहा हूं। 60 से 80 के दशक में कांग्रेस ही होता था, कांग्रेस के ही सत्ता साथी कांग्रेस के साथ रहकर के सुख भोगने वाले लोग ये वही लोग पंडित नेहरू जी की सरकार को और श्रीमती इंदिरा गांधी जी की सरकार को क्या कहते थे, ये तो टाटा-बिरला की सरकार है, ये सरकार को तो टाटा-बिरला चला रहे हैं। 60 से 80 दशक तक यही बातें बोली जाती थी, नेहरू जी के लिये बोली जाती थी, इंदिरा जी के लिये बोली जाती थी। और आपने उनके साथ भागीदारी की सत्ता में लेकिन उनकी आदतें भी ले ली। आप भी उसी भाषा को बोल रहे हो। मैं देख रहा हूं, आप इतने नीचे गए हो, इतने नीचे गए हो, हां मुझे लगता है कि आज पंचिंग बैग बदल गया है लेकिन आपकी आदत नहीं बदली है। मुझे विश्वास है कि यही लोग सदन में कहने की हिम्मत रखते थे, बाहर तो बोलते ही थे, जहां मौका मिले चुप नहीं रहते थे। वो कहते हैं मेक इन इंडिया हो ही नहीं सकता but अब उसमें आनंद आ रहा है। कोई ऐसा हिन्दुस्तान के लिये सोच सकता है क्या? कि मेक इन इंडिया हो ही नहीं सकता। अरे भई, आपको तकलीफ होती थी हम आकर के करेंगे, ठीक है ऐसा बोलो। देश को क्यों गाली देते हो। देश के खिलाफ क्यों बोलते हो? मेक इन इंडिया हो नहीं सकता। मेक इन इंडिया का मजाक उड़ाया गया। और आज देश की युवा शक्ति ने, देश के entrepreneur ने करके दिखाया है, आप मजाक का विषय बन गये हो। और मेक इन इंडिया की सफलता आप लोगों को कितना दर्द दे रही है, ये मैं भली भांति समझ पा रहा हूं।
माननीय अध्यक्ष जी,
मेक इन इंडिया से कुछ लोग को तकलीफ इसलिए है क्योंकि मेक इन इंडिया का मतलब है कमीशन के रास्ते बंद, मेक इन इंडिया का मतलब है भ्रष्टाचार के रास्ते बंद, मेक इन इंडिया का मतलब है तिजोरी भरने के रास्ते बंद। और इसलिए मेक इन इंडिया का ही विरोध करो। भारत के लोगों को सामर्थ्य का नजरअंदाज करने का पाप देश के लघु उद्यमियों के सामर्थ्य का अपमान, देश के युवाओं का अपमान, देश की इनोवेटिव क्षमता का अपमान।
माननीय अध्यक्ष जी,
देश के इस प्रकार का नकारात्मकता का, निराशा का वातावरण, खुद निराश हैं, खुद सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए देश को असफल करने के लिये जो खेल चल रहे हैं, उसके खिलाफ देश का नौजवान बहुत जाग चुका है, जागरूक हो चुका है।
माननीय अध्यक्ष जी,
पहले जो सरकार चलाते थे जिन्होंने 50 साल तक देश की सरकारें चलाई। मेक इन इंडिया को लेकर उनका क्या विवेक था, सिर्फ डिफेंस सेक्टर को हम देखें तो सारी बातें समझ आती थी कि वो क्या करते थे, कैसे करते थे, क्यों करते थी और किसके लिए करते थे। पहले सालों में क्या होता था नए equipment खरीदने के लिए प्रोसेस चलती थी। सालों तक चलती थी। और जब फाइनल निर्णय होता था तो वो चीज पुरानी हो जाती थी। अब बताइए, देश का क्या भला? outdated हो जाती थी और हम पैसे देते थे। हमने इन सारी प्रोसेस को simplify किया। सालों से pending defence sector के जो issue थे, उसको हमने निपटाने का प्रयास किया। पहले किसी भी आधुनिक प्लेटफार्म या equipment के लिए हमें दूसरे देशों की तरफ देखना पड़ता था। जरूरत के समय आपाधापी में खरीदा जाता था, ये लाओ वो लाओ! कौन पूछता है भई, हो गया! यहां तक कि स्पेयर पार्टस के लिए भी हम अन्य देशों पर निर्भर रहे हैं। दूसरों पर निर्भर होकर इस देश की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं। हमारे पास यूनिक व्यवस्था होनी चाहिए, हमारी अपनी व्यवस्था होनी चाहिए। