उपराष्ट्रपति ने कहा कि भगवदगीता का संदेश हमेशा प्रासंगिक रहता है; उन्होंने धर्मगुरुओं से इसे युवाओं और जनता तक पहुंचाने का आग्रह किया

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‘आंतरिक शक्ति और मानसिक शांति की खोज के लिए आध्यात्म आवश्यक है’: श्री नायडु

उपराष्ट्रपति ने छात्रों में मानसिक तनाव बढ़ने पर चिंता जताई और शिक्षण संस्थानों से काउंसलर रखने का आग्रह किया

नायडु ने कहा, ‘मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित कलंक को खत्म करने के लिए खुलकर बातचीत शुरू कीजिए’

उन्होंने पांचवें वैश्विक भगवद्गीता सम्मेलन का वर्चुअल तरीके से उद्घाटन किया
उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने चेन्नई से आज वर्चुअल तरीके से पांचवें वैश्विक भगवद्गीता सम्मेलन का उद्घाटन किया। उन्होंने पूरी मानवता के लाभ के लिए भगवद्गीता के सार्वभौमिक संदेश को अधिक से अधिक भाषाओं में अनुवाद करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

सेंटर फॉर इनर रिसोर्स डिवेलपमेंट (सीआईआरडी), उत्तर अमेरिका की ओर से ऑनलाइन मोड में आयोजित किए जा रहे इस सम्मेलन का फोकस ‘मानसिक सामंजस्य’ विषय पर है। इस विषय के बारे में बात करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि आज के समय में मानसिक तनाव तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने स्वास्थ्य के इस गंभीर मुद्दे को लेकर अधिक जागरूकता और ध्यान देने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही भगवद्गीता हजारों साल पुरानी है लेकिन इसका समय से परे संदेश लोगों के लिए हमेशा प्रासंगिक रहता है, उन्हें मानसिक शांति प्रदान करने में मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों की व्यापकता के बावजूद, भारत में जागरूकता कम है और इससे जुड़ी कई भ्रांतियां हैं। इस बात का जिक्र करते हुए कि महामारी का लोगों की मानसिक सेहत पर अतिरिक्त प्रभाव पड़ा है, उन्होंने कहा कि किसी भी चीज से अधिक, हमें मानसिक स्वास्थ्य के महत्व के बारे में खुलकर बातचीत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। श्री नायडु ने सभी क्षेत्रों की लोकप्रिय हस्तियों से इस महत्वपूर्ण जन स्वास्थ्य के मुद्दे पर लोगों के बीच बात करने और जागरूकता बढ़ाने का आह्वान किया।

उपराष्ट्रपति ने पढ़ाई के दबाव के चलते पैदा हुए तनाव का सामना करने में असमर्थ छात्रों के अपना जीवन समाप्त करने की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने छात्रों को परामर्श देने में माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका पर प्रकाश डाला, जिससे वे बच्चों को किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति का निडरता से सामना करने और परिणाम की चिंता किए बगैर अपना कार्य पूरी लगन से करने के लिए प्रेरित कर सकें। उन्होंने कहा, ‘यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश का सार है।’

इस संबंध में, श्री नायडु ने सुझाव दिया कि प्रत्येक शिक्षण संस्थान में छात्रों को तनावपूर्ण स्थितियों से उबरने में मदद करने के लिए इन-हाउस काउंसलर होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि हर जगह पर सरकारों को इस आवश्यकता का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए।

लोगों को चौबीस घंटे मुफ्त परामर्श प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय टेली-मेंटल हेल्थ प्रोग्राम शुरू करने की घोषणा की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह लोगों, विशेष रूप से दूरदराज में रहने वालों की मानसिक सेहत को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इसमें व्यक्ति की पहचान भी सार्वजनिक नहीं होगी।

श्री नायडु ने ‘लोगों की जीवन शैली में सुधार’ और लोगों की भलाई के लिए काम और जीवन में संतुलन सुनिश्चित करने का भी आह्वान किया। उन्होंने तनाव से निपटने के लिए ध्यान, व्यायाम, योग जैसे उपायों का सुझाव देते हुए मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में आध्यात्म के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि किसी भी व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और मानसिक शांति की खोज के लिए आध्यात्म आवश्यक है। इस संबंध में, मैं धर्मगुरुओं से आग्रह करता हूं कि वे आध्यात्म के संदेश को युवाओं और जनता तक पहुंचाएं।’

