पश्चिम बंगाल में अंतरिम कुलपतियों के अधिकार के मुद्दे पर सरकार व राजभवन के बीच खींचतान
कोलकाता, 15 दिसंबर। पश्चिम बंगाल में राजभवन और राज्य सचिवालय के बीच ताजा खींचतान बढ़ती दिख रही है, क्योंकि राज्य शिक्षा विभाग राज्य विश्वविद्यालयों में राज्यपाल द्वारा नियुक्त अंतरिम कुलपतियों को सिंडिकेट की कार्य समिति की महत्वपूर्ण बैठकें बुलाने से बार-बार इनकार कर रहा है।
राजभवन के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि इस संबंध में राज्य शिक्षा विभाग से बार-बार अनुमति देने से इनकार के बीच, सभी राज्य विश्वविद्यालयों को एक विज्ञप्ति भेज दी गई है, इसमें राज्य सरकार के विभाग के इस तर्क को खारिज कर दिया गया है कि अंतरिम कुलपतियों के पास ऐसी बैठकें बुलाने का अधिकार नहीं है।
विज्ञप्ति में, राजभवन के अंदरूनी सूत्रों ने कहा, यह बताया गया है कि मामले में संबंधित राज्य अधिनियम किसी भी अंतरिम कुलपति को किसी भी राज्य विश्वविद्यालय की नीति-निर्धारण समिति की बैठक बुलाने और संचालित करने के लिए अधिकृत करता है, चाहे वह कार्य समिति हो या सिंडिकेट या सीनेट।
राज्य सरकार के एक अंदरूनी सूत्र ने बताया कि इस मामले में राज्य सचिवालय और राजभवन के बीच इस बात को लेकर खींचतान सामने आई है कि वास्तव में राज्य विश्वविद्यालयों की नीति-निर्धारण समिति की बैठकें कौन बुला सकता है।
एक ओर, उन्होंने बताया, राज्य शिक्षा विभाग का तर्क यह है कि केवल स्थायी कुलपति, अंतरिम नहीं, ऐसी बैठकें बुलाने के लिए अधिकृत हैं। लेकिन गवर्नर हाउस का तर्क यह है कि चूंकि स्थायी और अंतरिम दोनों कुलपतियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में, उसे ऐसी बैठकें बुलाने का अधिकार है।
इस मामले पर विवाद हाल ही में तब सामने आया जब राज्य के शिक्षा विभाग ने पहले जादवपुर विश्वविद्यालय (जेयू) के अंतरिम कुलपति बुद्धदेव साव को कार्य समिति की बैठक बुलाने से इनकार कर दिया और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय में साव की समकक्ष शांता दत्ता को विश्वविद्यालय की सिंडिकेट बैठक बुलाने से मना कर दिया।
सिंडिकेट की बैठक विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसमें कलकत्ता विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र के तहत 169 कॉलेजों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नई शिक्षा नीति के आलोक में “नई परीक्षा प्रणाली” की शुरुआत पर कुछ निर्णय लेने थे।