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना, ये राष्ट्र सेवा का भी एक बहुत बड़ा काम है और आज मैं देश के नौजवानों को भी आह्वान करता हूं कि आप अपने career में इस क्षेत्र को चुनिए। हम ताकत के साथ खड़े होंगे।
माननीय अध्यक्ष जी,
इस बजट में भी हमने ज्यादा से ज्यादा रक्षा उपकरण भारत में ही बनाएंगे। भारतीय कंपनियों से ही खरीदेंगे, ये बजट में प्रावधान किया है। बाहर से लाने के रास्ते बंद करने की दिशा में हमने किया है। हमारी सेनाओं की जरूरत पूरी होने के अलावा हम एक बड़े डिफेंस एक्सपर्ट भी बनने का सपना लेकर के चल रहे हैं और मुझे विश्वास है ये संकल्प पूरा होगा। मैं जानता हूं कि रक्षा सौदा में कितनी बड़ी ताकतें पहले अच्छे-अच्छों को खरीद लेती थी, ऐसी ताकतों को मोदी ने चुनौती दी है। और इसलिए मोदी पर उस दिन नाराजगी नहीं, गुस्सा होना भी बहुत स्वाभाविक है। और उनका गुस्सा प्रकट भी होता रहता है।
माननीय अध्यक्ष जी,
विपक्ष से हमारे कुछ साथियों ने यहां महंगाई का मुद्दा भी उठाया। अच्छा लगता देश का भी भला होता अगर आपको ये चिंता तब भी होती जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। ये दर्द उस समय भी होना चाहिए था। आप शायद भूल गए, मैं जरा आपको याद दिलाना चाहता हूं। कांग्रेस सरकार के आखिरी पांच सालों में, लगभग पूरे कार्यकाल में देश को डबल डिजिट महंगाई की मार झेलनी पड़ी थी। हमारे आने से पहले ये स्थिति थी। कांग्रेस की नीतियां ऐसी थी कि सरकार खुद मानने लगी थी कि महंगाई उसके नियंत्रण से बाहर है। 2011 में तत्कालीन वित्त मंत्री जी ने लोगों से बेशर्मी के साथ कह दिया था कि महंगाई कम करने के लिए किसी अलादीन की जादू की उम्मीद ना करें। ये आपके नेताओं की असंवेदनशीलता। हमारे चिदंबरम जी, जो कि इन दिनों इकोनॉमी पर अखबारों में लेख लिखते हैं, जब सरकार में थे तब क्या कहते थे, उस समय के नेता क्या कहते थे आपके, वो कहते थे, 2012 में इन्होंने कहा था कि लोगों को 15 रुपये की पानी की बोतल और 20 रुपये की आइसक्रीम खरीदने में तकलीफ नहीं होती लेकिन गेहूं-चावल पर एक रुपया बढ़ जाए, तो बर्दाश्त नहीं होता। ये आपके नेताओं के बयान, यानी महंगाई के प्रति कितना असंवेदशील रवैया था। ये चिंता का कारण है।
माननीय अध्यक्ष जी,
महंगाई देश के सामान्य मानवीय से सीधा जुड़ा हुआ मुद्दा है। और हमारी सरकार ने, एनडीए सरकार ने पहले दिन से सतर्क और संवेदनशील रहकर के इस मसले को बारीकी से फाइनल करने का प्रयास किया है। और इसलिए हमारी सरकार महंगाई नियंत्रण को अपनी वित्तीय पॉलिसी का प्राथमिक लक्ष्य बनाया हमने।
माननीय अध्यक्ष जी,