कार्यक्रम में स्वामी भूमानंद तीर्थजी, नारायणाश्रम तपोवनम के संस्थापक और वैश्विक भगवद्गीता सम्मेलन के बारे में सोचने वाले दूरदर्शी नारायणाश्रम तपोवनम के स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ जी, भारत के सुप्रीम कोर्ट की जज माननीय इंदिरा बनर्जी, नारायणाश्रम तपोवनम की स्वामिनी मां गुरुप्रिया, श्री पंकज भाटिया अध्यक्ष सीआईआरडी-एनए, डॉ. रवि जंध्याला, सीआईआरडी-एनए के उपाध्यक्ष आदि ने हिस्सा लिया।

पूरा भाषण निम्नलिखित है-

‘बहनो और भाइयो,

मुझे वैश्विक भगवद्गीता सम्मेलन (जीबीजीसी 2022) के पांचवें संस्करण में शामिल होकर वास्तव में बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं यह जानकर खुश हूं कि अमेरिका आधारित संस्थान, सेंटर फॉर इनर रिसोर्स डिवेलपमेंट (सीआईआरडी), उत्तर अमेरिका इस सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। यह हमारे लोकाचार और संस्कृति की दुनिया में मौजूदगी और मान्यता को दर्शाता है।

पूज्य स्वामी भूमानंद तीर्थ जी के प्रति मेरा विनम्र आदर सम्मान, जो इस वार्षिक आयोजन की प्रेरक शक्ति और प्रेरणा हैं।

बहनो और भाइयो,

कुरुक्षेत्र की धरती पर अर्जुन और उनके श्रद्धेय मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक भगवान श्री कृष्ण के बीच संवाद शाश्वत प्रासंगिकता में से एक है। प्रतिभाशाली और बुद्धिमान अर्जुन ने अपने जीवन का लंबा समय युद्ध के मैदान की रणनीतियों और कौशल में दक्षता हासिल करने में बिताया, लेकिन महाभारत युद्ध के पहले दिन उनके सामने अजीब स्थिति पैदा हो जाती है। उन्हें आत्म-संदेह का सामना करना पड़ता है।

यह देखकर अर्जुन के भीतर निराशा का भाव पैदा होता है कि विरोधी सेना में उनके अपने रिश्तेदार, प्रिय गुरुजन और आदरणीय बड़े-बुजुर्ग हैं। जब वह विरोधी सेना को देखते हैं तो उनके मन में युद्ध की निरर्थकता का भाव पैदा होता है कि वह अपने करीबियों और लोगों का संहार करने जा रहे हैं। उनकी निराशा ऐसी होती है कि वह युद्ध के मैदान में खड़े होकर लड़ाई से मुंह मोड़ लेते हैं और वापस लौटने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

तभी उनके सारथी और मार्गदर्शक श्रीकृष्ण उन्हें परामर्श देते हैं और अर्जुन के मन में उठने वाले प्रत्येक प्रश्न और चिंताओं का बड़ी ही गहराई से उत्तर देते हैं।

श्रीकृष्ण की स्पष्ट अंतर्दृष्टि और दृष्टिकोण से अर्जुन अपने अनिर्णय की स्थिति से बाहर निकलते हैं। युद्ध की स्थिति में वापस लौटने के बाद अपने मन के संदेह को दूर करते हुए, अर्जुन अपने कर्तव्यों के निर्वहन में साहसपूर्वक आगे बढ़ने में सक्षम होते हैं।

बहनो और भाइयो,

वैसे तो, भगवद्गीता का संदेश हजारों साल पुराना है लेकिन यह कभी भी अपनी प्रासंगिकता और महत्व को नहीं खो सकता है। यह लोगों के लिए हमेशा मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। आज, पहले से कहीं अधिक, एक जटिल और परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में, भगवद्गीता का समय से परे संदेश प्रासंगिक बना हुआ है क्योंकि लोग अपने जीवन में कई चुनौतियों और बाधाओं का सामना करते हैं।

संकट के दौरान, भगवद्गीता जैसे पवित्र ग्रंथ मानसिक शांति प्रदान करने में मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते हैं। ये शक्ति और विश्वास के स्रोत के रूप में सेवा करते हैं और हमें मुश्किल समय में आगे की राह दिखाते हैं।

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