सौ साल में आई इतनी बड़ी महामारी को इस काल खंड में भी हमने प्रयास किया कि महंगाई और जरूरी चीजों की कीमत आसमान ना छुएं। सामान्य मानवीय के लिए, माननीय अध्यक्ष जी, महंगाई आज जरूरी चीजों की कीमत आसमान ना छुएं। सामान्य मानवीय के लिए, खासकर गरीब के लिए, महंगाई बर्दाश्त की सीमा से बाहर ना हो और महंगाई को नियंत्रण में रखने के लिए हमने क्या किया ये आंकड़े खुद बता रहे हैं। कांग्रेस की जहां महंगाई दर डबल डिजिट में थी, 10 प्रतिशत से ज्यादा थी वहीं 2014 से 2020 तक महंगाई 5 प्रतिशत से कम रही है। कोरोना के बावजूद इस साल महंगाई 5.2 प्रतिशत रही है और उसमें भी फूड इन्फ्लेशन 3 प्रतिशत से कम रही है। आप अपने समय में वैश्विक परिस्थितियों की दुहाई देकर पल्ला झाड़ लेते थे। वैसे महंगाई पर कांग्रेस के राज में पंडित नेहरू जी ने लाल किले से क्या कहा, वो जरा आपको मैं बताना चाहता हूं, पंडित नेहरू! देश के पहले प्रधानमंत्री, लाल किले से बोल रहे हैं! देखिए, आपकी इच्छा रहती है ना कि मैं पंडित जी का नाम नहीं लेता हूं, आज मैं बार-बार बोलने वाला हूं। आज तो नेहरू जी ही नेहरू जी! मजा लीजिए आज! आपके नेता कहेंगे मजा आ गया!
माननीय अध्यक्ष जी,
पंडित नेहरू जी ने लाल किले पर से कहा था और ये उस जमाने में कहा गया था तब ग्लोबलाइजेशन इतना नहीं था, नाम मात्र का भी नहीं था। उस समय, नेहरू जी लाल किले से देश को सम्बोधन करते हुए क्या कह रहे हैं, कभी-कभी कोरिया में लड़ाई भी हमें प्रभावित करती है। इसके चलते वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। ये थे नेहरू जी! भारत के पहले प्रधानमंत्री! कभी-कभी कोरिया में लड़ाई भी हमें प्रभावित करती है। इसके चलते वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं और यह हमारे नियंत्रण से भी बाहर हो जाती हैं। देश के सामने, देश का पहला प्रधानमंत्री हाथ ऊपर कर देता है। आगे क्या कहते हैं, देखो जी आपके काम की बात है। आगे कहते हैं, पंडित नेहरू जी आगे कहते हैं अगर अमेरिका में भी कुछ हो जाता है तो इसका असर वस्तुओं की कीमत पर पड़ता है। सोचिए, तब महंगाई की समस्या कितनी गंभीर थी कि नेहरू जी को लाल किले से देश के सामने हाथ ऊपर करने पड़े थे, नेहरू जी ने तब कहा था।
माननीय अध्यक्ष जी,
अगर कांग्रेस सरकार आज सत्ता में होती तो आज देश का नसीब है। देश बच गया, लेकिन आज अगर आप होते तो महंगाई कोरोना के खाते में जमाकर के झाड़ करके निकल जाते आप लोग। लेकिन हम बड़ी संवेदनशीलता के साथ इस समस्या को महत्वपूर्ण समझकर के उसके समाधान के लिए पूरी ताकत से काम कर रहे हैं। आज दुनिया में अमेरिका और OECD देशों में महंगाई सात प्रतिशत है, करीब-करीब सात प्रतिशत। लेकिन माननीय अध्यक्ष जी, हम किसी पर ठीकरा फोड़कर के भाग जाने वालों में से नहीं हैं। हम ईमानदारी से प्रयास करने वालों में हैं जिम्मेवारी के साथ देशवासियों के साथ खड़े रहने वाले लोगों में हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
इस सदन में गरीबी कम करने के भी बड़े-बड़े आंकड़े दिये गए लेकिन एक बात भूल गए। इस देश का गरीब इतना विश्वासघाती नहीं है। इस देश का गरीब इतना विश्वासघाती नहीं है कि कोई सरकार उसकी भलाई के काम करे और वो फिर उसको ही सत्ता से बाहर करे, ये देश के गरीब के स्वभाव में नहीं है। आपकी ये दुर्दशा इसलिए आई क्योंकि आपने मान लिया था नारे दे करके गरीबों को अपने चुंगल में फंसाए रखोगे, लेकिन गरीब जाग गया, गरीब आपको जान गया। इस देश का गरीब इतना जागरूक है कि आपको 44 सीटों पर समेट दिया। 44 सीट पर आ करके रोक दिया। कांग्रेस 1971 से गरीबी हटाओ के नारे पर चुनाव जीतती रही थी। 40 साल बाद गरीबी तो हटी नहीं, लेकिन कांग्रेस सरकार ने नई परिभाषा दे दी।
माननीय अध्यक्ष जी,
देश के नौजवानों ने इन बातों को जानना बहुत जरूरी है और अध्यक्ष जी, आप देखिए कि ये डिस्टर्ब तब करते हैं, तुमको अंदाज आता है चोट बड़ी गहरी होने वाली है। उनको मालूम है कि मुसीबत में फंसे हैं आज। और कुछ लोग बोलकर भाग जाते हैं और झेलना इन बेचारों को पड़ता है।
माननीय अध्यक्ष जी,
40 साल बाद गरीबी तो नहीं हटी, लेकिन गरीबों ने कांग्रेस को हटा दिया। और कांग्रेस ने क्या किया…माननीय अध्यक्ष जी, कांग्रेस ने गरीबी की परिभाषा बदल दी। 2013 में एक ही झटके में उन्होंने कागज पर कमाल करके 17 करोड़ गरीब लोगों को अमीर बना दिया। ये कैसे हुआ, इसकी सच्चाई देश के युवाओं को पता होना चाहिए। मैं आपको उदाहरण देता हूं- आपको मालूम है हमारे देश में पहले रेलवे में फर्स्ट क्लास, सेकेंट क्लास, थर्ड क्लास होता था। जो फर्स्ट क्लास होता था, एक लाईन लिखी रहती थी दरवाजे के बगल में, सेकेंट क्लास में दो लिखी रहती थी, थर्ड क्लास में तीन। इनको लगा ये थर्ड क्लास वाला मैसेज ठीक नहीं है तो उन्होंने एक लाइन निकाल दी। ये इनके तरीके हैं सही में और उनको लगता है कि गरीबी हट गई और उन्होंने सारे उसके बेसिक known बदल करके कह दिया 17 करोड़ गरीब नहीं गिने जाएंगे। इस प्रकार से आंकड़े बदलने का काम वो करते रहे हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
यहां कुछ तात्विक मुद्दों को उठाने की कोशिश की। मैंने तो समझने की बहुत कोशिश की। शायद कोई समझ पाया हो, ऐसा तो कोई मुझे अभी कोई मिला नहीं है। लेकिन जो कोई समझ पाया हो तो मैं समझने के लिए तैयार हूं। ऐसी-ऐसी कुछ बातें speak out तो। माननीय अध्यक्ष जी, सदन में राष्ट्र को लेकर बातें हुई हैं। ये बातें हैरान करने वाली हैं। मैं मेरी बात रखने से पहले एक बात दोहराना चाहता हूं। और मैं कोट कर रहा हूं,
”ये जानकारी बेहद हैरत में डालने वाली है कि बंगाली, मराठे, गुजराती, तमिल, आंध्र, उड़िया, असमी, कन्नड़, मलयाली, सिंधी, पंजाबी, पठान, कश्मीरी, राजपूत और हिन्दुस्तानी भाषा-भाषी जनता से बसा हुआ विशाल मध्य भाग कैसे सैंकड़ों वर्षों से अपनी अलग पहचान बनाए है। इसके बावजूद इन सबके गुण-दोष कमोबेश एक से हैं। इसकी जानकारी पुरानी परम्परा और अभिलेखों से मिलती है। साथ ही इस पूरे दौरान वे स्पष्ट रूप से ऐसे भारतीय बने रहे, जिनकी राष्ट्रीय विरासत एक ही थी और उनकी नैतिक और मानसिक विशेषताएं भी समान थीं।”
अध्यक्ष महोदय,
हम भारतीयों की इस विशेषता को बताते हुए इस कोटेशन में दो शब्द गौर करने वाले हैं- ‘राष्ट्रीय विरासत’ और ये कोट पंडित नेहरू जी का है। ये बात कही जी नेहरू जी ने और अपनी किताब ‘भारत की खोज’ में है। हमारी राष्ट्रीय विरासत एक है। हमारे नैतिक और मानसिक विशेषताएं एक हैं, क्या बिना राष्ट्र के ये संभव है। इस सदन का ये कहकर भी अपमान किया गया कि हमारे संविधान में ‘राष्ट्र’ शब्द नहीं आता। संविधान की प्रस्तावना में लिखा ‘राष्ट्र’ पढ़ने में न आए, ये हो नहीं सकता। कांग्रेस ये अपमान क्यों कर रही है मैं इस पर विस्तार से अपनी बात रखूंगा।
माननीय अध्यक्ष जी,
‘राष्ट्र’ कोई सत्ता या सरकार की व्यवस्था नहीं है। माननीय अध्यक्ष जी, हमारे लिए ‘राष्ट्र’ एक जीवित आत्मा है। और इससे हजारों साल से देशवासी जुड़े हुए हैं और जूझते रहे हैं। हमारे यहां विष्णु पुराण में कहा गया है, ये किसी पार्टी वाले ने नहीं लिखा है- विष्णु पुराण में कहा गया है
उत्तरम यश समुदक्षय हिमावरे चरु दक्षिणम
वर्षतत भारतम नाम भारत यत्र संतित
यानी समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उनकी संतानों को भारतीय कहते हैं। विष्णु पुराण का ये श्लोक अगर कांग्रेस के लोगों को स्वीकार्य नहीं है तो मैं एक और कोट इस्तेमाल करूंगा। क्योंकि कुछ चीजों से आपको एलर्जी हो सकती है। मैं कोट कह रहा हूं- ”एक क्षण आता है मगर इतिहास में विरल ही आता है। जब हम पुराने से बाहर निकलकर नए युग में कदम रखते हैं। जब एक युग समाप्त हो जाता है, जब एक देश की लंबे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है।” ये भी नेहरू जी के ही बोल हैं। आखिर किस नेशन की बात नेहरू जी कर रहे थे जी। ये नेहरू जी कह रहे हैं।
और माननीय अध्यक्ष जी
यहां तमिल सेंटिमेंट को आग लगाने की भारी कोशिश की गई। राजनीति के लिए कांग्रेस की जो परम्परा अंग्रेजों की विरासत में आई दिखती है, ‘तोड़ो और राज करो, बांटो और राज करो’। लेकिन मैं आज तमिल भाषा के महाकवि, माननीय अध्यक्ष जी, तमिल भाषा के महाकवि और स्वतंत्रता सेनानी आदरणीय सुब्रह्मण्यम भारती ने जो लिखा था, मैं यहां दोहराना चाहता हूं- तमिल भाषी लोग मुझे क्षमा करें मेरे उच्चारण में कोई गलती हो तो। लेकिन मेरा आदर और मेरी भावना में कोई कमी नहीं है। सुब्रह्मण्यम भारती जी ने कहा था-
मनुम इमये मले एंगल मले, पनरुम उपनिक नुलेंगल दुले
पारमिसे एदोरू नुलइदहू पोले, पोनेरो भारत नाडेंगन नाड़े
पोडरूओम इते इम्मकिलेड़े
इसका भावार्थ है जो उपलबध है, वो इस तरह का है- सुब्रह्मण्यम भारती जी कहते हैं- जो उन्होंने तमिल भाषा में कहा है, उसको मैं अनुवाद, जो भाव मुझे उपलब्ध हुआ है मैं कह रहा हूं- सम्मानित जो सकल विश्व में, महिमा जिनकी बहुत रही है। अमर ग्रंथ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है। सुब्रह्मण्यम भारती कह रहे हैं- गायेंगे हम यश हम सब इसका, यह है स्वर्णिम देश हमारा आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा। ये सुब्रह्मण्यम भारती जी की कविता का भाव है। ये वो संस्तुति है और मैं आज तमिल के सब नागरिकों को सैल्यूट करना चाहूंगा।
जब हमारे सीडीएस रावत दक्षिण में हेलिकॉप्टर के अकस्मात में उनका निधन हुआ और जब उनका बॉडी तमिलनाड़ में हवाई अड़डे की तरफ ले जाने के लिए रास्ते में से गुजर रहा था, मेरे तमिल भाई, मेरी तमिल बहनें लाखों की संख्या में घंटों तक कतार में खड़ी रही थीं रोड पर। संदेश में इंतजार करते खड़ी रहीं थीं और जब सीडीएस रावत का बॉडी वहां से निकल रहा था तब हर तमिलवासी गौरव के साथ हाथ ऊपर कर-करके आंख में आंसू के साथ कह रहा था- वीर मणक्कम, वीर मणक्कम। ये मेरा देश है। लेकिन कांग्रेस को हमेशा से इन बातों से नफरत रही है। विभाजनकारी मानसिकता उनके डीएनए में घुस गई है। अंग्रेज चले गए लेकिन ‘बांटो और राज करो’ ये नीति कांग्रेस ने अपना चरित्र बना लिया है। और इसलिए ही आज कांग्रेस टुकड़े-टुकड़े गैंग की लीडर बन गई है।
माननीय अध्यक्ष जी,
जो लोकतंत्र की प्रक्रिया से हमें रोक नहीं पा रहे हैं वो यहां अनुशासनहीनता करके हमें रोकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसमें भी विफलता मिलेगी।
माननीय अध्यक्ष महोदय,
कांग्रेस पार्टी की सत्ता में आने की इच्छा खत्म हो चुकी है। लेकिन जब कुछ मिलने वाला नहीं है तो कम से कम बिगाड़ तो दो, ये फिलॉसफी पर आज निराशावादी है I लेकिन उस लोभ में बरबाद कर-करके छोड़ेंगे, इस मोह में देश में वो बीज बो रहे हैं जो अलगाव की जड़ों को मजबूत करने वाले हैं। सदन में ऐसी बातें हुईं के जिसमें देश के कुछ लोगों को उकसाने का भरपूर प्रयास किया गया। अगर पिछले सात साल से कांग्रेस के हर कारनामे, हर गतिविधि, उसको बारीकी से देखेंगे तो हर चीज को अगर धागे में बांध करके देखेंगे तो इनका गेम प्लान क्या है वो बिल्कुल समझ में आता है और वो ही मैं आज इनका खुल्ला कर रहा हूं।
माननीय अध्यक्ष जी,
आपका गेम प्लान कोई भी हो, माननीय अध्यक्ष जी, ऐसे बहुत लोग आए और चले गए। लाखों कोशिशें की गईं, अपने स्वार्थवश की गईं लेकिन ये देश् अजर-अमर है, इस देश को कुछ नहीं हो सकता। आने वालों को, इस प्रकार की कोशिश करने वालों को हमेशा कुछ न कुछ गंवाना पड़ा है। ये देश एक था, श्रेष्ठ था, ये देश एक है, ये देश श्रेष्ठ रहेगा, इसी विश्वास के साथ हम आगे बढ़ रहे हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
यहां कर्तव्यों की बात करने पर भी एतराज जताया गया है। उससे भी कुछ लोगों को पीड़ा हुई है कि देश का प्रधानमंत्री कर्तव्य की बात क्यों करता है। कर्तव्य की चर्चा हो रही है। किसी बात को समझ के भाव से या बद-इरादे से, विकृति से घड़ देना, विवाद खड़ा कर देना ताकि खुद limelight में रहें। मैं हैरान हूं अचानक कांग्रेस को अब कर्तव्य की बात चुभने लगी है।
माननीय अध्यक्ष जी,
आप लोग कहते रहते हैं कि मोदीजी, नेहरू जी का नाम नहीं लेते, तो आज मैं आपकी मुराद बराबर पूरी कर रहा हूं, आपकी प्यास बुझा रहा हूं। देखिए कर्तव्यों के संबंध में नेहरू जी ने क्या कहा था, जरा मैं आज कोट सुनाता हूं-
माननीय अध्यक्ष जी,
पंडित नेहरू जी, देश के प्रथम प्रधानमंत्री- उन्होंने क्या कहा था, ”मैं आपसे फिर कहता हूं कि आजाद हिन्दुस्तान है। आजाद हिन्दुस्तान की सालगिरह हम मनाते हैं लेकिन आजादी के साथ जिम्मेदारी होती है और कर्तव्य को ही दूसरे शब्दों में जिम्मेदारी कहते हैं।” इसलिए कोई समझना हो तो मैं समझा दूं। कर्तव्यों को दूसरे शब्दों में जिम्मेदारी कहते हैं। अब ये पंडित नेहरू का कोट है- ”मैं आपसे फिर कहता हूं कि आजाद हिन्दुस्तान है। आजाद हिन्दुस्तान की सालगिरह हम मनाते हैं लेकिन आजादी के साथ जिम्मेदारी होती है। जिम्मेदारी, कर्तव्य खाली हुकूमत की नहीं, जिम्मेदारी हर एक आजाद शख्स की होती है और अगर आप उस जिम्मेदारी को महसूस नहीं करते, अगर आप समझते नहीं तब पूरी तौर पर आप आजादी के मायने नहीं समझे और आप आजादी को पूरी तौर से बचा नहीं सकते हैं।” ये कर्तव्य के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू जी ने कहा था लेकिन आप उसको भी भूल गए।
माननीय अध्यक्ष जी,
मैं सदन का ज्यादा समय लेना नहीं चाहता हूं और वो भी थक गए हैं। माननीय अध्यक्ष जी, हमारे यहां कहा गया है-
क्षणशः कणश: श्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्।।
अर्थात विद्या ज्ञान के लिए एक-एक पल महत्वपूर्ण होता है। संपत्ति संसाधनों के लिए एक-एक कण जरूरी होता है। एक-एक क्षण बर्बाद करके ज्ञान हासिल नहीं किया जा सकता और एक-एक कण बर्बाद किया गया, छोटे-छोटे संसाधनों का समुचित प्रयोग नहीं किया गया तो संसाधन व्यर्थ हो जाते हैं। मैं कांग्रेस और उनके सहयोगियों से कहूंगा आप ये मंथन जरूर कीजिए कि कहीं आप इतिहास के इस महत्वपूर्ण क्षण को नष्ट तो नहीं कर रहे हैं। मुझे सुनाने के लिए, मेरी आलोचना करने के लिए, मेरी दल को कोसने के लिए बहुत कुछ है, कर सकते हैं आप। और आगे भी करते रहिए, मौकों की कमी नहीं है। लेकिन आजादी के अमृतकाल का ये समय, 75 वर्ष का ये समय भारत की विकास यात्रा में सकारात्मक योगदान का समय है। मैं विपक्ष को और यहां पर बैठे हुए भी सभी साथियों से और सदन के माध्यम से देशवासियों से भी आजादी के इस अमृत महोत्सव के इस पर्व पर आग्रह करता हूं, निवेदन करता हूं, अपेक्षा करता हूं कि आओ इस आजादी के इस अमृत महोत्सव को हम नए संकल्पों के साथ आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ एकजुट होकर हम लग जाए। कोशिश करें पिछले 75 साल में जहां-जहां हम कम पड़े हैं, उसको पूरा करें और आने वाले 2047 के शताब्दी वर्ष बनाने से पहले देश को कैसा बनाना है, उसका संकल्प लेकर के आगे बढ़े। देश के विकास के लिए मिलकर के काम करना है। राजनीति अपनी जगह पर है, हम दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर के देश की भावनाओं को लेकर के जीयें। चुनाव के मैदान में जो कुछ करना है, करते रहिए लेकिन हम देशहित में आगे आए। ऐसी अपेक्षा रखता हूं। आजादी के सौ वर्ष जब होंगे, ऐसे ही सदन में जो लोग बैठे होंगे, तो जरूर चर्चा करेंगे कि ऐसी मजबूत नींव पर ऐसी प्रगति पर पहुंचे हुई सौ साल की उस यात्रा के बाद देश ऐसे लोगों के हाथ में जाए ताकि उनको आगे ले जाने का मन कर जाए। हम यही सोचे कि जो समय मिला है उसका हम सदुपयोग करें। हमारे स्वर्णिम भारत के निर्माण में हम कोई कोताही न बरतें। पूरे सामर्थ्य के साथ हम उस काम में लगें।
माननीय अध्यक्ष जी,
मैं फिर एक बार राष्ट्रपति जी के उत्बोधन को धन्यवाद प्रस्ताव को अनुमोदन करता हूं। और मैं इस सदन में चर्चा में भाग लेने वाले सभी माननीय सांसदों का भी फिर से एक बार धन्यवाद करते हुए, आपने जो अवसर दिया रोका-टोका की कोशिश की बावजूद भी मैंने सभी विषयों को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। बहुत-बहुत धन्यवाद!